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भगवान के भक्त को भगवान जितने प्यारे लगते हैं, उनका नाम भी उसे उतना ही प्यारा लगता है । भगवान का नाम हमारी जिह्वा पर आ गया तो स्वयं भगवान ही हमारी जिह्वा पर आ गए क्योंकि  श्रीकृष्ण ही नाम रूप में प्रकट होते हैं । 

एक ‘भक्त’ एवं ‘मुक्ति’ का वार्तालाप बड़ा ही रोचक है–भक्त पूछता है–तू कौन है ? मुक्ति कहती है–मैं मुक्ति हूँ, आपकी सेवा में आई हूँ, श्रीकृष्णस्मरण के प्रभाव से आपकी दासी हो गई हूँ, आप मुझे अपनी सेवा में रख लीजिए । भक्त घबराकर कहता है–अरी ! दूर खड़ी रह । मुझ निर्दोष पर क्यों प्रहार कर रही है । तुम्हारी तो गंध मात्र से मेरे नाम रूपी चंदन की सुगन्ध का लोप हो जाएगा । इसका यही अर्थ है कि भगवान के प्रेमी भक्त को भगवान के एक-एक नाम के उच्चारण में ऐसा सुख मिलता है कि जिसके सामने मुक्ति का सुख भी तुच्छ हो जाता है ।

स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने नामों की महिमा बताते हुए कहा है—

‘अर्जुन ! जो मेरे नामों का गान करके मेरे निकट नाचने लगता है, उसने मुझे खरीद लिया है–यह मैं तुमसे सच्ची बात कहता हूँ और जो मेरे नामों का गान करके मेरे समीप प्रेम से रो उठते हैं, उनका मैं खरीदा हुआ गुलाम हूँ; यह जनार्दन दूसरे किसी के हाथ नहीं बिका है ।’

भगवान श्रीकृष्ण के नामों की ऐसी महिमा होने के कारण यहां पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में दिया गया ‘श्रीकृष्ण अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र’‘108 श्रीकृष्ण नामावली’ दी जा रही है ।

श्रीकृष्ण अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

श्रीकृष्ण: कमलनाथो वासुदेव: सनातन: ।
वसुदेवात्मज: पुण्यो लीलामानुषविग्रह: ।।
श्रीवत्सकौस्तुभधरो यशोदावत्सलो हरि: ।
चतुर्भुजात्तचक्रासिगदाशंखाद्युदायुध: ।।
देवकीनन्दन: श्रीशो नन्दगोपप्रियात्मज: ।
यमुनावेगसंहारी बलभद्रप्रियानुज: ।।
पूतनाजीवितहर: शकटासुरभंजन: ।
नन्दव्रजजनानन्दी सच्चिदानन्दविग्रह: ।।
नवनीतविलिप्तांगो नवनीतनटोऽनघ: ।
नवनीतनवाहारो मुचुकुन्दप्रसादक: ।।
षोडशस्त्रीसहस्त्रेशस्त्रिभंगी मधुराकृति: ।
शुकवागमृताब्धीन्दुर्गोविन्दो योगिनां पति: ।।
वत्सवाटचरोऽनन्तो धेनुकासुरभंजन: ।
तृणीकृततृणावर्तो यमलार्जुनभंजन: ।।
उत्तालतालभेत्ता च तमालश्यामलाकृति: ।
गोपगोपीश्वरो योगी कोटिसूर्यसमप्रभ: ।।
इलापति: परं ज्योतिर्यादवेन्द्रो यदूद्वह: ।
वनमाली पीतवासा: पारिजातापहारक: ।।
गोवर्धनाचलोद्धर्ता गोपाल: सर्वपालक: ।
अजो निरंजन: कामजनक: कंजलोचन: ।।
मधुहा मधुरानाथो द्वारकानायको बली ।
वृन्दावनान्तसंचारी तुलसीदामभूषण: ।।
स्यमन्तकमणेर्हर्ता नरनारायणात्मक: ।
कुब्जाकृष्णाम्बरधरो मायी परमपूरुष: ।।
मुष्टिकासुरचाणूरमल्लयुद्धविशारद: ।
संसारवैरी कंसारिर्मुरारिर्नरकान्तक: ।।
अनादिब्रह्मचारी च कृष्णाव्यसनकर्षक: ।
शिशुपालशिरश्छेत्ता दुर्योधनकुलान्तक: ।।
विदुराक्रूरवरदो विश्वरूपप्रदर्शक: ।
सत्यवाक्सत्यसंकल्प: सत्यभामारतो जयी ।।
सुभद्रापूर्वजो विष्णुर्भीष्ममुक्तिप्रदायक: ।
जगद्गुरुर्जगन्नाथो वेणुनादविशारद: ।।
वृषभासुरविध्वंसी बाणासुरकरान्तक: ।
युधिष्ठिरप्रतिष्ठाता बर्हिबर्हावतंसक: ।।
पार्थसारथीरव्यक्तो गीतामृतमहोदधि: ।
कालीयफणिमाणिक्यरंजितश्रीपदाम्बुज: ।।
दामोदरो यज्ञभोक्ता दानवेन्द्रविनाशक: ।
नारायण: परंब्रह्म पन्नगाशनवाहन: ।।
जलक्रीडासमासक्तो गोपीवस्त्रापहारक: ।
पुण्यश्लोकस्तीर्थपादो वेदवेद्यो दयानिधि: ।।
सर्वतीर्थात्मक: सर्वग्रहरूपी परात्पर: ।
एवं श्रीकृष्णदेवस्य नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।।
कृष्णनामामृतं नाम परमानन्दकारकम् ।
अत्युपद्रवदोषघ्नं परमायुष्यवर्धनम् ।। (इति श्रीपद्मपुराणे उत्तरखण्डे श्रीकृष्णाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रं सम्पूर्णम्)

