bhagwan vishnu bhakti sheshnaag sudarshan chakra

षोडशोपचार पूजन किसे कहते हैं ?

‘षोडशोपचार’ शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है—षोडश + उपचार । ‘षोडश’ का अर्थ है सोलह और ‘उपचार’ अर्थात् पूजन का विधान या अंग ।

हिन्दू धर्म में देवताओं का पूजन-कार्य 16 उपचार से किया जाता है । यद्यपि देवताओं को न तो पदार्थों की आवश्यकता होती है और न ही भूख । जब कोई सम्माननीय व्यक्ति हमारे घर पर आता है तो हम जो भी हमारे पास सर्वश्रेष्ठ वस्तुएं उपलब्ध होती हैं, उसके लिए प्रस्तुत करते हैं । फिर भगवान तो जगत्पिता, जगत के नियन्ता और जगत के पालक हैं; उनसे श्रेष्ठ, सम्माननीय और वन्दनीय और कौन हो सकता है ? इसलिए भगवान का पूजन षोडशोपचार विधि से किया जाता है ।

विभिन्न देवताओं का उनके मंत्र से षोडशोपचार पूजन

विशेष पर्व जैसे—जन्माष्टमी, रामनवमी, शिवरात्रि, शरद् पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, दीपावली, नवरात्रि, एकादशी, पूर्णिमा, गणेश चतुर्थी आदि पर या जब कभी श्रद्धा हो—अपने इष्टदेव की और पर्व के देवता की षोडश उपचारों से पूजा की जाती है । जो भगवान के जिस रूप का उपासक हो, उसको अपने उसी आराध्य के नाम-मंत्र से इन उपचारों को अर्पण करना चाहिए । जैसे—

  • भगवान नारायण की पूजा के समय ‘श्रीनारायणाय नम:’ इस मंत्र से, 
  • लड्डूगोपाल की पूजा के लिए ‘श्रीकृष्णाय नम:’ इस मंत्र से,
  • भगवान शिव के लिए श्रीशिवाय नम:  इस मंत्र से, 
  • दुर्गाजी के लिए ‘श्रीदुर्गायै नम:‘  
  • गणेशजी के लिए ‘श्रीगणेशाय नम: आदि नाम-मंत्र से पूजन करना चाहिए । 

भगवान को अर्पित किए जाने वाले विभिन्न उपचारों का फल

  • भगवान को स्नान कराने व अभिषेक करने से मनुष्य की आत्मशुद्धि होती है । 
  • गंध (रोली, चंदन, अबीर गुलाल आदि) लगाने से पुण्य की प्राप्ति होती है ।
  • सुगन्धित द्रव्य—इत्र आदि अर्पण से यश-कीर्ति का विस्तार होता है ।
  • नैवेद्य से आयु बढ़ती है और तृप्ति होती है ।
  • भगवान को धूप निवेदन करने से धन की प्राप्ति होती है ।
  • दीप दिखाने से ज्ञान का उदय होता है ।
  • ताम्बूल समर्पण से भोगों की उपलब्धि होती है ।
  • नमस्कार व जप करने से मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी होती हैं ।
  • भगवान के षोडशोपचार पूजन से उनके लोक की प्राप्ति होती है ।

भगवान विष्णु के षोडशोपचार पूजन की विधि और मंत्र

पाठकों की सुविधा के लिए यहां भगवान विष्णु के षोडशोपचार पूजन की विधि दी जा रही है । यदि भगवान विष्णु का षोडशोपचार पूजन करना है तो उनके मंत्र और विधि इस प्रकार हैं—

