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श्रीमद्वल्लभाचार्यजी विरचित ‘कृष्णाश्रय’ स्तोत्र

कृष्णाश्रय का अर्थ है सदा-सर्वदा पति, पुत्र, धन, गृह--सब कुछ श्रीकृष्ण ही हैं-- इस भाव से व्रजेश्वर श्रीकृष्ण की सेवा करनी चाहिए, भक्तों का यही धर्म है । इसके अतिरिक्त किसी भी देश, किसी भी वर्ण, किसी भी आश्रम, किसी भी अवस्था में और किसी भी समय अन्य कोई धर्म नहीं है ।

चिन्ता, क्लेश, भय दूर करने वाला क्लेशहर स्तोत्र

भगवान श्रीकृष्ण के इस नामरूपी अमृत वाले स्तोत्रका श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य के दोषों और क्लेशों का नाश होकर पुण्य और भक्ति की प्राप्ति होती है । निष्काम भाव से यदि इस स्तोत्र का पाठ किया जाए तो मनुष्य मोक्ष का अधिकारी होता है ।

श्रीकृष्ण कृपा और भक्ति देने वाला ‘श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र’

श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (कृष्णाष्टक) भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा रचित बहुत सुन्दर स्तुति है । बिना जप, बिना सेवा एवं बिना पूजा के भी केवल इस स्तोत्र मात्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है।

श्रीवल्लभाचार्यजी द्वारा रचित श्रीकृष्ण की नित्य स्तुति ‘श्रीनन्दकुमाराष्टक’

‘नन्दकुमाराष्टक’ महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्यजी द्वारा रचित है। इसमें आनन्दकन्द व्रजचन्द की अनेक लीलाओं का मधुर वर्णन है। श्रीनन्दकुमार व्रजराज भक्तों के भय-भंजन हैं, दुष्ट-निकंदन हैं, जन-मन-रंजन हैं। जो वैष्णवभक्त नित्यप्रति प्रेम से इस नन्दकुमाराष्टक का पाठ करते हैं, उन्हें मानसिक शान्ति प्राप्त होती है व किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता तो और देहत्याग के बाद मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र

भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ब्रह्माजी से कहते हैं--जो कृष्ण ! कृष्ण !! कृष्ण !!!--यों कहकर मेरा प्रतिदिन स्मरण करता है, उसे जिस प्रकार कमल जल को भेद कर ऊपर निकल जाता है, उसी प्रकार मैं नरक से उबार लेता हूँ। श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (कृष्णाष्टक) भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा रचित बहुत सुन्दर स्तुति है। बिना जप, बिना सेवा एवं बिना पूजा के भी केवल इस स्तोत्र मात्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है।