भगवान श्रीकृष्ण की 108 नामावली

स्त्रियां तथा जिनका यज्ञोपवीत नहीं हुआ है, उन्हें प्रत्येक नाम के पहले ‘ॐ’ के स्थान पर ‘श्री’ शब्द लगाकर पाठ करना चाहिए, जैसे—श्री श्रीकृष्णाय नम: 

  1. ॐ श्रीकृष्णाय नम: ।
  2. ॐ कमलनाथाय नम: ।
  3. ॐ वासुदेवाय नम: ।
  4. ॐ सनातनाय नम: ।
  5. ॐ वसुदेवात्मजाय नम: ।
  6. ॐ पुण्याय नम: ।
  7. ॐ लीलामानुषविग्रहाय नम: ।
  8. ॐ श्रीवत्सकौस्तुभधराय नम: ।
  9. ॐ यशोदावत्सलाय नम: ।
  10. ॐ हरये नम: ।
  11. ॐ चतुर्भुजात्तचक्रासिगदाशंखाद्युदायुधाय नम: ।
  12. ॐ देवकीनन्दनाय नम: ।
  13. ॐ श्रीशाय नम: ।
  14. ॐ नन्दगोपप्रियात्मजाय नम: ।
  15. ॐ यमुनावेगसंहारिणे नम: ।
  16. ॐ बलभद्रप्रियानुजाय नम: ।
  17. ॐ पूतनाजीवितहराय नम: ।
  18. ॐ शकटासुरभंजनाय नम: ।
  19. ॐ नन्दव्रजजनानन्दिने नम: ।
  20. ॐ सच्चिदानन्दविग्रहाय नम:  ।
  21. ॐ नवनीतविलिप्तांगाय नम: ।
  22. ॐ नवनीतनटाय नम: ।
  23. ॐ अनघाय नम: ।
  24. ॐ नवनीतनवाहारिणे नम: ।
  25. ॐ मुचुकुन्दप्रसादकाय नम: ।
  26. ॐ षोडशस्त्रीसहस्रेशाय नमः ।
  27. ॐ त्रिभंगिने नम: ।
  28. ॐ मधुराकृतये नम:
  29. ॐ शुकवागमृताब्धीन्दवे नमः ।
  30. ॐ गोविन्दाय नमः ।
  31. ॐ योगिनांपतये नम: ।
  32. ॐ वत्सवाटचराय नम: ।
  33. ॐ अनन्ताय नम: ।
  34. ॐ धेनुकासुरभंजनाय नम: ।
  35. ॐ तृणीकृततृणावर्ताय नम: ।
  36. ॐ यमलार्जुनभंजनाय नम: ।
  37. ॐ उत्तालतालभेत्रे नम: ।
  38. ॐ तमालश्यामलाकृतये नम: ।
  39. ॐ गोपगोपीश्वराय नम: ।
  40. ॐ योगिने नम: ।
  41. ॐ कोटिसूर्यसमप्रभाय नम: ।
  42. ॐ इलापतये नम: ।
  43. ॐ परंज्योतिषे नम: ।
  44. ॐ यादवेन्द्राय नम: ।
  45. ॐ यदूद्वहाय नम:  ।
  46. ॐ वनमालिने नम: ।
  47. ॐ पीतवासिने नम: ।
  48. ॐ पारिजातापहारकाय नम: ।
  49. ॐ गोवर्धनाचलोद्धत्रे नम: ।
  50. ॐ गोपालाय नम: ।
  51. ॐ सर्वपालकाय नम:  ।
  52. ॐ अजाय नम: ।
  53. ॐ निरंजनाय नम: ।
  54. ॐ कामजनकाय नम: ।
  55. ॐ कंजलोचनाय नम: ।
  56. ॐ मधुघ्ने नम: ।
  57. ॐ मधुरानाथाय नम: ।
  58. ॐ द्वारकानायकाय नम: ।
  59. ॐ बलिने नम: ।
  60. ॐ वृन्दावनान्तसंचारिणे नम: ।
  61. ॐ तुलसीदामभूषणाय नम: ।
  62. ॐ स्यमन्तकमणेर्हत्रे नम: ।
  63. ॐ नरनारायणात्मकाय नम:  ।
  64. ॐ कुब्जाकृष्णाम्बरधराय नम: ।
  65. ॐ मायिने नम: ।
  66. ॐ परमपूरुषाय नम: ।
