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अयोध्या का राजसिंहासन और रावण

अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट रघु ने ही ‘रघुकुल’ या ‘रघुवंश’ की नींव रखी थी । रघुकुल अपने सत्य, तप, मर्यादा, वचन पालन, चरित्र व शौर्य के लिए जाना जाता है । इसी वंश में भागीरथ, अंबरीष, दिलीप, रघु, दशरथ और श्रीराम जैसे राजा हुए । रावण प्रकाण्ड विद्वान और त्रिकालदर्शी था । उसे पता था कि उसकी मृत्यु अयोध्यापति श्रीराम के हाथों होगी । अत: अयोध्या का विनाश करना उसका चिरकाल से संकल्प था ।

संकट मोचन और चतुर-शिरोमणि हनुमान जी

श्रीरामचरितमानस में जितना भी कठिन कार्य है, वह सब हनुमान जी द्वारा पूर्ण होता है । मां सीता की खोज, लक्ष्मण जी के प्राण बचाना, लंका में संत्रास पैदा करना, अहिरावण-वध, श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा--जैसे अनेक कार्य हनुमान जी ने अपने अद्भुत बुद्धि-चातुर्य से किए । आज भी कितने भी संकट में कोई क्यों न हो, हनुमान जी को जो करुणहृदय से पुकारता है, हनुमान जी उसकी रक्षा अवश्य करते हैं ।

राम जी की चरण-पादुकाएं

वन में राम जी के तपस्वी जीवन की तुलना में भरत जी का तपस्वी जीवन अधिक श्रेष्ठ है; क्योंकि वन में रह कर तप करना बहुत कठिन नहीं है । राजमहल में रह कर तप करने वाला सच्चा ब्रह्मनिष्ठ साधु है । सब प्रकार की अनुकूलता हो, विषयभोग के साधन हों फिर मन विषयों में न लगे; यही सच्ची साधुता है, सच्चा वैराग्य है । भिखारी को खाने को न मिले और फिर वह उपवास करे तो उसका कोई विशेष अर्थ नहीं है । सब कुछ होने पर भी मन किसी विषय में न जाए, यही सच्चा वैराग्य है ।