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पुराणों के सर्वश्रेष्ठ वक्ता : रोमहर्षण सूतजी

एक बार राजा पृथु ने यज्ञ का आयोजन किया । यज्ञ में देवराज इन्द्र को हवि का भाग देने के लिए सोम-रस निचोड़ा जा रहा था कि यज्ञ कराने वाले ऋषियों की गलती से इन्द्र के हवि में बृहस्पति का हवि (आहुति) मिल गया और उसे ही इन्द्र को अर्पण कर दिया गया । इसी हवि से अत्यन्त तेजस्वी सूतजी की उत्पत्ति हुई ।

भगवान रंगनाथ की प्रेम-पुजारिन आण्डाल

जैसे ही आण्डाल ने मन्दिर में प्रवेश किया, वह भगवान की शेषशय्या पर चढ़ गयी । चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया और लोगों के देखते-ही-देखते आण्डाल सबके सामने भगवान श्रीरंगनाथ में विलीन हो गयी ।

श्रीराधा कृष्ण की युगल उपासना स्तोत्र : युगलकिशोराष्टक

हिन्दी अर्थ सहित -- नवजलधर विद्युद्धौतवर्णौ प्रसन्नौ, वदननयन पद्मौ चारूचन्द्रावतंसौ । अलकतिलक भालौ केशवेशप्रफुल्लौ, भज भजतु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ।।१।।

अहंकार से बचने के लिए क्या कहती है गीता

अर्जुन को लगता था कि भगवान श्रीकृष्ण का सबसे लाड़ला मैं ही हूँ । उन्होंने मेरे प्रेम के वश ही अपनी बहिन सुभद्रा को मुझे सौंप दिया है, इसीलिए युद्धक्षेत्र में वे मेरे सारथि बने । यहां तक कि रणभूमि में स्वयं अपने हाथों से मेरे घोड़ों के घाव तक भी धोते रहे । यद्यपि मैं उनको प्रसन्न करने के लिए कुछ नहीं करता फिर भी मुझे सुखी करने में उन्हें बड़ा सुख मिलता है ।

गीता में सगुण और निर्गुण भक्ति

गोपियां निर्गुण ब्रह्म से सगुण श्रीकृष्ण को श्रेष्ठ बताती हुई उद्धवजी से कहती हैं—‘हे उद्धव ! आपका अनोखा रूप रहित ब्रह्म हमारे किस काम का है, अर्थात् वह हमारे किसी काम का नहीं है । हमें तो ऐसे सगुण-साकार ब्रह्म की चाह है, जिसे हम देख सकें और जो हमारे बीच रहकर हमारे सभी दैनिक कार्यों में सहायक हो ।’

श्रीकृष्ण कृपा और भक्ति देने वाला ‘श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र’

श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (कृष्णाष्टक) भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा रचित बहुत सुन्दर स्तुति है । बिना जप, बिना सेवा एवं बिना पूजा के भी केवल इस स्तोत्र मात्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है।

गीता का स्थितप्रज्ञ भक्त कवि धनंजय

गीता में अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते है—हे मधुसूदन ! ये स्थितप्रज्ञ क्या होता है ? इसे समझाओ ! भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—‘पार्थ ! दुःख भोगते हुए भी जिसके मन में उद्वेग नहीं होता और जो न ही सुख की लालसा रखता है तथा जिसके ह्रदय में क्रोध, मोह, भय आदि विकारों के लिए कोई स्थान नहीं होता है वह मनुष्य स्थितप्रज्ञ है, वह मुनि, संन्यासी स्थिरबुद्धि कहा जाता है ।’

जिन नैनन श्रीकृष्ण बसे, वहां कोई कैसे समाय

श्रीराधा की पायल सूरदासजी के हाथ में आ गई । श्रीराधा के पायल मांगने पर सूरदासजी ने कहा पहले मैं तुम्हें देख लूं, फिर पायल दूंगा । दृष्टि मिलने पर सूरदासजी ने श्रीराधाकृष्ण के दर्शन किए । जब उन्होंने कुछ मांगने को कहा को सूरदासजी ने कहा—‘जिन आंखों से मैंने आपको देखा, उनसे मैं संसार को नहीं देखना चाहता । मेरी आंखें पुन: फूट जायँ ।’

गीता के अनुसार कौन है सर्वश्रेष्ठ भक्त

मैं अपने भक्तों के कष्ट को सहन नहीं कर सकता । अपने सिवा मैं और किसी को भक्त की सेवा के योग्य नहीं समझता । इसलिए मैंने तुम्हारी सेवा की है । तुम जानते हो कि प्रारब्धकर्म भोगे बिना नष्ट नहीं होते हैं— यह मेरा नियम है और मैं यह क्यों तोडूं ।

भगवान का पेट कब भरता है?

पूजन-कर्म करते समय रखें इस बात का ध्यान