ganga maa devi maa on lotus flower

भगवान विष्णु के चरण से निकलने वाली, ब्रह्मा के कमण्डलु में रहने वाली और भगवान शिव की जटाओं में से प्रवाहित होने वाली गंगा सब पापों को हरने वाली और पवित्र करने वाली हैं । श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार—भगवान श्रीकृष्ण और उनकी स्वरूपा शक्ति श्रीराधा ने भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए जलमय विग्रह धारण किया । अत: गंगा ‘शक्ति’ का ही पर्याय है; इसीलिए सैंकड़ों कोस दूर से भी जो ‘गंगा-गंगा’ ऐसा कहता है, वह सब पापों से मुक्त हो विष्णुलोक को प्राप्त होता है । गंगाजी नाम लेने मात्र से पापों को धो देती हैं, दर्शन करने पर कल्याण करती हैं और स्नान और पान करने पर सात पीढ़ियों तक को पवित्र कर देती हैं । गंगाजी कभी किसी से कुछ मांगती नहीं, किसी से कुछ लेती नहीं, वह तो बिना भेदभाव के केवल देती ही देती हैं । वह तो अकालमृत्युहरिणी, आरोग्यदायिनी, दीर्घायु:कारिणी, मोक्षदा, रागद्वेषविनाशिनी हैं ।

गंगाजी के अत्यन्त पुण्यदायी 108 नाम और उनका माहात्म्य

  1. ॐरुपिणी  गंगा,
  2. त्रिपथगा देवी,
  3. शम्भुमौलिविहारिणी,
  4. जाह्नवी,
  5. पापहन्त्री,
  6. महापातकनाशिनी,
  7. पतितोद्धारिणी,
  8. स्त्रोतस्वती,
  9. परमवेगिनी,
  10. विष्णुपादाब्जसम्भूता,
  11. विष्णुदेहकृतालया,
  12. स्वर्गाब्धिनिलया,
  13. साध्वी,
  14. स्वर्णदी,
  15. सुरनिम्नगा,
  16. मन्दाकिनी,
  17. महावेगा,
  18. स्वर्णश्रृंगप्रभेदिनी,
  19. देवपूज्यतमा,
  20. दिव्या,
  21. दिव्यस्थाननिवासिनी,
  22. सुचारुनीररुचिरा,
  23. महापर्वतभेदिनी,
  24. भागीरथी,
  25. भगवती,
  26. महामोक्षप्रदायिनी,
  27. सिन्धुसंगगता,
  28. शुद्धा,
  29. रसातलनिवासिनी,
  30. महाभोगा,
  31. भोगवती,
  32. सुभगानन्ददायिनी,
  33. महापापहरा,
  34. पुण्या,
  35. परमाह्लाददायिनी,
  36. पार्वती,
  37. शिवपत्नी,
  38. शिवशीर्षगतालया,
  39. शम्भोर्जटामध्यगता,
  40. निर्मला,
  41. निर्मलानना,
  42. महाकलुषहन्त्री,
  43. जह्नुपुत्री,
  44. जगत्प्रिया,
  45. त्रैलोक्यपावनी,
  46. पूर्णा,
  47. पूर्णब्रह्मस्वरूपिणी,
  48. जगत्पूज्यतमा,
  49. चारुरूपिणी,
  50. जगदम्बिका,
  51. लोकानुग्रहकर्त्री,
  52. सर्वलोकदयापरा
  53. याम्यभीतिहरा,
  54. तारा,
  55. पारा,
  56.  संसारतारिणी,
  57. ब्रह्माण्डभेदिनी,
  58. ब्रह्मकमण्डलुकृतालया,
  59. सौभाग्यदायिनी,
  60. पुंसां निर्वाणपददायिनी,
  61. अचिन्त्यचरिता,
  62. चारुरुचिरातिमनोहरा,
  63. मर्त्यस्था,
  64. मृत्युभयहा,
  65. स्वर्गमोक्षप्रदायिनी,
  66. पापापहारिणी,
  67. दूरचारिणी,
  68. वीचिधारिणी,
  69. कारुण्यपूर्णा,
  70. करुणामयी,
  71. दुरितनाशिनी,
  72. गिरिराजसुता,
  73. गौरीभगिनी,
  74. गिरिशप्रिया,
  75. मेनकागर्भसम्भूता,
  76. मैनाकभगिनीप्रिया,
  77. आद्या,
  78. त्रिलोकजननी,
  79. त्रैलोक्यपरिपालिनी,
  80. तीर्थश्रेष्ठतमा,
  81. श्रेष्ठा,
  82. सर्वतीर्थमयी,
  83. शुभा,
  84. चतुर्वेदमयी,
  85. सर्वा,
  86. पितृसंतृप्तिदायिनी,
  87. शिवदा,
  88. शिवसायुज्यदायिनी,
  89. शिववल्लभा,
  90. तेजस्विनी,
  91. त्रिनयना,
  92. त्रिलोचनमनोरमा
  93. सप्तधारा,
  94. शतमुखी,
  95. सगरान्वयतारिणी,
  96. मुनिसेव्या,
  97. मुनिसुता,
  98. जह्नुजानुप्रभेदिनी,
  99. मकरस्था,
  100. सर्वगता,
  101. सर्वाशुभनिवारिणी,
  102. सुदृश्या,
  103. चाक्षुषीतृप्तिदायिनी,
  104. मकरालया,
  105. सदानन्दमयी,
  106. नित्यानन्ददा,
  107. नगपूजिता,
  108. सर्वदेवाधिदेवै: परिपूज्यपदाम्बुजा ।

