peepal tree savitri puja

‘अश्वत्थ: पूजितो यत्र पूजिता: सर्वदेवता:’ अर्थात् पीपल वृक्ष की पूजा करने से समस्त देवता पूजित हो जाते हैं; इसीलिए हिन्दू धर्म में  पीपल की पूजा अनादि काल से होती आई है । 

पीपल वृक्ष की पूजा क्यों की जाती है ?

पीपल भूलोक का कल्पवृक्ष है । इसकी हम कितनी भी पूजा करें; इसके उपकारों को मानव जाति भुला नहीं सकती है । दिव्य वृक्ष पीपल की पूजा इन कारणों से की जाती है—

प्राचीन काल में दैत्यों से पीड़ित देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और उनसे प्रार्थना करते हुए कहा—‘भगवन् ! हम राक्षसों से पीड़ित हैं । हमारे दु:खों की शान्ति किस प्रकार हो सकती है ?’

तब भगवान विष्णु ने कहा—‘मैं अश्वत्थ वृक्ष के रूप में भूतल पर विद्यमान हूँ । तुम लोग अश्वत्थ वृक्ष की सेवा-पूजा करो ।’

▪️माना जाता है कि पीपल के मूल में भगवान विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सब देवताओं के साथ भगवान अच्युत सदा निवास करते हैं; इसलिए पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है ।

▪️पीपल वृक्ष को ‘अश्वत्थ’ भी कहते हैं । श्रीमद्भगवद्गीता ( १०।२६) में भगवान श्रीकृष्ण पीपल वृक्ष को अपनी विभूति बताते हुए कहते हैं—‘अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम्’ अर्थात् ‘मैं वृक्षों में पीपल हूँ ।’ भगवान श्रीकृष्ण का विभूतिस्वरूप होने के कारण पीपल दिव्य वृक्ष है; इसलिए इसकी पूजा की जाती है । श्रीकृष्ण की तरह यह संसार को कर्मयोग की शिक्षा देता है । पीपल के पत्ते तब भी हिलते रहते हैं, जब अन्य पेड़ों के पत्ते नहीं हिलते हैं । इसी कारण पीपल को ‘चल-पत्र’ भी कहते हैं । प्रकृति में एकमात्र यही वृक्ष है जो बराबर प्राणवायु ‘ऑक्सीजन’ छोड़ता रहता है; इसलिए यह पर्यावरण को निरन्तर शुद्ध करता रहता है । 

▪️द्वापरयुग में परमधाम गमन से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण इस पवित्र अश्वत्थ वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानावस्थित हुए थे; इसलिए मृत आत्मा की शान्ति के लिए पीपल वृक्ष के मूल में जल चढ़ाते हैं । 

▪️पीपल के मूल (जड़) की सेवा (सीचने) से मनुष्य के पापों का नाश व सभी कामनाओं की पूर्ति होती है । वैशाख मास में पीपल वृक्ष को सींचने का महान फल बतलाया गया है । पीपल वृक्ष के नित्य दर्शन करने व प्रणाम करने से मनुष्य की धन-सम्पत्ति बढ़ती है और दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है ।

▪️प्रत्येक मनुष्य की जन्मकुण्डली में कोई-न-कोई दोष अवश्य होता है । पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पीपल की पूजा करने से कुण्डली के दोष—ग्रह पीड़ा, पितृदोष, कालसर्पयोग, विष योग आदि दूर हो जाते हैं ।

▪️पीपल की सेवा प्रत्येक शनिवार करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं । शनि की साढ़ेसाती और ढैया के प्रभाव से बचने के लिए हर शनिवार को व शनिश्चरी अमावस्या को पीपल वृक्ष की पूजा और 7 परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसों के तेल के दीपक को जला कर छाया-दान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है । 

▪️पीपल से निरन्तर ऑक्सीजन का निकलना तथा पत्तों की मधुर आवाज एकाग्रचित्तता में सहायक होती है जो कि साधना की आवश्यक शर्त है । पीपल वृक्ष के आस-पास ही ऋषि-मुनि, ज्ञानी-ध्यानी रहते थे । अत: ऐसा माना जाता है कि पीपल ज्ञान प्रदान करने में सहायता करता है । भगवान बुद्ध को गया में पीपल वृक्ष के नीचे ही ज्ञान प्राप्त हुआ था । 

