krishna bhagwan janam

मानव-तन पाना ही बहुत बड़ी निधि है । मनुष्य देह बार-बार नहीं मिलती; इसलिए इसे पाकर मनुष्य को भगवान का पूजन, अर्चन, भजन आदि सत्कर्मों का सौदा अवश्य कर लेना चाहिए । मनुष्य को हरसंभव प्रयास से इस जन्म को सार्थक बनाना चाहिए । कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण का पूजन-अर्चन मनुष्य को भवसागर से पार कराने वाला है । 

श्रीनागरीदासजी ने तो यह तक कह दिया कि—

करै कृष्ण की जो भक्ति अनन्यं ।
सुधन्यं, सुधन्यं, सुधन्यं, सुधन्यं ।।
सदाँ परिक्रमा दंडवत, नैम लीने ।
सुने गान गोविन्द, गाथा प्रवीने ।।
अलंकार, श्रृंगार, हरि के बनावे ।
रचै राजभोग, महाद्रव्य लावे ।।
करै कृष्ण की जो भक्ति अनन्यं ।
सुधन्यं, सुधन्यं, सुधन्यं, सुधन्यं ।।

भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित की जाने वाली विभिन्न वस्तुओं और पूजन का क्या है फल—यही इस ब्लॉग में बताया गया है—

भगवान श्रीकृष्ण को पूजन में अर्पित किए गए विभिन्न उपचारों का फल

—भगवान श्रीकृष्ण को जो निष्काम भाव से (बिना किसी कामना के) स्नान कराता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है ।

—जो मनुष्य श्रीकृष्ण को दूध से स्नान कराता है, उन्हें सौ अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता है ।

—जो स्नान से भीगे हुए श्रीकृष्ण विग्रह को वस्त्र से पौंछता है, उसके जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं ।

—जो मनुष्य भगवान श्रीकृष्ण के स्नान के समय भजन, श्लोक, पद या उनके नामों का गायन करता है, ताली बजाता है, वह जन्म लेने की पीड़ा से मुक्त हो जाता है, अर्थात् जन्म-मरण के चक्र से छूट जाता है ।

—जो मनुष्य भगवान श्रीकृष्ण को स्नान कराते समय शंख बजाता है, या उनके सहस्त्रनाम का पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षर पर कपिला गौ के दान का फल प्राप्त होता है ।

—जो मानव श्रीकृष्ण को सुन्दर, कोमल व ऋतु अनुकूल वस्त्र धारण कराता है, वह विष्णुधाम में निवास करता है ।

—जो भक्तिपूर्वक सोने, चांदी, रत्नों व मणियों के आभूषणों से माधव का सुन्दर श्रृंगार करता है, वह ब्रह्मा, इन्द्र आदि को भी दुर्लभ उत्तम फल को प्राप्त होता है ।

—जो जगदीश्वर श्रीकृष्ण को फूलों की माला धारण कराता है, उसे कपिला गौ के दान का फल प्राप्त होता है ।

—जो मनुष्य मंजरी सहित कोमल तुलसीदलों से देवकीनंदन श्रीकृष्ण की पूजा करता है, उसे यज्ञ करने, दान करने, तीर्थ सेवन करने, माता-पिता की सेवा करने, तथा वेधरहित द्वादशी तिथि को भगवान के सामने जागरण, नृत्य और शास्त्रों के पाठ करने का जो फल है—वह प्राप्त होता है ।

—भगवान श्रीकृष्ण को तुलसीमाला धारण कराने से द्वारका तीर्थ के सेवन का फल मिलता है ।

—जो भगवान को अगरु धूप निवेदित करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सुन्दर रूप प्राप्त होता है । जो मनुष्य भगवान को कपूर, घी व गुग्गुल आदि सुगन्धित पदार्थों की धूप देता है, उसे उत्तम पद की प्राप्ति होती है ।

—जो मनुष्य श्रीकृष्ण मंदिर के द्वार पर प्रतिदिन दीपमाला जगाता है, उसे पृथ्वी पर सम्राट का पद प्राप्त होता है ।

—जो मनुष्य भगवान को सुन्दर, सुगन्धित नैवेद्य निवेदन करता है, उसके पितर कल्पपर्यन्त तक तृप्त रहते हैं ।

—जो मनुष्य भगवान के आगे जल से भरी झारी या कलश (लोटा, लुटिया) रखते हैं, उसके पितर इतने तृप्त हो जाते हैं कि एक कल्प तक जल पीने की इच्छा नहीं रखते हैं ।

