bhagwan shri krishna bansuri vasudev

चातुर्मास्य में ले कोई एक नियम पालन करने का संकल्प

भगवान विष्णु के शयन करने पर चातुर्मास्य (श्रावणमास से कार्तिक तक) जो कोई नियम का पालन किया जाता है, वह अनन्त फल देने वाला होता है । अत: मनुष्य को अपने कल्याण के लिए चातुर्मास्य में कोई एक नियम अवश्य ग्रहण करना चाहिए ।

पद्मपुराण के अनुसार चातुर्मास्य में प्रतिदिन स्नान करके जो भगवान वासुदेव के सामने खड़ा होकर ‘पुरुषसूक्त’, ‘विष्णुसहस्त्रनाम’, ‘श्रीनन्दकुमाराष्टक’ या कोई अन्य स्तोत्र का पाठ करता है तो उसकी बुद्धि बढ़ती है और उसके शरीर से सारे पाप निकल जाते हैं ।

सरल, छोटा किन्तु अत्यन्त प्रभावशाली स्तोत्र है श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र

चातुर्मास्य में भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिए एक सरल, छोटा किन्तु अत्यन्त प्रभावशाली स्तोत्र है श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र। इसका यदि नित्य पाठ किया जाए तो भगवान श्रीकृष्ण की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है और उनकी कृपा से क्या नहीं हो सकता ?

‘मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम्’ अर्थात् उन परमानन्दस्वरूप माधव की कृपा से गूंगे बहुत बोलने लगते हैं; पंगु (लंगड़े) पहाड़ को लांघ जाते हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण मंगलरूप हैं अत: उनके नाम-रूप-लीला का गान भी मंगलरूप हैं । जो मनुष्य भगवान श्रीकृष्ण के स्तोत्र आदि का पाठ करते हैं उनकी वाणी शुद्ध होकर आत्मा को पावन कर देती है और मनुष्य श्रीकृष्णस्वरूप होकर उनमें इस तरह मिल जाता है जैसे हवन में डाला हुआ घी अग्नि में मिल जाता है अर्थात् भगवान के साक्षात्कार के योग्य बन जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ब्रह्माजी से कहते हैं–‘जो कृष्ण ! कृष्ण !! कृष्ण !!!–यों कहकर मेरा प्रतिदिन स्मरण करता है, उसे जिस प्रकार कमल जल को भेद कर ऊपर निकल जाता है, उसी प्रकार मैं नरक से उबार लेता हूँ ।’

श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (कृष्णाष्टक) भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा रचित बहुत सुन्दर स्तुति है । बिना जप, बिना सेवा एवं बिना पूजा के भी केवल इस स्तोत्र मात्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है।

श्रीशंकराचार्यजी द्वारा रचित श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,
स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम् ।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं,

अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ॥१॥

भावार्थ–व्रजभूमि के एकमात्र आभूषण, समस्त पापों को नष्ट करने वाले तथा अपने भक्तों के चित्त को आनन्द देने वाले नन्दनन्दन को सदैव भजता हूँ, जिनके मस्तक पर मोरमुकुट है, हाथों में सुरीली बांसुरी है तथा जो प्रेम-तरंगों के सागर हैं, उन नटनागर श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ ।

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं,
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् ।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं,

महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्ण वारणम् ॥२॥

भावार्थ–कामदेव का मान मर्दन करने वाले, बड़े-बड़े सुन्दर चंचल नेत्रों वाले तथा व्रजगोपों का शोक हरने वाले कमलनयन भगवान को मेरा नमस्कार है, जिन्होंने अपने करकमलों पर गिरिराज को धारण किया था तथा जिनकी मुसकान और चितवन अति मनोहर है, देवराज इन्द्र का मान-मर्दन करने वाले, गजराज के सदृश मत्त श्रीकृष्ण भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ ।

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं,
व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम् ।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ॥३॥

