bhagwan krishna shankh

समुद्र-मंथन के समय समुद्र से जो १४ रत्न निकले, उनमें एक शंख भी है; इसलिए इसे ‘समुद्रतनय’ कहते हैं और यह लक्ष्मीजी का भाई माना जाता है । शंख में साक्षात् भगवान श्रीहरि का निवास है और वे इसे सदैव अपने हाथ में धारण करते हैं । मंगलकारी होने व शक्तिपुंज होने से अन्य देवी-देवता जैसे सूर्य, देवी और वेदमाता गायत्री भी इसे अपने हाथ में धारण करती हैं; इसीलिए शंख का दर्शन सब प्रकार से मंगल प्रदान करने वाला माना जाता है ।

जहां पर शंख रहता है, वहां भगवान श्रीहरि लक्ष्मी सहित सदैव निवास करते हैं; इसलिए दूसरे अंमगल वहां से तुरंत भाग जाते हैं । भगवान के पूजन में शंख के जल (शंखोदक) को मूर्ति के चारों ओर घुमा कर भक्तों पर छिड़का जाता है तो भक्तों के मन में भगवान के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है । शंख का जल ब्रह्महत्या जैसे महापापों को धो डालता है; इसलिए शंखोदक की भी उतनी ही महिमा है जितनी कि भगवान के चरणामृत, पंचामृत, चढ़ी हुई तुलसी व प्रसाद की होती है । 

शंख में अन्य देवताओं का भी निवास माना गया है । यह कहा गया है कि शंख के मूल भाग में चंद्रमा, कुक्षि में वरुण देव, पृष्ठ भाग में प्रजापति तथा अग्र भाग में गंगा और सरस्वती निवास करती हैं । 

शंख की उत्पत्ति की कथा

श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण का पार्षद श्रीदामा गोप था । श्रीदामा की किसी बात पर क्रोधित होकर श्रीराधा ने उसे शाप दे दिया कि ‘तुम असुरयोनि को प्राप्त हो जाओ और गोलोक से बाहर चले जाओ ।’ श्रीदामा को दु:खी देख कर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण वहां प्रकट हो गए और श्रीदामा को सान्त्वना देते हुए कहा–’तुम त्रिभुवन विजेता सर्वश्रेष्ठ शंखचूड़ नामक असुर होओगे और अंत में श्रीशंकरजी के त्रिशूल से मृत्यु को प्राप्त होकर यहां मेरे पास लौट आओगे ।’ 

शंखचूड़ ने वृन्दा से गांधर्व विवाह किया । उसने स्वर्ग को जीत कर देवताओं को वहां से निकाल दिया । सभी देवता भगवान शंकर के पास सहायता के लिए गए । शंकरजी ने क्रुद्ध होकर शंखचूड़ के साथ युद्ध किया, फिर भी वह मरता नहीं था; क्योंकि उसकी पत्नी वृन्दा पतिव्रता स्त्री थी । भगवान विष्णु वृन्दा का पातिव्रत्य भंग करने के लिए शंखचूड़ का रूप धारण कर वृन्दा के पास गए और उसका पातिव्रत्य भंग कर दिया । जिससे शंखचूड़ निर्बल हो गया । भगवान शंकर ने शंखचूड़ को मार कर उसकी हड्डियां समुद्र में फेंक दीं । उन्हीं हड्डियों से नाना प्रकार के शंख उत्पन्न हुए ।

भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध किया था इसलिए शिवपूजन व अभिषेक में तथा सूर्यार्घ्य में शंख का प्रयोग नहीं किया जाता है । अन्य देवी-देवताओं के पूजन में शंख के प्रयोग से साधक को मनचाही सिद्धि प्राप्त होती है ।

पूजा में शंख क्यों बजाया जाता है ?

वृन्दा को भगवान विष्णु की यह कपटलीला जब ज्ञात हुई, तब उसने भगवान विष्णु को शिला बनने का शाप दे दिया । भगवान विष्णु ने भी वृन्दा को शाप देते हुए कहा कि ‘जब मैं गण्डकी नदी के तट पर शालग्राम शिला बनूंगा, तब तुम तुलसी वृक्ष बनोगी और तुम्हारा पति शंखचूड़ शंख बनेगा । मेरी शालग्राम शिला की पूजा में तुम तुलसी दल के रूप में और तुम्हारा पति शंख रूप में उपयोग में आएगा ।’

▪️यही कारण है कि शालग्राम पूजन में उनके ऊपर तुलसी पत्र चढ़ाया जाता है और आरती करते समय शंखध्वनि की जाती है ।

▪️शंख बजाने का दूसरा कारण है कि—

‘शंख’ शब्द दो शब्दों से बना है—‘शं’ जिसका अर्थ है शुभ, कल्याण, मंगल तथा ‘ख’ का अर्थ है आकाश । अत: शंखध्वनि करने से वातावरण में स्थित रोगों के कीटाणु मर जाते हैं और वातावरण शुद्ध व पवित्र हो जाता है और यह सभी अशुभों को शान्त कर देता है । इसीलिए मंदिर और घरों में आरती के समय शंख बजाने का विधान है ।

▪️श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार जहां कहीं भी शंखध्वनि होती है, वहां लक्ष्मीजी विराजमान रहती हैं । लेकिन स्त्रियों को शंख बजाने का निषेध है; क्योंकि इससे लक्ष्मीजी रुष्ट होकर उस स्थान को छोड़ देती हैं ।

▪️वाराह पुराण के अनुसार—प्रात:काल मंदिर का द्वार खोलने से पहले और रात्रि में शयन कराने से पहले तीन-तीन बार शंखध्वनि करनी चाहिए । ऐसा करने से पुजारी, साधक के ऊपर देवी-देवता की प्रसन्नता रहती है और देवमूर्ति में चैतन्यता बढ़ती है ।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए ‘शंख गायत्री’ मंत्र का जप

‘पांचजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि । तन्न: शंख: प्रचोदयात् ॥’

शंख की पंचोपचार (जल, रोली-चंदन, पुष्प, धूप व नैवेद्य से) पूजा करें । फिर  इस ‘शंख गायत्री’ मंत्र का जाप शंख की माला पर करना चाहिए । इससे साधक पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है ।

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