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भगवान श्रीराम का सौ नामों का (शतनाम) स्तोत्र

त्रिलोकी में यदि श्रीराम का कोई सबसे बड़ा भक्त या उपासक है तो वे हैं भगवान शिव जो ‘राम-नाम’ महामन्त्र का निरन्तर जप करते रहते हैं । भगवान शिव ने प्रभु श्रीराम की सौ नामों का द्वारा स्तुति की है, जिसे ‘श्रीराम शतनाम स्तोत्र’ कहते हैं । यह स्तोत्र आनन्द रामायण, पूर्वकाण्ड (६।३२-५१) में दिया गया है ।

भगवान व्यास कृत भगवती स्तोत्र

जो मनुष्य कहीं भी रह कर पवित्र भावना से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है, अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती (दुर्गा) सदा ही प्रसन्न रहती हैं ।

गजेन्द्न-मोक्ष के लिए भगवान का श्रीहरि अवतार

तृतीय मन्वन्तर में भगवान का ‘श्रीहरि’ अवतार हुआ । भगवान ने हरिमेधस ऋषि की पत्नी हरिणी में अवतार धारण किया और ‘श्रीहरि’ कहलाये । भगवान का यह अवतार अपने आर्त भक्त गजेन्द्र की ग्राह से रक्षा के लिए हुआ था । भगवान अपने पुकारने वालों की कैसे रक्षा करते हैं और उनके रक्षण में उनकी कैसी तत्परता रहती है—श्रीमद्भागवत का ‘गजेन्द्र-मोक्ष’ का प्रसंग यही बताता है ।

‘अन्न-धन’ देने वाली मां अन्नपूर्णा : स्तोत्र

माता अन्नपूर्णा की आराधना करने से मनुष्य को कभी अन्न का दु:ख नहीं होता है; क्योंकि वे नित्य अन्न-दान करती हैं । यदि माता अन्नपूर्णा अपनी कृपादृष्टि हटा लें तो मनुष्य दर-दर अन्न-जल के लिए भटकता फिरे लेकिन उसे चार दाने चने के भी प्राप्त नहीं होते हैं । मां अन्नपूर्णा की प्रसन्नता के लिए भगवान आदि शंकराचार्य कृत एक सुन्दर स्तोत्र ।

श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा कृष्णभक्ति में रचित अच्युताष्टकम्

श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा रचित अच्युताष्टकम् भगवान श्रीहरि को प्रसन्न करने वाला स्तोत्र है । जिन पापों की शुद्धि के लिए कोई उपाय नहीं, उनके लिए भगवान के नामों के स्तोत्र का पाठ करना सबसे अच्छा साधन है । नामों का पाठ मंगलकारी, मनवांछित फल देने वाला, दु:ख-दारिद्रय, रोग व ऋण को दूर करने वाला और आयु व संतान को देने वाला माना गया है ।

श्रीमद्वल्लभाचार्यजी विरचित ‘कृष्णाश्रय’ स्तोत्र

कृष्णाश्रय का अर्थ है सदा-सर्वदा पति, पुत्र, धन, गृह--सब कुछ श्रीकृष्ण ही हैं-- इस भाव से व्रजेश्वर श्रीकृष्ण की सेवा करनी चाहिए, भक्तों का यही धर्म है । इसके अतिरिक्त किसी भी देश, किसी भी वर्ण, किसी भी आश्रम, किसी भी अवस्था में और किसी भी समय अन्य कोई धर्म नहीं है ।

श्रीकृष्ण-कृपा प्राप्ति के लिए पढ़े श्रीराधा चालीसा

श्रीराधा की स्तुति में गाई जाने वाली श्रीराधा चालीसा के पठन से श्रीराधा साधक को अपने चरणकमलों की भक्ति प्रदान करती हैं, साथ ही श्रीकृष्ण भी अपना कृपाकटाक्ष साधक पर बरसा देते हैं । साथ ही साधक को व्रज-वृन्दावन में निवास का वर देते हैं ।

कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाला ‘दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र’

भगवान शिव ने देवी से कहा—कलियुग में सभी कामनाओं को सिद्धि हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे बताइये । इस पर देवी ने कहा—‘कलियुग में सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाला सर्वश्रेष्ठ साधन है ‘अम्बास्तुति’ ।

श्रीजीवगोस्वामी विरचित मधुर रस से पूर्ण ‘युगलाष्टक’

श्रीजीवगोस्वामी का श्रीप्रिया-प्रियतम युगलसरकार के चरणों में परम अनुराग था । रामरस अर्थात् श्रृंगाररस के आप उपासक थे । परम वैरागी श्रीजीव गोस्वामी की भक्ति-भावना का कोई पार नहीं है । इनकी सेवा में चारों ओर से अपार धन आता किन्तु वे उस धन को यमुनाजी में फेंक देते थे । श्रीजीव गोस्वामी मूर्धन्य विद्वान समझे जाते थे ।

भगवान विष्णु को समर्पित षट्पदी स्तोत्र

सच्चे हृदय से इन नियमों का पालन क्रमश: मनुष्य के मन को सच्ची भक्ति की ओर ले जाता है । इन एक-एक सोपानों पर चढ़ते हुए मन धीरे-धीरे पूर्णता की ओर अर्थात् मोक्ष की ओर अग्रसर होता है ।