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भगवान के अनेक नाम क्यों होते हैं ?

जानें, परमात्मा के परम प्रभावशाली 11 नाम जिनके जप से मनुष्य कोटि जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है ।

भगवान श्रीकृष्ण की वंशी का अवतार श्रीहित हरिवंशजी गोस्वामी

श्रीहित हरिवंशजी की उपासना पद्धति में श्रीराधाजी की प्रधानता है और ये श्रीराधाकृष्ण की निकुंज लीला में अपने को एक सखी मान कर उनकी सेवा करते थे । श्रीराधा ने इन्हें दर्शन देकर अपनी सेवा-पद्धति और मन्त्र का उपदेश दिया और अपना शिष्य बना लिया ।

श्रीकृष्ण : ‘वेदों में मैं सामवेद हूँ’

श्रीकृष्ण चरित्र भी सामवेद के इस मन्त्र की तरह मनुष्य को हर परिस्थिति में सम रह कर जीना सिखाता है । भगवान श्रीकृष्ण की सारी लीला में एक बात दिखती है कि उनकी कहीं पर भी आसक्ति नहीं है । द्वारकालीला में सोलह हजार एक सौ आठ रानियां, उनके एक-एक के दस-दस बेटे, असंख्य पुत्र-पौत्र और यदुवंशियों का लीला में एक ही दिन में संहार करवा दिया, हंसते रहे और यह सोचकर संतोष की सांस ली कि पृथ्वी का बचा-खुचा भार भी उतर गया ।

भक्ति की शक्ति : जब भगवान ने की भक्त की सेवा

‘बड़ी मां ! बड़ी मां !’ बाहर से किसी ने आवाज दी । गोपीबाई की नींद खुल गई । उन्होंने लेटे-लेटे ही पूछा—‘कौन है ?’ बाहर से आवाज आई ‘मैं श्याम हूँ ।’ गोपीबाई ने कहा—‘किवाड़ खुले पड़े हैं, अन्दर आ जाओ ।’

कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए पढ़ें कालिय-नाग दमन लीला

भगवान ने कालिय नाग से कहा—‘मैंने तुम्हारे सिर पर अपने चरणों की मुहर लगा दी है, अब तुम वैष्णव हो गए और मेरे नित्य पार्षदों में शामिल हो गए हो । तुम्हारी और गरुड़जी की जो दुश्मनी थी वह मेरे चरण-चिह्न अंकित होने से समाप्त हो गयी है ।’

चिन्ता, क्लेश, भय दूर करने वाला क्लेशहर स्तोत्र

भगवान श्रीकृष्ण के इस नामरूपी अमृत वाले स्तोत्रका श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य के दोषों और क्लेशों का नाश होकर पुण्य और भक्ति की प्राप्ति होती है । निष्काम भाव से यदि इस स्तोत्र का पाठ किया जाए तो मनुष्य मोक्ष का अधिकारी होता है ।

एक यशोदा कलियुग की

मां लीलावती और उसके बालकृष्ण दोनों ही लाड़ लड़ाते हुए एक-दूसरे की इच्छा पूरी करने लगे । लीलावती ने सदा-सदा के लिए अपने बालकृष्ण को पा लिया और बालकृष्ण ने भी उसका दुग्धपान कर उसे कलियुग में दूसरी यशोदा मां का दर्जा दे दिया ।

श्रीराधा कृष्ण की युगल उपासना स्तोत्र : युगलकिशोराष्टक

हिन्दी अर्थ सहित -- नवजलधर विद्युद्धौतवर्णौ प्रसन्नौ, वदननयन पद्मौ चारूचन्द्रावतंसौ । अलकतिलक भालौ केशवेशप्रफुल्लौ, भज भजतु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ।।१।।

श्रीकृष्ण कृपा और भक्ति देने वाला ‘श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र’

श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (कृष्णाष्टक) भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा रचित बहुत सुन्दर स्तुति है । बिना जप, बिना सेवा एवं बिना पूजा के भी केवल इस स्तोत्र मात्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है।

व्रज में रथ चढ़ चले री गोपाल

रथयात्रा का संदेश है कि मानव-शरीर रूपी रथ पर श्रीकृष्ण को आरूढ़ कर दिया जाए तो कंसरूपी पापी वृत्तियों का अंत हो जाएगा जिससे शरीर व आत्मा स्वयं श्रीकृष्णमय (दिव्य) हो जाएंगे और जीवन सदैव के लिए एक महोत्सव बन जाएगा ।