श्रीरामचरितमानस में जितना भी कठिन कार्य है, वह सब हनुमान जी द्वारा पूर्ण होता है । मां सीता की खोज, लक्ष्मण जी के प्राण बचाना, लंका में संत्रास पैदा करना, अहिरावण-वध, श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा–जैसे अनेक कार्य हनुमान जी ने अपने अद्भुत बुद्धि-चातुर्य से किए । आज भी कितने भी संकट में कोई क्यों न हो, हनुमान जी को जो करुणहृदय से पुकारता है, हनुमान जी उसकी रक्षा अवश्य करते हैं । इसीलिए सूरदासजी ने उन्हें ‘संकटमित्र’ कहा है ।

हनुमान जी को ‘चतुर-शिरोमणि’ या ‘ज्ञानिनामग्रगण्यम्’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ज्ञानियों में सबसे पहले गिनने योग्य । उन्होंने अपने बुद्धिबल से ही सुरसा, लंकिनी आदि बाधाओं को अपने मार्ग से हटाकर और उनका आशीर्वाद लेकर सफलता प्राप्त की । साथ ही भगवान श्रीराम का चिरसेवक बनने का सौभाग्य प्राप्त किया । 

संकट मोचन हनुमान जी का अद्भुत बुद्धि-चातुर्य

हनुमान जी के संकट मोचन और अद्भुत-बुद्धि चातुर्य के यों तो अनेक प्रसंग हैं; परन्तु इस लेख में हनुमान जी की अद्भुत बुद्धिमत्ता को दर्शाने वाली ऐसी दो कथाओं का वर्णन किया जा रहा है–

▪️ हनुमान जी ने मन्त्र के एक अक्षर-परिवर्तन से लिख दी रावण के सर्वनाश की कथा

भगवान के ही गुण उनके अनन्य भक्तों में आ जाते हैं । भगवान श्रीराम चतुरशिरोमणि हैं, तब उनके अनन्य भक्त हनुमान जी चतुरशिरोमणि क्यों न हों ? 

एक बार भगवान श्रीराम ने हनुमान जी की प्रशंसा करते हुए सीता जी से कहा–‘यदि लंका-विजय करने में मुझे हनुमान का साथ न मिला होता तो मैं तुम्हारा वियोगी ही बना रहता ।’

सीता जी ने कहा–’आप बार-बार हनुमान के बल, शौर्य, ज्ञान व चातुर्य की प्रशंसा करते रहते हैं । आज मुझे हनुमान की चतुराई का कोई ऐसा प्रसंग सुनाएं जो लंका-विजय में विशेष सहायक रहा हो ।’

तब श्रीराम सीता जी को हनुमान जी की अद्भुत चतुराई का प्रसंग सुनाते हुए कहने लगे–

लंका युद्ध में रावण के बहुत-से वीर सैनिकों का हनुमान जी ने वध कर दिया था और रावण बहुत थक चुका था । तब उसने युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए एक उपाय सोचा–देवी को प्रसन्न करने के लिए सम्पुटित मन्त्र द्वारा चण्डी-महायज्ञ । 

दूसरे ही दिन से चण्डी-यज्ञ आरम्भ हो गया । रावण द्वारा चण्डी-यज्ञ की सूचना मिलने से हनुमान जी बेचैन हो गये; क्योंकि वे जानते थे कि यदि यज्ञ पूर्ण हो जाता है और रावण को युद्ध में विजय का देवी का वरदान मिल जाता है तो उसकी विजय निश्चित है ।

चतुरशिरोमणि हनुमान जी ने श्रीराम का कार्य-सिद्ध करने के लिए एक उपाय सोचा । वे एक ब्राह्मण का वेष धारण कर रावण के यज्ञ में सम्मिलित हो गए और यज्ञकर्ता ब्राह्मणों की सेवा करने लगे । हनुमान जी की ऐसी नि:स्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर ब्राह्मणों ने कहा–’आपकी सेवा से हम बहुत प्रसन्न हैं, कोई वर मांग लो ।’

हनुमान जी ने ब्राह्मणों से वरदान में जो मांगा, वही उनके बुद्धिकौशल को दर्शाता है । जिस सम्पुट-मन्त्र से हवन किया जा रहा था, उसी मन्त्र के एक अक्षर को परिवर्तन करने का हनुमान जी ने ब्राह्मणों से वर मांग लिया । हनुमान जी की सेवा से प्रसन्न भोले-भाले ब्राह्मणों ने ‘तथास्तु’ कह दिया । उसी एक अक्षर के बदल जाने से मन्त्र के अर्थ का अनर्थ हो गया और रावण का सर्वनाश हुआ ।

वह मन्त्र इस प्रकार था—

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणी ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ।। (अर्गलास्तोत्र २)