—जो भगवान श्रीकृष्ण को ताजे फल अर्पित करते हैं, उनके सभी मनोरथ कल्पपर्यन्त तक पूरे होते हैं ।

—जो भगवान को कपूर और सुपारी के साथ ताम्बूल (पान) निवेदित करता है, उसे देवपद की प्राप्ति होती है ।

—जो मनुष्य शंख में जल लेकर भगवान के ऊपर घुमाता है, वह कल्पपर्यन्त क्षीरसागर में भगवान विष्णु के समीप निवास करता है ।

—जो परमात्मा श्रीकृष्ण की परिक्रमा करता है, उसके कुल में किसी को यमलोक का दण्ड नहीं भोगना पड़ता है । 

—जो विष्णु सहस्त्रनाम या अन्य किसी स्तोत्र का पाठ करते हुए श्रीकृष्ण मंदिर की परिक्रमा करता है, उसे पग-पग पर पृथ्वी की परिक्रमा करने का पुण्य प्राप्त होता है ।

—जो श्वेत चंवर या पंखे से भगवान को हवा देकर प्रसन्न करता है, श्रीकृष्ण उसका मस्तक अपने मुंह से चूमते हैं ।

—जो मनुष्य श्रीकृष्ण के मंत्र—‘श्रीकृष्ण शरणं मम’ (श्रीकृष्ण मेरे आश्रय हैं) का जाप करता है, उसे श्रीकृष्ण की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है; क्योंकि यह आठ अक्षरों का भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त कराने वाला मंत्र है ।

—भगवान श्रीकृष्ण को श्रीमद्भगवद्गीता, गजेन्द्र-मोक्ष, भीष्मस्तवराज, श्रीविष्णुसहस्त्रनाम तथा अनुस्मृति  अत्यंत प्रिय हैं । जो इनका पाठ करते हैं, वे मोक्ष के भागी होते हैं ।

—जो मनुष्य भगवान श्रीकृष्ण के अन्य स्तोत्रों का पाठ करता है, भगवान उसके समीप आकर उस पर अपना कृपाहस्त रखते हैं और उसकी सभी कामनाएं पूर्ण करते हैं ।

—जो मनुष्य श्रीकृष्ण के मंदिर में फूल-बंगला सजाता है, वह पुष्पक विमान पर बैठ कर दिव्यलोक की क्रीडा करता है ।

—जो केले के खंभों से श्रीकृष्ण मंदिर को सुशोभित करता है, देवराज इंद्र स्वयं उसके स्वागत में खड़े रहते हैं ।

—जो श्रीकृष्ण मंदिर के ऊपर ध्वजा लगाता है, वह ब्रह्मलोक में निवास करता है ।

—जो श्रीकृष्ण मंदिर के आंगन में स्वस्तिक (सतिया) सजाता है, वह तीनों लोकों में पूज्य होता है ।

—जो मधुर वाणी में भगवान श्रीकृष्ण के भजन गाता है, उसे सामवेद के पाठ का फल प्राप्त होता है ।

—जो भक्तिभाव से भगवान के सम्मुख नृत्य करता है, प्रत्येक पद-संचालन पर उसके पाप भस्म होते चले जाते हैं ।

—जो भगवान श्रीकृष्ण के सामने भक्तिपूर्वक स्वस्तिवाचन करता है, उसे एक-एक अक्षर में सौ कपिला गाय दान का पुण्य मिलता है ।

—जो वेद के एक भी श्लोक का पाठ श्रीकृष्ण के सम्मुख करते हैं, उन्हें ब्रह्मलोक का निवास प्राप्त होता है ।

—जो मनुष्य भगवान को साष्टांग प्रणाम करता है, उसे दस हजार अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता है ।

इस घोर कलिकाल में श्रीकृष्ण की पूजा-सेवा मनुष्य का बेड़ा पार लगाने वाली है; लेकिन शर्त यह है कि इस पूजा में भाव होना चाहिए । क्योंकि पत्थर की ही सीढ़ी और पत्थर की ही देव-प्रतिमा होती है; परन्तु एक पर हम पैर रखते हैं और दूसरे की पूजा करते हैं । अत: भाव ही भगवान हैं अन्यथा सब बेकार है ।

भाव का भूखा हूँ मैं और भाव ही एक सार है ।
भाव से मुझको भजे तो भव से बेड़ा पार है ।।
भाव बिन सब कुछ भी दे डालो तो मैं लेता नहीं ।
भाव से एक फूल भी दे तो मुझे स्वीकार है ।।
भाव जिस जन में नहीं उसकी मुझे चिन्ता नहीं ।
भाव पूर्ण टेर ही करती मुझे लाचार है ।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here