shri radha rani darshan

किसी की देवता की चालीस पदों में गाई गई स्तुति को ‘चालीसा’ कहते हैं । चालीसा में देवता के रूप, गुण, लीलाओं व कृपा का वर्णन होता है । अपनी प्रशंसा किसे पसंद नहीं होती है, इसलिए जब चालीसा का पाठ किया जाता है तो उसे सुनकर वह देवता प्रसन्न होते हैं और साधक पर अपनी कृपा बरसाने लगते हैं ।

श्रीराधा की स्तुति में गाई जाने वाली ‘श्रीराधा चालीसा’ के पठन से श्रीराधा साधक को अपने चरणकमलों की भक्ति प्रदान करती हैं, साथ ही भगवान श्रीकृष्ण भी अपने कृपाकटाक्ष से साधक को कृतार्थ कर देते हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है—चाहें करोड़ों यज्ञ, तप, व्रत, नियम, ध्यान कुछ भी कर लो, जब तक ‘राधा’ नाम नहीं गाओगे, मैं तुम्हें नहीं अपनाऊंगा क्योंकि—

नारायण, शिव, ब्रह्मा, लक्ष्मी, दुर्गा, वाणी मेरे रूप ।
प्राण समान सभी प्रिय मेरे, सबका मुझमें भाव अनूप ।।
पर राधा प्राणाधिक मेरी, अतिशय प्रिय, प्रियजन सिरमौर ।
राधा-सा कोई न कहीं है मेरा प्राणाधिक प्रिय और ।।
अन्य सभी ये देव, देवियां बसते हैं नित मेरे पास ।
प्रिया राधिका का है मेरे, वक्ष:स्थल पर नित्य निवास ।। (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)

श्रीराधा चालीसा

श्रीराधे बृषभानुजा, भक्तनि प्राणाधार ।
वृन्दाविपिन बिहारिणि, प्रणवों बारम्बार ।।

जैसौ तैसौ रावरो, कृष्ण प्रिया सुख धाम ।
चरण शरण निजु दीजिये, सुन्दर सुखद ललाम ।।

जय बृषभानु कुंवरि श्री श्यामा ।
कीरतिनंदनी शोभा धामा ।।

नित्य विहारिनी श्याम अधारा ।
अमित मोद मंगल दातारा ।।

रास विलासिनी रस विस्तारिनी ।
सहचरि सुभग यूथ मन भावनि ।।

नित्य किशोरी राधा गोरी ।
श्याम प्राण धन अति जिय भोरी ।।

करुणा सागर हिय उमंगिनी ।
ललितादिक सखियन की संगिनी ।।

दिन कर कन्या कूल विहारिनि ।
कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि ।।

नित्य श्याम तुम्हरो गुण गावें ।
राधा राधा कहि हरषावें ।।

मुरली में नित नाम उचारें ।
तुव कारण लीला वपु धारें ।।

प्रेम स्वरूपिणि अति सुकुमारी ।
श्याम प्रिया बृषभानु दुलारी ।।

नवल किशोरी अति छवि धामा ।
द्युति लघु लगै कोटि रति कामा ।।

गौरांगी शशि निंदक बदना ।
सुभग चपल अनियारे नयना ।।

जावकयुत युग पंकज चरना ।
नूपुर धुनि प्रीतम मन हरना ।।

संतत सहचरि सेवा करहीं ।
महा मोद मंगल मन भरहीं ।।

रसिकन जीवन प्राण अधारा ।
राधा नाम सकल सुख सारा ।।

अगम अगोचर नित्य स्वरूपा ।
ध्यान धरत निशिदिन ब्रजभूपा ।।

उपजेउ जासु अंश गुण खानी ।
कोटिन उमा रमा ब्रह्मानी ।।

नित्य धाम गौलोक बिहारिनी ।
जन रक्षक दु:ख दोष नसावनि ।।

शिव अज मुनि सनकादिक नारद ।
पार न पाँइ शेष अरु सारद ।।

राधा शुभ गुण रूप उजारी ।
निरखि प्रसन्न होत बनवारी ।।

बृज जीवन धन राधारानी ।
महिमा अमित न जाय बखानी ।।

प्रीतम संग देइ गलबाँही ।
बिहरत नित वृन्दावन माँही ।।

राधा कृष्ण कृष्ण हैं राधा ।
एक रूप दोउ प्रीति अगाधा ।।

श्रीराधा मोहन मन हरनी ।
जन सुखदायक प्रफुलित बदनी ।।

कोटिक रूप धरें नंद नन्दा ।
दर्श करन हित गोकुल चन्दा ।।

रास केलि करि तुम्हें रिझावैं ।
मान करौ जब अति दु:ख पावैं ।।

प्रफुलित होत दर्श जब पावैं ।
विविध भांति नित विनय सुनावैं ।।

वृन्दारण्य विहारिनी श्यामा ।
नाम लेत पूरन सब कामा ।।

कोटिन यज्ञ तपस्या करहू ।
विविध नेम व्रत हिय में धरहू ।।

तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावैं ।
जब लगि राधा नाम न गावैं ।।

वृन्दाविपिन स्वामिनी राधा ।
लीला वपु तव अमित अगाधा ।।

स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पारा ।
और तुम्हें को जानन हारा ।।

श्रीराधा रस प्रीति अभेदा ।
सादर गान करत नित वेदा ।।

राधा त्यागि कृष्ण को भजि हैं ।
ते सपनेहु जग जलधि न तरि हैं ।।

कीरति कुंवरि लाड़िली राधा ।
सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा ।।

नाम अमंगल मूल नसावन ।
त्रिविध ताप हर हरि मन भावन ।।

राधा नाम लेइ जो कोई ।
सहजहिं दामोदर बस होई ।।

राधा नाम परम सुखदाई ।
भजतहिं कृपा करहिं यदुराई ।।

यशुमति नन्दन पीछे फिरि हैं ।
जो कोउ राधा नाम सुमिरि हैं ।।

रास बिहारिनि श्यामा प्यारी ।
करहु कृपा बरसाने वारी ।।

वृन्दावन है शरण तुम्हारी ।
जय जय जय बृषभानु दुलारी ।।

दोहा—
श्रीराधा रासेश्वरी, रसिकेश्वर घनश्याम ।
करहुँ निरन्तर वास मैं, श्रीवृन्दावन धाम ।।
।। श्रीराधा चालीसा सम्पूर्ण ।।

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