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ठाकुर बांकेबिहारी जी के स्वरूप की विशेषता

श्रीवृंदावन धाम में विराजित ठाकुर बांकेबिहारी, जिनकी हर बात है निराली; जैसा उनका नाम निराला; वैसा ही उनका रूप-स्वरूप भी अत्यंत निराला...

भगवान श्री राधाकृष्ण शरणागति स्तोत्र

जो मनुष्य भगवान श्री राधाकृष्ण की चरण-सेवा का अधिकार बहुत शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं, उनको इस स्तोत्र (प्रार्थनामय मंत्र) का नित्य जप करना चाहिए । इसके लिए साधक को जीवन भर ‘चातकी भाव’ से इस प्रार्थना का पाठ करना चाहिए ।

श्रीराधा-कृष्ण का अनुपम प्रेम

राधारानी ने ललिता सखी से कहा—‘सखी ! यदि श्रीकृष्ण के हृदय में करुणा नहीं है तो इसमें तुम्हारा तो कोई दोष नहीं है । अब जो मैं कहती हूँ सो तुम करो । थोड़ी देर में जब मेरे शरीर से प्राण निकल जायें, तब तुम मेरी अन्त्येष्टि-क्रिया इस प्रकार करना । मेरे इस शरीर को तमाल वृक्ष से सटाकर बांध देना और उसकी डाल में मेरे दोनों हाथ लटका देना जिससे जीवित अवस्था में न सही, मरने के बाद इस शरीर को श्रीकृष्ण का आलिंगन मिलता रहे ।’

श्रीराधा के 108 नाम

श्रीराधा वास्तव में कोई एक मानवी स्त्री नहीं हैं । वे भगवान श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति हैं, इसीलिए उनका नाम सुनने के लिए श्रीकृष्ण नाम लेने वाले के पीछे-पीछे चलने लगते हैं । श्रीराधा नाम की इतनी महिमा जानने के बाद यदि उनके 108 नाम का पाठ कर लिया जाए तो उसका कितना फल होगा, बताया नहीं जा सकता । इसीलिए इस पोस्ट में श्रीराधा के 108 नाम दिए गए हैं ।

करुणामयी, कृष्णमयी, त्यागमयी श्रीराधा

श्रीकृष्ण की आत्मा श्रीराधा का चरित्र अथाह समुद्र के समान है जिसकी गहराई को नापना असंभव है; अर्थात् श्रीराधा-चरित्र के विभिन्न पहलुओं का पूर्णत: वर्णन करना असम्भव है । फिर भी पाठकों की सुविधा के लिए उस समुद्र में डुबकी लगा कर कुछ मोती ढूंढ़ ही लेते हैं ।

श्रीराधा की जन्म-आरती, बधाई और पलना के पद

राजा वृषभानु ने श्रीराधा के झूलने के लिए चंदन की लकड़ी का पालना बनवाया जिसमें सोने-चांदी के पत्र और जवाहरात लगे थे। पालने में श्रीजी के झूलने के स्थान को नीलमणि से बने मोरों की बेलों से सजाया गया था ।

श्रीकृष्ण-कृपा प्राप्ति के लिए पढ़े श्रीराधा चालीसा

श्रीराधा की स्तुति में गाई जाने वाली श्रीराधा चालीसा के पठन से श्रीराधा साधक को अपने चरणकमलों की भक्ति प्रदान करती हैं, साथ ही श्रीकृष्ण भी अपना कृपाकटाक्ष साधक पर बरसा देते हैं । साथ ही साधक को व्रज-वृन्दावन में निवास का वर देते हैं ।

श्रीराधा की नाममाला में गूंथा है ‘आनन्दचन्द्रिका’ स्तोत्र

श्रीरूपगोस्वामीजी ने श्रीराधा के दस नामों की माला पिरोकर ‘आनन्दचन्द्रिका’ नामक स्तवराज (स्तोत्रों का राजा) लिखा जो भक्तों के समस्त क्लेशों दूर करने वाला और परम सौभाग्य देने वाला है ।

संत नागाजी का हठ और भगवान श्रीराधा-कृष्ण

स्वामिनीजी वृषभानुनन्दिनी श्रीराधा वहां पधारीं और उन्होंने नागाजी को विश्वास दिलाया कि ये ही निकुंज के श्यामसुन्दर हैं । अपने आराध्य श्रीराधाश्यामसुन्दर के दर्शन कर श्रीनागाजी ने उन्हें अपनी जटा सुलझाने की अनुमति दे दी । ठाकुरजी ने अपने चार हाथ प्रकट कर उनकी जटा सुलझा दीं ।

श्रीराधा ने अपने प्रिय भक्त के लिए जब खीर बनाई

जब भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम की लालसा सभी भोगों और वासनाओं को समाप्त कर प्रबल हो जाती है, तभी साधक का व्रज में प्रवेश होता है । यह व्रज भौतिक व्रज नहीं वरन् इसका निर्माण भगवान के दिव्य प्रेम से होता है ।