एक अक्षर परिवर्तन से हुआ अर्थ परिवर्तन

इस श्लोक में ‘भूतार्तिहारिणी’ में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ का उच्चारण करने का हनुमान जी ने ब्राह्मणों से वर मांगा । ब्राह्मणों ने वैसा ही उच्चारण किया । 

‘भूतार्तिहारिणी’ का अर्थ है–’सभी प्राणियों की पीड़ा हरने वाली’  और ‘भूतार्तिकारिणी’ का अर्थ है–’प्राणियों को पीड़ित करने वाली ।’ 

इस प्रकार हनुमान जी ने अपनी चतुराई से रावण के नाश की रूपरेखा तैयार कर दी । रावण को यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद जब मन्त्र की अशुद्धि के बारे में पता चला तो वह भी अपने दसों मुखों से हनुमान जी के बुद्धिकौशल की प्रशंसा करने लगा ।

यदि यहां कोई स्वार्थी सेवक होता तो वह स्वयं अपनी प्रशंसा के गीत गाने लगता; किन्तु हनुमान जी तो जानते थे कि अपने मुख से अपनी प्रशंसा करने से तो देवराज इन्द्र भी लघुता को प्राप्त हो जाते हैं । इसलिए वे कहते हैं–

ता कहुं प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल ।
तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल ।। (मानस ५।३३)

भगवान श्रीराम के मुख से इस प्रसंग को सुनकर सीता जी भी अत्यन्त प्रसन्न हुईं ।

▪️ श्रीराम के संकटमित्र हनुमान

हनुमान जी की बुद्धिमत्ता और चतुरता से सम्बधित दूसरा प्रसंग है—जब लंका के युद्ध में लक्ष्मण जी को शक्ति लग जाती है, तब हनुमान जी लंका के प्रसिद्ध सुषेण वैद्य को लेने जाते हैं । पर वे न तो उन्हें जगाते हैं और न ही उसका द्वार खटखटाते हैं; क्योंकि ऐसा करने पर राक्षसों को इसकी भनक मिल सकती थी । इसलिए वे वैद्य जी को उनके घर सहित उठाये लिए चले आते हैं । संकट के समय एक भी क्षण नष्ट न करना उनके बुद्धि-चातुर्य का उदाहरण है । 

लक्ष्मण जी की प्राण-रक्षा के लिए संजीवनी लाने के कठिन कार्य के लिए भी श्रीराम हनुमान को ही पुकारते हैं–

कहाँ गयौ मारुत-पुत्र कुमार।
ह्वै अनाथ रघुनाथ पुकारे, संकट-मित्र हमार ।।

उस समय भी हनुमान जी संजीवनी बूटी ढूंढ़ने के बजाय पूरा पर्वत ही उठा कर ले आते हैं और सक्ष्मण जी के प्राण बचाते हैं । हनुमान जी की सेवा के अधीन होकर प्रभु श्रीराम ने उन्हें अपने पास बुला कर कहा—

कपि-सेवा बस भये कनौड़े, कह्यौ पवनसुत आउ ।
देबेको न कछू रिनियाँ हौं, धनिक तूँ पत्र लिखाउ ।। (विनय-पत्रिका पद १००।७)

‘भैया हनुमान ! तुम्हें मेरे पास देने को तो कुछ है नहीं; मैं तेरा ऋणी हूँ तथा तू मेरा धनी (साहूकार) है । बस इसी बात की तू मुझसे सनद लिखा ले ।’

हनुमान जी के बुद्धि-कौशल के कारण ही भगवान श्रीराम की अष्टयाम-सेवा का सौभाग्य भी उन्हें ही प्राप्त हुआ । चुटकी सेवा के कारण ही हनुमान जी श्रीराम-पंचायतन में छठे सदस्य के रूप में अपने प्रभु श्रीराम के चरणों में निरन्तर उनके मुख की ओर टकटकी लगाए हाथ जोड़े बैठे रहते हैं ।

हनुमान जी की ऐसी ही विलक्षण-बुद्धिसम्पन्नता तथा श्रीराम के संकट मोचन होने के कारण सीता जी ने उन्हें अमोघ आशीर्वाद दिया–

आसिष दीन्ह राम प्रिय जाना ।
होहु तात बल सील निधाना ।
अजर अमर गुन निधि सुत होहू।
करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ।। (मानस ५।१६।१)

अर्थात्—’वे बल, शील के निधान हों । अजर-अमर, गुणनिधि हों और श्रीराम जी उन पर बहुत स्नेह करें ।’ इस प्रकार सर्वोच्च गुणों की प्राप्ति का अमोघ आशीर्वाद हनुमान जी को सीता जी से मिला ।

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