shri krishna, krishna

श्रीकृष्णावतार से पहले जब भगवान ने देवताओं से पृथ्वी पर अवतीर्ण होने के लिए कहा, तब देवताओं ने कहा—‘भगवन् ! हम देवता होकर पृथ्वी पर जन्म लें, यह हमारे लिए बड़ी निंदा की बात है; परन्तु आपकी आज्ञा है, इसलिए हमें वहां जन्म लेना ही पड़ेगा । फिर भी इतनी प्रार्थना है कि हमें गोप और स्त्री के रूप में वहां उत्पन्न न करें जिससे आपके अंग-स्पर्श से वंचित रहना पड़ता हो । ऐसा मनुष्य बन कर हममें से कोई भी शरीर धारण नहीं करेगा; हमें सदा आप अपने अंगों के स्पर्श का अवसर दें, तभी हम अवतार ग्रहण करेंगे ।’

देवताओं की बात सुन कर भगवान ने कहा—‘देवताओं ! मैं तुम्हारे वचनों को पूरा करने के लिए तुम्हें अपने अंग-स्पर्श का अवसर अवश्य दूंगा ।’

यह प्रसंग अथर्ववेद के श्रीकृष्णोपनिषत् से उल्लखित है । जानते हैं, श्रीकृष्ण के परिकर के रूप में किस देवता ने क्या भूमिका निभाई—

▪️ भगवान विष्णु का परमानन्दमय अंश ही नन्दरायजी के रूप में प्रकट हुआ ।

▪️ साक्षात् मुक्ति देवी नन्दरानी यशोदा के रूप में अवतरित हुईं ।

▪️ भगवान की ब्रह्मविद्यामयी वैष्णवी माया देवकी के रूप में प्रकट हुई हैं और वेद ही वसुदेव बने हैं; इसलिए वे सदैव भगवान नारायण का ही स्तवन करते रहते थे ।

▪️ दया का अवतार रोहिणी माता के रूप में हुआ ।

▪️ ब्रह्म ही श्रीकृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ ।

▪️ शेषनाग बलरामजी बने ।

▪️ वेदों की ब्रह्मरूपा ऋचाएं हैं, वे गोपियों के रूप में अवतीर्ण हुईं । भगवान महाविष्णु को अत्यन्त सुन्दर श्रीराम के रूप में वन में भ्रमण करते देख कर वनवासी मुनि विस्मित हो गए और उनसे बोले—‘भगवन् ! यद्यपि हम पुनर्जन्म लेना उचित नहीं समझते तथापि हमें आपके आलिंगन की तीव्र इच्छा है । तब श्रीराम ने कहा—‘आप लोग मेरे कृष्णावतार में गोपिका होकर मेरा आलिंगन प्राप्त करोगे ।’ 

▪️ गोकुल साक्षात् वैकुण्ठ है । वहां स्थित वृक्ष तपस्वी महात्मा हैं ।

▪️ गोप रूप में साक्षात् श्रीहरि ही लीला-विग्रह धारण किए हुए हैं ।

▪️ ऋचाएं ही श्रीकृष्ण की गौएं हैं । 

▪️ ब्रह्मा ने श्रीकृष्ण की लकुटी का रूप धारण किया ।

▪️ रुद्र (भगवान शिव) वंशी बने ।

▪️ देवराज इन्द्र सींग (वाद्य-यंत्र) बने ।

▪️ कश्यप ऋषि नन्दबाबा के घर में ऊखल बने हैं और माता अदिति रस्सी के रूप में अवतरित हुईं जिससे यशोदाजी ने श्रीकृष्ण को बांधा था । कश्यप और अदिति ही समस्त देवताओं के माता-पिता हैं ।

▪️ भगवान श्रीकृष्ण ने दूध-दही के मटके फोड़े हैं और उनसे जो दूध-दही का प्रवाह हुआ, उसके रूप में उन्होंने साक्षात् क्षीरसागर को प्रकट किया है और उस महासागर में वे बालक बन कर पहले की तरह (क्षीरसागर में) क्रीड़ा कर रहे थे ।

▪️ भक्ति देवी ने वृन्दा का रूप धारण किया ।

▪️ नारद मुनि श्रीदामा नाम के सखा बने ।

▪️ शम श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा बने ।

▪️ सत्य ने अक्रूर का रूप धारण किया और दम उद्धव हुए ।

▪️ पृथ्वी माता सत्यभामा बनी हैं ।

▪️ सोलह हजार एक सौ आठ—रुक्मिणी आदि रानियां वेदों की ऋचाएं और उपनिषद् हैं ।

▪️ जगत के बीज रूप कमल को भगवान ने अपने हाथ में लीलाकमल के रूप में धारण किया ।

▪️ श्रीकृष्ण का जो शंख है वह साक्षात् विष्णु है तथा लक्ष्मी का भाई होने से लक्ष्मीरूप भी है ।

▪️ साक्षात् कलि राजा कंस बना है ।

▪️ लोभ-क्रोधादि ने दैत्यों का रूप धारण किया है । द्वेष चारुण मल्ल बना; मत्सर मुष्टिक बना, दर्प ने कुवलयापीड़ हाथी का रूप धारण किया और गर्व बकासुर राक्षस के रूप में और महाव्याधि ने अघासुर का रूप धारण किया ।

▪️ गरुड़ ने भाण्डीर वट का रूप ग्रहण किया ।

▪️ भगवान के हाथ की गदा सारे शत्रुओं का नाश करने वाली साक्षात् कालिका है ।

▪️ भगवान के शांर्ग धनुष का रूप स्वयं वैष्णवी माया ने धारण किया है और काल उनका बाण बना है ।

▪️ धर्म ने चंवर का रूप लिया, वायुदेव ही वैजयन्ती माला के रूप में प्रकट हुए है, महेश्वर खड्ग बने हैं । भगवान के हाथ में सुशोभित चक्र ब्रह्मस्वरूप ही है ।

▪️ सब जीवों को ज्ञान का प्रकाश देने वाली बुद्धि ही भगवान की क्रिया-शक्ति है ।

इस प्रकार श्रीकृष्णावतार के समय भगवान श्रीकृष्ण ने स्वर्गवासियों को तथा सारे वैकुण्ठधाम को ही भूतल पर उतार लिया था ।

इस प्रसंग को पढ़ने का माहात्म्य इस प्रकार है—

▪️ इससे मनुष्य को सभी तीर्थों के सेवन का फल प्राप्त होता है ।

▪️मनुष्य देह के बंधन से मुक्त हो जाता है अर्थात् पुनर्जन्म नहीं होता है ।