Durga devi maa on lion killing a rakshas jai devi ma

‘कलौ चण्डीविनायकौ’—शास्त्र के इस कथन के अनुसार कलियुग में देवी चण्डिका (दुर्गा) की आराधना तत्काल फल प्रदान करने वाली मानी गई है । देवी की वांग्मयी मूर्ति ‘दुर्गा सप्तशती’ के पाठ-हवनादि करने पर निश्चित रूप से साधक के सभी लौकिक और पारलौकिक अभीष्ट पूरे होते हैं; लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और मनुष्य के कमजोर स्वास्थ्य की दृष्टि से ‘दुर्गा सप्तशती’ के पूरे ७०० श्लोकों का संपूर्ण पाठ करना हरेक साधक के लिए संभव नहीं हैं । इसके लिए यदि नित्य या नवरात्र में देवी दुर्गा के चरणों में श्रद्धा-भक्ति रखते हुए प्रेम से केवल ‘दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र’ का पाठ किया जाए तो उनकी कृपा का शीघ्र अनुभव होने लगता है ।

‘दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र’ का माहात्म्य

‘सप्तश्लोकी दुर्गा’ या ‘दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र’ का नित्य पाठ अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष—चारों पुरुषार्थों को देने वाला है । साथ ही यह साधक के दु:ख, दरिद्रता, पीड़ा, भय व शत्रुओं का नाश कर उसे सद्बुद्धि, सुख, सौभाग्य, रक्षा व अभय देकर सभी प्रकार के मंगल करने वाला है ।

एक बार भगवान शिव ने जगन्माता देवी से कहा—‘कलियुग में सभी कामनाओं को सिद्धि हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे बताइये ।’

इस पर देवी ने कहा—‘कलियुग में सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाला सर्वश्रेष्ठ साधन है ‘अम्बास्तुति’ ।

दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र और इसका विनियोग इस प्रकार है—

ॐ इस दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र के नारायण ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं, श्रीदुर्गा की प्रसन्नता के लिए सप्तश्लोकी दुर्गापाठ में इसका विनियोग किया जाता है ।

दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र (हिन्दी अर्थ सहित)

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।। १ ।।

अर्थ—वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं ।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: 
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ।।
२ ।।

अर्थ—मा दुर्गे ! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं । दु:ख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि ! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता हो ।  (यह मन्त्र दारिद्रय-दु:ख आदि के नाश के लिए है।)

सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ।। ३ ।।

अर्थ—नारायणी ! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हो । कल्याणदायिनी शिवा हो । सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो । तुम्हें नमस्कार है ।  (यह मन्त्र सब प्रकार के कल्याण के लिए है।)

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ।। ४ ।।

अर्थ—शरण में आये हुए दीनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवि ! तुम्हें नमस्कार है ।  (यह मन्त्र विपत्ति नाश के लिए है।)

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।। ५ ।।

अर्थ—सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि ! सब भयों से हमारी रक्षा करो, तुम्हें नमस्कार है । (यह मन्त्र भय नाश के लिए है।)

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।। ६ ।।

अर्थ—देवि ! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो । जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं । तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं ।  (यह मन्त्र रोगों के नाश के लिए है।)

सर्वाबाधाप्रशमनं  त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ।। ७ ।।

अर्थ—सर्वेश्वरि ! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो ।  (यह मन्त्र सभी बाधाओं और शत्रुओं के नाश के लिए है ।)

॥ श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्ण ॥

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