  67. ॐ मुष्टिकासुरचाणूरमल्लयुद्धविशारदाय नम: ।
  68. ॐ संसारवैरिणे नम: ।
  69.  ॐ कंसारये नम: ।
  70. ॐ मुरारये नम: ।
  71. ॐ नरकान्तकाय नम: ।
  72. ॐ अनादिब्रह्मचारिणे नम: ।
  73. ॐ कृष्णाव्यसनकर्षकाय नम: ।
  74. ॐ शिशुपालशिरश्छेत्रे नम: ।
  75. ॐ दुर्योधनकुलान्तकाय नम: ।
  76. ॐ विदुराक्रूरवरदाय नम: ।
  77. ॐ विश्वरूपप्रदर्शकाय नम: ।
  78. ॐ सत्यवाक्सत्यसंकल्पाय नम: ।
  79. ॐ सत्यभामारताय नम: ।
  80. ॐ जयिने नम: ।
  81. ॐ सुभद्रापूर्वजाय नम: ।
  82. ॐ विष्णवे नमः  ।
  83. ॐ भीष्ममुक्तिप्रदायकाय नम: ।
  84. ॐ जगद्गुरुवे नम: ।
  85. ॐ जगन्नाथाय नम: ।
  86. ॐ वेणुनादविशारदाय नम: ।
  87. ॐ वृषभासुरविध्वंसिने नम: ।
  88. ॐ बाणासुरकरान्तकाय नम: ।
  89. ॐ युधिष्ठिरप्रतिष्ठात्रे नम: ।
  90. ॐ बर्हिबर्हावतंसकाय नम: ।
  91. ॐ पार्थसारथये नम:।
  92. ॐ अव्यक्ताय नम: ।
  93.  ॐ गीतामृतमहोदध्ये नम: ।
  94. ॐ कालीयफणिमाणिक्यरंजितश्रीपदाम्बुजाय नम: ।
  95. ॐ दामोदराय नम: ।
  96. ॐ यज्ञभोक्त्रे नम: ।
  97. ॐ दानवेन्द्रविनाशकाय नम: ।
  98. ॐ नारायणाय नम: ।
  99. ॐ परंब्रह्मणे नम: ।
  100. ॐ पन्नगाशनवाहनाय नम: ।
  101. ॐ जलक्रीडासमासक्तगोपीवस्त्रापहारकाय नम: ।
  102. ॐ पुण्यश्लोकाय नम: ।
  103. ॐ तीर्थपादाय नम: ।
  104. ॐ वेदवेद्याय नम: ।
  105. ॐ दयानिधये नम: ।
  106. ॐ सर्वतीर्थात्मकाय नम: ।
  107. ॐ सर्वग्रहरूपिणे नम: ।
  108. ॐ परात्पराय नम: ।

भगवान श्रीकृष्ण के 108 नामों की महिमा

▪️जो मनुष्य श्रीकृष्ण के नामों को कहते हुए नित्य उनका स्मरण करता है; उसका उसी प्रकार नरक से उद्धार हो जाता है, जैसे कमल जल का भेदन करके ऊपर निकल आता है ।

▪️108 नामों का नित्य पूरी श्रद्धा भक्ति से पाठ करने पर मनुष्य के जीवन के कठोर क्लेश, विपत्ति व उपद्रव शान्त हो जाते हैं ।

▪️जीवन में परम आनन्द छा जाता है, मनुष्य अपने-आप में मस्त रहने लगता है, जीवनमुक्त हो जाता है ।

▪️108 नामों का पाठ मनुष्य को दीर्घ आयु देने वाला है ।

▪️श्रीकृष्ण के नाम कामवृक्ष समान हैं, उससे आप जो चाहेंगे, वह प्राप्त होगा । ऐसा कोई कार्य नहीं जो भगवान के नाम के आश्रय लेने पर न हो । ऐसा कोई पदार्थ या स्थिति नहीं, जिसे नाम का आश्रय दिला न सके ।

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