श्रीनारायणाय नम: आवाहयामि, स्थापयामि ।। १ ॥
श्रीनारायणाय नम: आसनं समर्पयामि ॥ २ ॥
श्रीनारायणाय नम: पाद्यं समर्पयामि ॥ ३ ॥
श्रीनारायणाय नम: अर्घ्यं समर्पयामि ॥ ४ ॥
श्रीनारायणाय नम: आचमनं समर्पयामि ॥ ५ ॥
श्रीनारायणाय नम: स्नानम् समर्पयामि ॥ ६ ॥
श्रीनारायणाय नम: वस्त्रं समर्पयामि ॥ ७ ॥
श्रीनारायणाय नम: यज्ञोपवीतम् समर्पयामि ॥ ८ ॥
श्रीनारायणाय नम: गन्धम् विलेपयामि ॥ ९ ॥
श्रीनारायणाय नम: पुष्पाणि समर्पयामि ॥ १०
श्रीनारायणाय नम: धूपमाघ्रापयामि ॥
श्रीनारायणाय नम: दीपम् दर्शयामि ॥
श्रीनारायणाय नम: नैवेद्यं निवेदयामि ॥१३ ॥
श्रीनारायणाय नम: ताम्बूलपुंगीफलानि समर्पयामि ॥ १४ ॥
श्रीनारायणाय नम: दक्षिणां समर्पयामि ॥ १५ ॥
श्रीनारायणाय नम: पुष्पांजलि समर्पयामि ॥ १६ ॥

ततो नमस्कारम् करोमि—

ॐ नम: सर्वहितार्थाय जगदाधार हेतवे ।
साष्टांगोऽयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मयाकृत: ।।

पुरुष सूक्त द्वारा षोडशोपचार पूजन

पर्वों और विशेष धार्मिक अनुष्ठानों पर भगवान का पुरुष सूक्त के मंत्रों से पूजन किया जाता है । जिन्हें पुरुष-सूक्त के सोलह मंत्र याद हों, उन्हें सोलह उपचार, सोलह मंत्रों से अर्पण करने चाहिए । जैसे—

आवाहन के लिए 

ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुष: सहस्त्राक्ष: सहस्त्रपात् ।
स भूमिँ सर्वत स्पृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशांगुलम् ।। १ ।।

आसन के लिए

पुरुष एवेदम् सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ।। २ ।।

पाद्य के लिए

एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुष: ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ।। ३ ।।

अर्घ्य के लिए

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुष: पादोऽस्येहाभवत् पुन: ।
ततो विष्वं व्यक्रामत्साशनानशने अभि ।। ४ ।।

आचमन के लिए

ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुष: ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुर: ।। ५ ।।

स्नान के लिए

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत: सम्भृतं पृषदाज्यम् ।
पशूँस्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये ।। ६ ।।

वस्त्र के लिए

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत: ऋच: सामानि जज्ञिरे ।
छन्दाँसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ।। ७ ।।

यज्ञोपवीत के लिए

तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादत: ।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावय: ।। ८ ।।

गंध (चंदन रोली) के लिए

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रत: ।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ।। ९ ।।

पुष्पमाला, तुलसी आदि के लिए

यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादा उच्येते ।। १० ।।

धूप के लिए

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्वाहू राजन्य: कृत: ।
उरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भयां शूद्रो अजायत ।। ११ ।।

दीप के लिए

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्यो अजायत ।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ।। १२ ।।

नैवेद्य और आचमन के लिए

नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौ: समवर्तत ।
पद्भयां भूमिर्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन् ।। १३ ।।

ताम्बूल सहित दक्षिणा के लिए

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्म: शरद्धवि: ।। १४ ।।

आरती और परिक्रमा के लिए

सप्तास्यासन् परिधयस्त्रि: सप्त समिध: कृता: ।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्रन् पुरुषं पशुम् ।। १५ ।।

पुष्पांजलि और नमस्कार के लिए

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमान: सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा: ।। १६ ।।

ध्यान देने योग्य बातें

—अच्छे-अच्छे पदार्थ भगवान को अर्पण करते समय पूरी श्रद्धा और समर्पण का भाव रहना चाहिए । भगवान/देवताओं पर एहसान करने का भाव मन में नहीं आना चाहिए । 

—पूजन में यदि किसी पदार्थ की कमी रह जाए, वह उपलब्ध न हो तो उसकी कमी मानसिक भावना से पूरी कर देनी चाहिए ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here