भावार्थ–जिनके कानों में कदम्बपुष्पों के कुंडल हैं, जिनके अत्यन्त सुन्दर कपोल हैं तथा व्रजबालाओं के जो एकमात्र प्राणाधार हैं, उन दुर्लभ भगवान कृष्ण को नमस्कार करता हूँ; जो गोपगण और नन्दजी के सहित अति प्रसन्न यशोदाजी से युक्त हैं और एकमात्र आनन्ददायक हैं, उन गोपनायक गोपाल को नमस्कार करता हूँ ।

सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं,
दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम् ।
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं,
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ॥४॥

भावार्थ–जिन्होंने मेरे मनरूपी सरोवर में अपने चरणकमलों को स्थापित कर रखा है, उन अति सुन्दर अलकों वाले नन्दकुमार को नमस्कार करता हूँ तथा समस्त दोषों को दूर करने वाले, समस्त लोकों का पालन करने वाले और समस्त व्रजगोपों के हृदय तथा नन्दजी की वात्सल्य लालसा के आधार श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ ।

भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं,
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् ।
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं,
दिने-दिने नवं-नवं नमामि नन्दसम्भवम् ॥५॥

भावार्थ–भूमि का भार उतारने वाले, भवसागर से तारने वाले कर्णधार श्रीयशोदाकिशोर चित्तचोर को मेरा नमस्कार है। कमनीय कटाक्ष चलाने की कला में प्रवीण सर्वदा दिव्य सखियों से सेवित, नित्य नए-नए प्रतीत होने वाले नन्दलाल को मेरा नमस्कार है ।

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं,
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनं ।
नवीन गोपनागरं नवीनकेलि-लम्पटं,
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम् ।।६।।

भावार्थ–गुणों की खान और आनन्द के निधान कृपा करने वाले तथा कृपा पर कृपा करने के लिए तत्पर देवताओं के शत्रु दैत्यों का नाश करने वाले गोपनन्दन को मेरा नमस्कार है। नवीन-गोप सखा नटवर नवीन खेल खेलने के लिए लालायित, घनश्याम अंग वाले, बिजली सदृश सुन्दर पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

समस्त गोप मोहनं, हृदम्बुजैक मोदनं,
नमामिकुंजमध्यगं प्रसन्न भानुशोभनम् ।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं,
रसालवेणुगायकं नमामिकुंजनायकम् ।।७।।

भावार्थ–समस्त गोपों को आनन्दित करने वाले, हृदयकमल को प्रफुल्लित करने वाले, निकुंज के बीच में विराजमान, प्रसन्नमन सूर्य के समान प्रकाशमान श्रीकृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है। सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले, वाणों के समान चोट करने वाली चितवन वाले, मधुर मुरली में गीत गाने वाले, निकुंजनायक को मेरा नमस्कार है।

विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं,
नमामि कुंजकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम् ।
किशोरकान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम् ।।८।।

भावार्थ–चतुर गोपिकाओं की मनोज्ञ तल्प (मनरूपी शय्या) पर शयन करने वाले, कुंजवन में बढ़ी हुई विरह अग्नि को पान करने वाले, किशोरावस्था की कान्ति से सुशोभित अंग वाले, अंजन लगे सुन्दर नेत्रों वाले, गजेन्द्र को ग्राह से मुक्त करने वाले, श्रीजी के साथ विहार करने वाले श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ।

स्तोत्र पाठ का फल

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा,
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् ।
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान्,

भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान ॥९॥

प्रभो! मेरे ऊपर ऐसी कृपा हो कि जहां-कहीं जैसी भी परिस्थिति में रहूँ, सदा आपकी सत्कथाओं का गान करूँ। जो पुरुष इन दोनों—-श्रीराधा कृपाकटाक्ष व श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष अष्टकों का पाठ या जप करेगा, वह जन्म-जन्म में नन्दनन्दन श्यामसुन्दर की भक्ति से युक्त होगा और उसको साक्षात् श्रीकृष्ण मिलते हैं ।

नंदनन्दन से प्रार्थना

लिख दे सांवरे किस्मत कुछ ऐसी कि,
बची हुई जिन्दगी तेरी सेवा में गुजर जाए ।
आने वाली पीढ़ी जब करेगी चर्चा तेरे दीवानों की,
तब एक नाम हमारा भी आ जाए ।।

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