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हिन्दू धर्म में वेद, उपनिषद्, पुराण आदि ज्ञान के अथाह सागर हैं । मानव जीवन की हर समस्या का समाधान उनमें छिपा हुआ है । भगवान वेदव्यास जानते थे कि कलियुग में मानव नाना प्रकार के क्लेशों, चिन्ताओं व भयों से ग्रस्त रहेगा, इसलिए उन्होंने अपने पुराणों में मनुष्य के कल्याण के लिए विभिन्न स्तोत्रों की रचना की ।

राजा ययाति : अत्यधिक भोग से उपजा वैराग्य

श्रीमद्भागवत के नवम् स्कन्ध के अठारहवें और उन्नीसवें अध्याय में राजा ययाति का वर्णन मिलता है ।

राजा नहुष ने अपने द्वितीय पुत्र ययाति को राजा बनाया । ययाति का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के साथ हुआ। अपने ससुर शुक्रचार्य के शाप से वह असमय ही बूढ़े हो गए थे । ययाति ने अपनी वृद्धावस्था अपने पुत्रों को देकर उनका यौवन प्राप्त करना चाहा, परन्तु सभी पुत्रों ने मना कर दिया । उनके सबसे छोटे पुत्र पुरू ने अपना यौवन पिता को देकर उनका बुढ़ापा ले लिया ।

राजा ययाति एक सहस्र वर्ष तक भोग लिप्सा में लिप्त रहे किन्तु उन्हें तृप्ति नहीं मिली । विषय वासना से तृप्ति न मिलने पर उन्हें उनसे घृणा हो गई और उन्होंने पुरु की युवावस्था वापस लौटा कर वैराग्य धारण कर लिया। ययाति को ज्ञान प्राप्त हुआ कि—‘हमने भोग नहीं भोगे बल्कि भोगों ने हमको भोगा है, विषयों की तृष्णा जीर्ण नहीं हुई, हम ही जीर्ण हो गए ।’

राजा ययाति ने अपनी प्रजा को क्लेशों से मुक्ति दिलाने के लिए ‘क्लेशहर स्तोत्र’ की रचना की । अंत में गंभीर तपस्या से उन्होंने भगवान वासुदेव को प्राप्त कर लिया ।

क्लेशहर नामामृत स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित

श्रीकेशवं क्लेशहरं वरेण्यमानन्दरूपं परमाथमेव ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। १ ।।

अर्थात्—भगवान केशव सबका क्लेश हरने वाले, सबसे श्रेष्ठ, आनन्दरूप और परमार्थ-तत्त्व हैं । उनका नामरूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।

श्रीपद्मनाभं कमलेक्षणं च आधाररूपं जगतां महेशम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। २ ।।

अर्थात्—भगवान विष्णु की नाभि से कमल प्रकट हुआ है । उनके नेत्र कमल के समान सुन्दर हैं । वे जगत के आधारभूत और महेश्वर हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।

पापापहं व्याधि विनाशरूपमानन्ददं दानवदैत्य नाशनम्।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ३ ।।

अर्थात्—भगवान विष्णु पापों का नाश करके आनन्द प्रदान करते हैं । वे दानवों और दैत्यों का संहार करने वाले हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।

यज्ञांगरूपं च रथांगपाणिं पुण्याकरं सौख्यमनन्तरूपम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ४ ।।

अर्थात्—यज्ञ भगवान के अंगरूप हैं, उनके हाथ में सुदर्शनचक्र शोभा पाता है । वे पुण्य की निधि और सुख रूप हैं । उनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं है । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।

विश्वाधिवासं विमलं विरामं रामाभिधानं रमणं मुरारिम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ५ ।।

अर्थात्—सम्पूर्ण विश्व उनके हृदय में निवास करता है । वे निर्मल, सबको आराम देने वाले, ‘राम’ नाम से विख्यात, सबमें रमण करने वाले तथा मुर दैत्य के शत्रु हैं । उनका नामरूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।

आदित्यरूपं तमसां विनाशं चन्द्रप्रकाशं मलपंकजानाम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ६ ।।

अर्थात्—भगवान केशव आदित्य (सूर्य) स्वरूप, अंधकार के नाशक, मल रूप कमलों के लिए चांदनी रूप हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।

सखड्गपाणिं मधुसूदनाख्यं तं श्रीनिवासं सगुणं सुरेशम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ७ ।।

अर्थात्—जिनके हाथों में नन्दक नामक खड्ग है, जो मधुसूदन नाम से प्रसिद्ध, लक्ष्मी के निवास स्थान, सगुण और देवेश्वर हैं, उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।

नामामृतं दोषहरं सुपुण्यमधीत्य यो माधवविष्णुभक्त: ।
प्रभातकाले नियतो महात्मा स याति मुक्तिं न हि कारणं च ।। ८ ।।

अर्थात्—यह नामामृत स्तोत्र दोषहारी और पुण्य देने वाला है । लक्ष्मीपति भगवान विष्णु में भक्ति रखने वाला जो पुरुष प्रतिदिन प्रात:काल नियमपूर्वक इसका पाठ करता है, वह मुक्त हो जाता है, पुन: प्रकृति के अधीन नहीं होता है ।

स्तोत्र पाठ का फल

भगवान श्रीकृष्ण के इस नाम रूपी अमृत वाले स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य के दोषों और क्लेशों का नाश होकर पुण्य और भक्ति की प्राप्ति होती है । निष्काम भाव से यदि इस स्तोत्र का पाठ किया जाए तो मनुष्य मोक्ष का अधिकारी होता है ।

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