▪️पीपल की छाया और पत्तों से छनी हुई हवा मानसिक चेतनता तथा स्फूर्ति प्रदान करती है । अत: यह नीरोग रखने में सहायता करता है । 

▪️वेद में कहा गया है कि कुष्ठ से मुक्ति के लिए पीपल की उपासना करनी चाहिए ।

है । 

पीपल की पूजा विधि

—पीपल की पूजा प्राय: शनिवार को की जाती है । 

—शनिवार को प्रात:काल तेल का आड़ी बत्ती वाला दीपक जला कर पीपल वृक्ष के पास रखें ।

—फिर तांबे के लोटे में जल लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं ।

—जिस प्रकार भगवान विष्णु की उपासना की जाती है; उसी प्रकार नारायणमय पीपल वृक्ष को सफेद चंदन, अक्षत, पुष्प, धूप व भोग अर्पित करना चाहिए । 

—इसके बाद पीपल की पांच, सात या ग्यारह जितनी बार कर सकें, परिक्रमा करनी चाहिए ।

—फिर इस मंत्र से प्रार्थना करते हुए नमस्कार करे —

अश्वत्थ सुमहाभाग सुभग प्रियदर्शन ।
इष्टकामांश्च मे देहि शत्रुभ्यस्तु पराभवम् ।।
आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं सर्वसम्पदम् ।
देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत: ।। (अश्वत्थ स्तोत्र १८-१९)

अर्थात्—महाभाग अश्वत्थ ! आप सुन्दर तथा प्रियदर्शन हो । आप मेरी मनोकामनाओं को पूर्ण करें । मेरे काम आदि शत्रुओं को हराएं । मुझे दीर्घ आयु, संतान, धन-धान्य, सौभाग्य तथा सभी प्रकार का ऐश्वर्य प्रदान करें । हे महावृक्ष मैं आपकी शरण में हूँ ।

—अंत में पीपल की जड़ का स्पर्श कर मस्तक से हाथ लगाएं ।

—पीपल के नीचे बैठकर मंत्र जप करना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है ।

—जिस कन्या की कुण्डली में ‘वैधव्य योग’ हो उसे ‘अश्वत्थ व्रत’ का पालन करना चाहिए ।

—अनुष्ठान आदि में और विशेष पर्वों जैसे—सोमवती अमावस्या, वट सावित्री अमावस्या आदि में पीपल वृक्ष की सूत्र (कलावा) लपेटते हुए १०८ परिक्रमा की जाती हैं ।

पीपल वृक्ष लगाने का पुण्य

पीपल वृक्ष लगाने की बड़ी महिमा है । इसका पुण्य अक्षय होता है—

—ऐसा कहा जाता है कि जिस प्रकार मनुष्य पीपल की छाया में बैठ कर अत्यंत सुखी होता है, उसी प्रकार पीपल वृक्ष लगाने वाला मृत्यु के बाद परमात्मा के निकट निवास करता हुआ अत्यंत सुखी होता है । उसे न तो यमलोक की यंत्रणा सहनी पड़ती है और न ही दारुण संताप ।

—इससे मनुष्य की वंश-परम्परा अक्षुण्ण रहती है और समस्त ऐश्वर्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है । यदि किसी शुभ दिन मनुष्य पीपल वृक्ष को लगा कर आठ वर्षों तक निरन्तर सींचे, उसका पुत्र के समान पालन करे, पूजन करे तो अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।

—पीपल वृक्ष को लगाने वाले के पितृगण मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं ।

पीपल के वृक्ष को काटना है निषेध

पीपल के वृक्ष को बिना प्रयोजन काटना अपने पितरों को काट देने के समान है । ऐसा करने से वंश की हानि होती है । यज्ञ आदि की समिधा के लिए इसको काटने पर कोई दोष नहीं लगता; बल्कि अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है । अगर कभी पीपल वृक्ष को हटाना या काटना पड़ जाए तो उसकी शास्त्रों में अलग से विधि दी गयी है ।

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