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एकाम्रेश्वर जहां बालुका-लिंग में विराजते हैं शिव

एकाम्रेश्वर का क्षितिलिंग दक्षिण भारत में शिवकांची में स्थित है । एकाम्रेश्वर-लिंग पार्वती जी द्वारा निर्मित बालुका-लिंग है, जिसकी वे पूजा करती थीं ।

संकट मोचन और चतुर-शिरोमणि हनुमान जी

श्रीरामचरितमानस में जितना भी कठिन कार्य है, वह सब हनुमान जी द्वारा पूर्ण होता है । मां सीता की खोज, लक्ष्मण जी के प्राण बचाना, लंका में संत्रास पैदा करना, अहिरावण-वध, श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा--जैसे अनेक कार्य हनुमान जी ने अपने अद्भुत बुद्धि-चातुर्य से किए । आज भी कितने भी संकट में कोई क्यों न हो, हनुमान जी को जो करुणहृदय से पुकारता है, हनुमान जी उसकी रक्षा अवश्य करते हैं ।

गरुड़, सुदर्शन चक्र और श्रीकृष्ण की पटरानियों का गर्व-हरण

जहां-जहां अभिमान है, वहां-वहां भगवान की विस्मृति हो जाती है । इसलिए भक्ति का पहला लक्षण है दैन्य अर्थात् अपने को सर्वथा अभावग्रस्त, अकिंचन पाना । भगवान ऐसे ही अकिंचन भक्त के कंधे पर हाथ रखे रहते हैं । भगवान अहंकार को शीघ्र ही मिटाकर भक्त का हृदय निर्मल कर देते हैं ।

मंगलाचरण क्यों किया जाता है ?

प्राय: ग्रंथों की रचना करते समय उनकी सफलतापूर्वक समाप्ति के लिए आरम्भ में कोई श्लोक, पद्य या मंत्र लिखा जाता है । इसी तरह किसी शुभ कार्य को शुरु करते समय मंगल कामना के लिए जो श्लोक, पद्य या मंत्र कहा जाता है, उसे ‘मंगलाचरण’ कहते हैं ।

राम जी की चरण-पादुकाएं

वन में राम जी के तपस्वी जीवन की तुलना में भरत जी का तपस्वी जीवन अधिक श्रेष्ठ है; क्योंकि वन में रह कर तप करना बहुत कठिन नहीं है । राजमहल में रह कर तप करने वाला सच्चा ब्रह्मनिष्ठ साधु है । सब प्रकार की अनुकूलता हो, विषयभोग के साधन हों फिर मन विषयों में न लगे; यही सच्ची साधुता है, सच्चा वैराग्य है । भिखारी को खाने को न मिले और फिर वह उपवास करे तो उसका कोई विशेष अर्थ नहीं है । सब कुछ होने पर भी मन किसी विषय में न जाए, यही सच्चा वैराग्य है ।

कर्मफल : जब यमराज बने दासी-पुत्र विदुर

ब्रह्मा आदि सभी देवता भी कर्म के वश में हैं और अपने किए कर्मों के फलस्वरूप सुख-दु:ख प्राप्त करते हैं । भगवान विष्णु भी अपनी इच्छा से जन्म लेने के लिए स्वतन्त्र होते तो वे अनेक प्रकार के सुखों व वैकुण्ठपुरी का निवास छोड़कर निम्न योनियों (मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन) में जन्म क्यों लेते ? सूर्य और चन्द्रमा कर्मफल के कारण ही नियमित रूप से परिभ्रमण करते हैं तथा सबको सुख प्रदान करते हैं, किन्तु राहु के द्वारा उन्हें होने वाली पीड़ा दूर नहीं होती ।

मथुरा जहां पूजे जाते हैं मृत्युदेवता ‘यमराज’

मथुरा नगरी को तीन लोक से न्यारा कहा गया है; क्योंकि यहां मृत्यु के देवता यमराज जिन्हें ‘धर्मराज’ भी कहते हैं, का मंदिर है । पूरे कार्तिक मास कार्तिक-स्नान करने वाली स्त्रियां यमुना-स्नान कर उनकी पूजा करती हैं । जिस प्रकार पूरे विश्व में ब्रह्माजी का मंदिर केवल पुष्कर (राजस्थान) में है; उसी प्रकार यमराज का मंदिर संसार में केवल मथुरा में है और वे यहां इस मंदिर में अपनी बहिन यमुना के साथ विराजमान हैं । मथुरा में यह मंदिर ‘विश्राम घाट’ पर स्थित है ।

शंख की उत्पत्ति कथा तथा शंख-ध्वनि की महिमा

समुद्र-मंथन के समय समुद्र से जो १४ रत्न निकले, उनमें एक शंख भी है । इसलिए इसे ‘समुद्रतनय’ भी कहते हैं । शंख में साक्षात् भगवान श्रीहरि का निवास है और वे इसे सदैव अपने हाथ में धारण करते हैं । मंगलकारी होने व शक्तिपुंज होने से अन्य देवी-देवता जैसे सूर्य, देवी और वेदमाता गायत्री भी इसे अपने हाथ में धारण करती हैं; इसीलिए शंख का दर्शन सब प्रकार से मंगल प्रदान करने वाला माना जाता है ।

हरितालिका तीज : व्रत-पूजन विधि व मंत्र

हरितालिका तीज व्रत भाद्रप्रद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है । पार्वती जी ने कठोर तप के द्वारा इस दिन भगवान शिव को प्राप्त किया था । कुंवारी लड़कियों द्वारा इस व्रत को करने से उन्हें मनचाहे पति की प्राप्ति होती है और विवाहित स्त्रियां इस व्रत को करती हैं तो उन्हें अखण्ड सुहाग की प्राप्ति होती है । यह कठिन व्रत बहुत ही त्याग और निष्ठा के साथ किया जाता है । इस व्रत में मुख्य रूप से शिव-पार्वती और गणेश जी का पूजन किया जाता है ।

रावण ने श्रीराम से ही नहीं कौसल्या से भी निभाया वैर

संसार में सभी भयों में मृत्य का भय सबसे बड़ा माना गया है । सांसारिक विषयी पुरुष के लिए शरीर ही सब कुछ होता है; इसीलिए मृत्यु निकट जान कर मनुष्य अपना विवेक और धैर्य खो देता है । न तो उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान रहता है, न ही उसे भूख-प्यास लगती है; साथ ही रात-दिन का चैन भी समाप्त हो जाता है ।