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उत्तम भक्ति किसे कहते हैं ?

एक ही भगवान कई रूपों में हमारे सामने आते हैं। भूख लगने पर अन्नरूप में, प्यास लगने पर जलरूप में, रोग में औषधिरूप से, गर्मी में छायारूप में तो सर्दी में वस्त्ररूप में परमात्मा ही हमें प्राप्त होते हैं । परमात्मा ने जहां श्रीराम, कृष्ण आदि सुन्दर रूप धारण किए तो वहीं वराह (सूअर), कच्छप, मीन आदि रूप धारण कर भी लीला की । भगवान कभी पुष्प या सुन्दरता के रूप में आते हैं तो कहीं मांस-हड्डियां पड़ी हों, दुर्गन्ध आ रही हो, वह भी भगवान का ही रूप है । मृत्यु के रूप में भी भगवान ही आते है ।

रोम रोम से श्रीकृष्ण नाम

भगवान के नाम में विलक्षण शक्ति है । जिस प्रकार किसी व्यक्ति का नाम लेने पर वही आता है; ठीक उसी तरह ‘श्रीकृष्ण’ नाम का उच्चारण करने पर वह तीर की तरह लक्ष्यभेद करता हुआ सीधे भगवान के हृदय पर प्रभाव करता है; जिसके फलस्वरूप मनुष्य श्रीकृष्ण कृपा का भाजन बनता है । जहाँ कहीं और कभी भी शुद्ध हृदय से ‘कृष्ण’ नाम का उच्चारण होता है; वहाँ-वहाँ स्वयं कृष्ण अपने को व्यक्त करते हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्तों की प्रार्थनाएं

भगवान के अनन्य भक्त भगवान को पाने की ही प्रार्थना करते हैं । परमात्मा के बिछोह में भक्त की तड़पन पर जो कुछ उनके हृदय से निकलता है, वही सच्ची प्रार्थना है और वही भगवान के प्रेम की प्राप्ति का उपाय है ।

पाद-सेवन भक्ति की आचार्या लक्ष्मीजी

लक्ष्मीजी जिस पर कृपा करती हैं, तो उनका मद दूसरों को हो जाता है, लेकिन स्वयं लक्ष्मीजी को अपने गुणों, ऐश्वर्य, श्री का मद नहीं होता है क्योंकि भगवान नारायण सदैव लक्ष्मी से विरत रहते हैं । जानें, इसकी सुन्दर व्याख्या ।

भगवान विट्ठल और भक्त कान्होपात्रा

यह कहते-कहते कान्होपात्रा की देह अचेतन हो गई । उसमें से एक ज्योति निकली और वह भगवान की ज्योति में मिल गई । कान्हूपात्रा की अचेतन देह भगवान पण्ढरीनाथ के चरणों पर आ गिरी । कान्होपात्रा की अस्थियां मंदिर के दक्षिण द्वार पर गाड़ी गईं । मंदिर के समीप कान्होपात्रा की मूर्ति खड़ी-खड़ी आज भी पतितों को पावन कर रही है ।

गुरु-भक्ति से युगल स्वरूप के दर्शन : भक्ति कथा

युगलस्वरूप के साक्षात् दर्शन करने से श्रीविट्ठलविपुलदेव के नेत्र स्तब्ध और देह जड़ हो गई, नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगे । मुख से बोल निकले—‘हे रासेश्वरी ! आप करुणा करके मुझे अपनी नित्यलीला में स्थान दो । अब मेरे प्राण संसार में नहीं रहना चाहते हैं ।’

सुने री मैंने निर्बल के बल राम

भगवान को अपने बल का अभिमान अच्छा नहीं लगता तभी कहा गया है—निरबल के बल राम

श्रीराधा : एक साधारण गोपी या अलौकिक चरित्र

श्रीकृष्ण ने नंदबाबा ले कहा—कहा--’जैसे दूध में धवलता होती है, दूध और धवलता में कभी भेद नहीं होता; जैसे जल में शीतलता, अग्नि में दाहिका शक्ति, आकाश में शब्द, भूमि में गन्ध, चन्द्रमा में शोभा, सूर्य में प्रभा और जीव में आत्मा है; उसी प्रकार राधा के साथ मुझको अभिन्न समझो । तुम राधा को साधारण गोपी और मुझे अपना पुत्र न जानो । मैं सबका उत्पादक परमेश्वर हूँ और राधा ईश्वरी प्रकृति है ।

संत एकनाथ के घर श्राद्ध में पितरों का आगमन

नि:स्वार्थ सेवा करने का कोई फल नहीं है बल्कि मनुष्य स्वयं फलदाता हो जाता है । सच्चे वैष्णव के आगे तो देवता भी हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं । आवाहन करने पर पितर भी स्थूल शरीर में प्रकट होकर भोजन ग्रहण कर लेते हैं ।

सीताजी को किसके शाप के कारण श्रीराम का वियोग सहना पड़ा...

सीताजी के जीवन में आने वाले विरह दु:ख का बीज उसी समय पड़ गया । इसी वैर भाव का बदला लेने के लिए वही तोता अयोध्या में धोबी के रूप में प्रकट हुआ और उसके लगाये लांछन के कारण सीताजी को वनवास भोगना पड़ा ।