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कल्पवृक्ष के समान श्रीकृष्ण के नाम

भगवान श्रीकृष्ण का नाम चिन्तामणि, कल्पवृक्ष है--सब अभिलाषित फलों को देने वाला है। यह स्वयं श्रीकृष्ण है, पूर्णतम है, नित्य है, शुद्ध है, सनातन है। भगवान के नाम अनन्त हैं, उनकी गणना कर पाना किसी के लिए भी सम्भव नहीं। यहां कुछ थोड़े से प्रचलित नामों का अर्थ दिया जा रहा है ।

भगवान श्रीकृष्ण का ‘मुरारी’ नाम कैसे पड़ा ?

श्रीकृष्ण के नामकरण संस्कार में गर्गाचार्यजी ने यशोदा माता और नंदबाबा से कहा था कि—‘यह बालक नारायण ही है और यह युग-युग में रंग परिवर्तित करता है । सत्य युग में यह श्वेत वर्ण का और त्रेता युग में रक्त वर्ण का था; किंतु इस समय द्वापर युग में यह मेघश्याम रूप धारण करके आया है । अत: इसका नाम अब ‘कृष्ण’ होगा ।’ यशोदा माता ने गोपियों को यह बात बता दी थी; इसलिए गोपियां वेणुगीत में श्रीकृष्ण को मुरारी नाम से सम्बोधित करती हैं ।

श्रीराधा के सोलह नामों की महिमा है न्यारी

जो मनुष्य जीवन भर श्रीराधा के इस सोलह नामों का पाठ करेगा, उसको इसी जीवन में श्रीराधा-कृष्ण के चरण-कमलों में भक्ति प्राप्त होगी । मनुष्य जीता हुआ ही मुक्त हो जाएगा ।

कलियुग केवल नाम अधारा

सभी मुनिगण वेदव्यासजी के आश्रम में पहुंचे और उनसे बोले—‘हम यह जानना चाहते हैं कि आपने स्नान करते समय ‘कलि तुम धन्य हो’, ‘कलि तुम साधु हो’—ऐसा कहकर कलियुग का गुणगान क्यों किया ?’

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण

विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है । प्रत्येक नाम का अर्थ वह परमात्मा ही है। भगवान विविध नामों में और विचित्र रूपों में अवतीर्ण होकर विचित्र भाव और रस के खेल खेलकर माया से मोहित सांसारिक जीवों को अपनी ओर आकर्षित करते है और उनको सब प्रकार के दुखों से मुक्त करके अपना परमानन्द देने का प्रयास करते हैं । इससे अधिक उनकी करुणा का परिचय क्या हो सकता है ?

हजार नामों के समान फल देने वाले भगवान श्रीकृष्ण के 28...

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘मैं अपने ऐसे चमत्कारी 28 नाम बताता हूँ जिनका जप करने से मनुष्य के शरीर में पाप नहीं रह पाता है । वह मनुष्य एक करोड़ गो-दान, एक सौ अश्वमेध-यज्ञ और एक हजार कन्यादान का फल प्राप्त करता है ।

भगवान श्रीकृष्ण के 108 नाम

भगवान के भक्त को भगवान जितने प्यारे लगते हैं, उनका नाम भी उसे उतना ही प्यारा लगता है; क्योंकि तेज:स्वरूप श्रीकृष्ण ही नामरूप में प्रकट होते हैं । अत: भगवान का नाम हमारी जिह्वा पर आ गया तो स्वयं भगवान ही हमारी जिह्वा पर आ गए ।

श्रीकृष्णनाम और पारस पत्थर

पारस से भी बढ़कर क्यों है श्रीकृष्णनाम