shri krishna bhagwan shri radha rani bansuri

जो मनुष्य भगवान श्री राधाकृष्ण की चरण-सेवा का अधिकार बहुत शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं, उनको इस स्तोत्र (प्रार्थनामय मंत्र) का नित्य जप करना चाहिए । इसके लिए साधक को जीवन भर ‘चातकी भाव’ से इस प्रार्थना का पाठ करना चाहिए । 

चातकी भाव का अर्थ है—जैसे चातक नदी, तालाब, समुद्र आदि से सहज ही मिलने वाले जल को छोड़ कर केवल मेघ जल की आस में प्यास से तड़पता हुआ जीवन बिताता है, उसी प्रकार साधक को एकमात्र युगल सरकार की चरण शरण होकर इसी प्रार्थना मंत्र का आश्रय लेना चाहिए । 

साथ ही इन बातों का भी पालन करना चाहिए—

  • अनन्य भाव से केवल भगवान श्री राधाकृष्ण की ही सेवा पूजा करनी चाहिए, अन्य किसी देवता की नहीं ।
  • किसी की भी निंदा, चुगली आदि नहीं करनी चाहिए ।
  • किसी का भी जूठा नहीं खाना चाहिए ।
  • किसी दूसरे का वस्त्र भी नहीं पहनना चाहिए ।
  • जीभ को वश में रखना अर्थात् दिन में जो मिल जाए, वही खा लेना व रात्रि में फल दूध ही लेना चाहिए ।
  • किसी भी वस्तु पर मन न चलाना अर्थात् मन में भी ब्रह्मचर्य का पालन करना ।

भगवान श्री राधाकृष्ण की शरणागति प्रदान करने वाला स्तोत्र (हिन्दी अर्थ सहित)

संसार सागरान्नाथौ पुत्र मित्र गृह्यकुलात् ।
गोप्तारौ मे युवामेव प्रपन्न भय भंजनौ ।।

अर्थात्—नाथ ! पुत्र, मित्र और गृह से भरे हुए इस संसार-सागर से आप ही दोनों मुझको बचाने वाले हैं; आप ही शरणागत के भय का नाश करते हैं ।

योऽहं ममास्ति यत्किंचिदिह लोके परत्र च ।
तत्सर्वं भवतोरद्य चरणेषु समर्पितम् ।।

अर्थात्—मैं जो कुछ भी हूँ और इस लोक और परलोक में मेरा जो कुछ भी है, वह सभी आज मैं आप दोनों के चरणकमलों में समर्पित कर रहा हूँ ।

अहमस्म्यपराधा नामलयस्त्यक्त साधन: ।
अगतिश्च ततो नाथौ भवन्तावेव मे गति: ।।

अर्थात्—मैं अपराधों का भंडार हूँ । मेरे अपराधों का पार नहीं है । मैं पूरी तरह से साधनहीन हूँ, गतिहीन हूँ । इसलिए नाथ ! एकमात्र आप ही दोनों प्रिया-प्रियतम मेरी गति हैं ।

तवास्मि राधिकाकान्त कर्मणा मनसा गिरा ।
कृष्णकान्ते तवैवास्मि युवामेव गतिर्मम ।।

अर्थात्—श्री राधिकाकान्त श्रीकृष्ण ! और श्री कृष्णकान्ता राधिके ! मैं तन-मन-वचन से आपका ही हूँ और आप ही मेरी एकमात्र गति हैं ।

शरणं वां प्रपन्नोऽस्मि करुणानिकराकरौ ।
प्रसादं कुरुतं दास्यं मयि दुष्टेऽपराधिनि ।।

अर्थात्—मैं आपके शरण हूँ, आपके चरणों पर पड़ा हूँ । आप अखिल कृपा की खान हैं । कृपापूर्वक मुझ पर दया कीजिए और मुझ दुष्ट अपराधी को अपना दास बना लीजिए ।

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