108 नाम-स्मरण का माहात्म्य

ये नाम समस्त पापों का विनाश करने वाले हैं । जो व्यक्ति प्रात:काल उठकर गंगा के इन परम पुण्य देने वाले 108 नामों को भक्तिपूर्वक पढ़ता है, उसके ब्रह्महत्या जैसे पाप भी नष्ट हो जाते हैं और वह अतुलनीय आरोग्य व सुख प्राप्त करता है, इसमें कोई संदेह नहीं है । जहां कहीं भी स्नान करके मनुष्य यदि इस स्तोत्र का पाठ करे तो उसे वहीं गंगास्नान का फल निश्चित रूप से प्राप्त हो जाता है । जो मनुष्य गंगाजी के इन 108 नामों का या स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करता है, वह अंत में गंगा को प्राप्त होकर परम पद प्राप्त कर लेता है । जो मनुष्य गंगास्नान के समय इन नामों का पाठ करता है, वह हजारों अश्वमेधयज्ञों का फल प्राप्त करता है । पंचमी तिथि को इन नामों का पाठ करने से दस हजार गायों के दान का फल मिलता है । कार्तिक पूर्णिमा को गंगासागर संगम में स्नान करके जो मनुष्य इसका पाठ करता है, वह शिवत्व को प्राप्त हो जाता है, यह सत्य है इसमें कोई संशय नहीं है ।

गंगाजी का अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

गंगा नाम परं पुण्यं कथितं परमेश्वर ।
नामानि कति शस्तानि गंगाया: प्रणिशंस मे ।।१ ।।

नारदजी ने महादेव से कहा—‘गंगा’ नाम  परम पुण्यदायी है । गंगा के और भी कितने नाम हैं, उन्हें मुझे बताइये ।।

नाम्नां सहस्त्रमध्ये तु नामाष्टशतमुत्तमम् ।
जाह्नव्या मुनिशार्दूल तानि मे श्रृणु तत्त्वत: ।। २ ।।

महादेवजी बोले—गंगा के एक हजार नामोंमें  एक सौ आठ नाम अति उत्तम हैं । उन नामों को सुनिए—

ॐ  गंगा त्रिपथगा देवी शम्भुमौलिविहारिणी ।
जाह्नवी पापहन्त्री च महापातकनाशिनी ।। ३ ।

पतितोद्धारिणी स्त्रोतस्वती परमवेगिनी ।
विष्णुपादाब्जसम्भूता विष्णुदेहकृतालया ।। ४ ।

स्वर्गाब्धिनिलया  साध्वी स्वर्णदी सुरनिम्नगा ।
मन्दाकिनी महावेगा स्वर्णश्रृंगप्रभेदिनी ।। ५ ।

