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उत्तम भक्ति किसे कहते हैं ?

एक ही भगवान कई रूपों में हमारे सामने आते हैं। भूख लगने पर अन्नरूप में, प्यास लगने पर जलरूप में, रोग में औषधिरूप से, गर्मी में छायारूप में तो सर्दी में वस्त्ररूप में परमात्मा ही हमें प्राप्त होते हैं । परमात्मा ने जहां श्रीराम, कृष्ण आदि सुन्दर रूप धारण किए तो वहीं वराह (सूअर), कच्छप, मीन आदि रूप धारण कर भी लीला की । भगवान कभी पुष्प या सुन्दरता के रूप में आते हैं तो कहीं मांस-हड्डियां पड़ी हों, दुर्गन्ध आ रही हो, वह भी भगवान का ही रूप है । मृत्यु के रूप में भी भगवान ही आते है ।

भगवान विष्णु द्वारा नामदेवजी के एकादशी-व्रत की परीक्षा

यदि मनुष्य को श्रीहरि की प्रसन्नता व सांनिध्य चाहिए तो व्रत के नियम का पालन करना अनिवार्य है । एकादशी-व्रत के नियमानुसार इस दिन अन्न खाना निषिद्ध है, विशेष रूप से चावल (चावल से बना पोहा, लाई आदि) नहीं खाना चाहिए । एकादशी को व्रत करके रात्रि में जागरण व कीर्तन करने का विधान है; जिससे व्रती के सभी पाप भस्म होकर विष्णुलोक की प्राप्ति होती है ।

भगवान विष्णु के षोडशोपचार पूजन की विधि और मंत्र

हिन्दू धर्म में देवताओं का पूजन-कार्य 16 उपचार से किया जाता है । यद्यपि देवताओं को न तो पदार्थों की आवश्यकता होती है और न ही भूख । जब कोई सम्माननीय व्यक्ति हमारे घर पर आता है तो हम जो भी हमारे पास सर्वश्रेष्ठ वस्तुएं उपलब्ध होती हैं, उसके लिए प्रस्तुत करते हैं । फिर भगवान तो जगत्पिता, जगत के नियन्ता और जगत के पालक हैं; उनसे श्रेष्ठ, सम्माननीय और वन्दनीय और कौन हो सकता है ? इसलिए भगवान का पूजन षोडशोपचार विधि से किया जाता है ।

देवी तुलसी और शालग्राम : प्रादुर्भाव कथा

तुलसी के शरीर से गण्डकी नदी उत्पन्न हुई और भगवान श्रीहरि उसी के तट पर मनुष्यों के लिए पुण्यप्रद शालग्राम बन गए । तुलसी अपना वह शरीर त्याग कर और दिव्य रूप धारण करके श्रीहरि के वक्ष:स्थल पर लक्ष्मी की भांति सुशोभित होने लगीं ।

विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ की महिमा

एक बार युधिष्ठिर ने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण ध्यान में बैठे हैं । ध्यान पूर्ण होने पर युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा—‘प्रभु ! सब लोग आपका ध्यान करते हैं, आप किसका ध्यान कर रहे थे ?’ भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘मेरा भक्त गंगा तट पर शरशय्या पर पड़ा मेरा ध्यान कर रहा है और मैं अपने उस प्रिय भक्त का ध्यान कर रहा हूँ ।’

पाद-सेवन भक्ति की आचार्या लक्ष्मीजी

लक्ष्मीजी जिस पर कृपा करती हैं, तो उनका मद दूसरों को हो जाता है, लेकिन स्वयं लक्ष्मीजी को अपने गुणों, ऐश्वर्य, श्री का मद नहीं होता है क्योंकि भगवान नारायण सदैव लक्ष्मी से विरत रहते हैं । जानें, इसकी सुन्दर व्याख्या ।

भगवान विष्णु के चरण-चिह्न और उनका भाव

भगवान के चरणरज की ऐसी महिमा है कि यदि इस मानव शरीर में त्रिभुवन के स्वामी भगवान विष्णु के चरणारविन्दों की धूलि लिपटी हो तो इसमें अगरू, चंदन या अन्य कोई सुगन्ध लगाने की जरूरत नहीं, भगवान के भक्तों की कीर्तिरूपी सुगन्ध तो स्वयं ही सर्वत्र फैल जाती है ।

भगवान विष्णु ने गरुड़ को अपना वाहन क्यों बनाया ?

गरुड़जी भगवान विष्णु के परिकर ही नहीं दास, सखा, वाहन, आसन, ध्वजा, वितान (छतरी, canopy) एवं व्यजन (पंखा) के रूप में जाने जाते हैं । जानें, गरुड़जी को सुपर्ण क्यों कहा जाता है ?

भगवान विष्णु का द्वादशाक्षर मन्त्र

द्वादशाक्षर मन्त्र बहुत ही प्रभावशाली मन्त्र है । मनुष्य सत्कर्म करते हुए सोते-जागते, चलते, उठते भगवान के इस द्वादशाक्षर मन्त्र का निरन्तर जप करता है तो वह सभी पापों से छूट कर सद्गति को प्राप्त होता है । लक्ष्मी की बड़ी बहिन अलक्ष्मी (दरिद्रा) भगवान के नाम को सुनकर उस घर से तुरन्त भाग खड़ी होती है ।

भगवान विष्णु का सद्गुरु रूप में ‘दत्तात्रेय’ अवतार

भगवान विष्णु ने दत्तात्रेयजी के रूप में अवतरित होकर जगत का बड़ा ही उपकार किया है । उन्होंने श्रीगणेश, कार्तिकस्वामी, प्रह्लाद, परशुराम आदि को अपना उपदेश देकर उन्हें उपकृत किया । कलियुग में भी भगवान शंकराचार्य, गोरक्षनाथजी, महाप्रभु आदि पर दत्रात्रेयजी ने अपना अनुग्रह बरसाया । संत ज्ञानेश्वर, जनार्दनस्वामी, एकनाथजी, दासोपंत, तुकारामजी—इन भक्तों को दत्तात्रेयजी ने अपना प्रत्यक्ष दर्शन दिया ।