देवपूज्यतमा दिव्या दिव्यस्थाननिवासिनी ।
सुचारुनीररुचिरा महापर्वतभेदिनी ।। ६ ।।

भागीरथी भगवती महामोक्षप्रदायिनी ।
सिन्धुसंगगता शुद्धा रसातलनिवासिनी ।। ७ ।।

महाभोगा भोगवती सुभगानन्ददायिनी 
महापापहरा  पुण्या परमाह्लाददायिनी ।। ८ ।।

पार्वती शिवपत्नी च शिवशीर्षगतालया ।
शम्भोर्जटामध्यगता निर्मला निर्मलानना ।। ९ ।

महाकलुषहन्त्री च जह्नुपुत्री जगत्प्रिया ।
त्रैलोक्यपावनी पूर्णा पूर्णब्रह्मस्वरूपिणी ।। १० ।।

जगत्पूज्यतमा चारुरूपिणी जगदम्बिका ।
लोकानुग्रहकर्त्री च सर्वलोकदयापरा ।। ११ ।।

याम्यभीतिहरा तारा पारा संसारतारिणी ।
ब्रह्माण्डभेदिनी ब्रह्मकमण्डलुकृतालया ।। १२ ।।

सौभाग्यदायिनी पुंसां निर्वाणपददायिनी ।
अचिन्त्यचरिता चारुरुचिरातिमनोहरा ।। १३ ।।

मर्त्यस्था मृत्युभयहा स्वर्गमोक्षप्रदायिनी । 
पापापहारिणी दूरचारिणी वीचिधारिणी ।। १४ ।।

कारुण्यपूर्णा करुणामयी दुरितनाशिनी ।
गिरिराजसुता गौरीभगिनी गिरिशप्रिया ।। १५ ।।

मेनकागर्भसम्भूता मैनाकभगिनीप्रिया ।
आद्या त्रिलोकजननी त्रैलोक्यपरिपालिनी ।। १६ ।।

तीर्थश्रेष्ठतमा श्रेष्ठा सर्वतीर्थमयी शुभा ।
चतुर्वेदमयी सर्वा पितृसंतृप्तिदायिनी ।। १७ ।।

शिवदा शिवसायुज्यदायिनी शिववल्लभा ।
तेजस्विनी त्रिनयना त्रिलोचनमनोरमा ।। १८ ।।

सप्तधारा शतमुखी सगरान्वयतारिणी ।
मुनिसेव्या मुनिसुता जह्नुजानुप्रभेदिनी ।। १९ ।।

मकरस्था सर्वगता सर्वाशुभनिवारिणी ।
सुदृश्या चाक्षुषीतृप्तिदायिनी मकरालया ।। २० ।।

सदानन्दमयी नित्यानन्ददा नगपूजिता ।
सर्वदेवाधिदेवैश्च परिपूज्यपदाम्बुजा ।। २१ ।।

एतानि मुनिशार्दूल नामानि कथितानि ते ।
शस्तानि जाह्नवीदेव्या: सर्वपापहराणि च ।। २२ ।।

य इदं पठते भक्तया प्रातरुत्थाय नारद ।
गंगाया: परमं पुण्यं नामाष्टशतमेव हि ।। २३ ।।

तस्य पापानि नश्यन्ति ब्रह्महत्यादिकान्यपि ।
आरोग्यमतुलं सौख्यं लभते नात्र संशय: ।। २४ ।।

यत्र कुत्रापि संस्नायात्पठेत्स्तोत्रमनुत्तमम् ।
तत्रैव गंगास्नानस्य फलं प्राप्नोति निश्चितम् ।। २५ ।।

प्रत्यहं प्रपठेदेतद् गंगानामशताष्टकम् ।
सोऽन्ते गंगामनुप्राप्य प्रयाति परमं पदम् ।। २६ ।।

गंगायां स्नानसमये य: पठेद्भक्तिसंयुत: ।
सोऽश्वमेधसहस्त्राणां फलमाप्नोति मानव: ।। २७ ।।

गवामयुतदानस्य यत्फलं समुदीरितम् ।
तत्फलं समवाप्नोति पंचम्यां प्रपठन्नर: ।। २८ ।।

कार्तिक्यां पौर्णमास्यां तु स्नात्वा सागरसंगमे ।
य: पठेत्स महेशत्वं याति सत्यं न संशय: ।। २९

।। इति श्रीमहाभागवते महापुराणे श्रीगंगादेव्या अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

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