श्रीराधा का सोलह (षोडश) नाम स्तोत्र

भगवान नारायण ने श्रीराधा की स्तुति करते हुए उनके सोलह नाम और उनकी महिमा बतायी है—

राधा रासेस्वरी रासवासिनी रसिकेश्वरी ।
कृष्णप्राणाधिका कृष्णप्रिया कृष्णस्वरूपिणी ।।
कृष्णवामांगसम्भूता परमानन्दरूपिणी ।
कृष्णा वृन्दावनी वृन्दा वृन्दावनविनोदिनी ।।
चन्द्रावली चन्द्रकान्ता शरच्चन्द्रप्रभानना ।
नामान्येतानि साराणि तेषामभ्यन्तराणि च ।। (ब्रह्मवैवर्तपुराण, श्रीकृष्णजन्मखण्ड, १७।२२०-२२२)

श्रीराधा के सोलह नामों का रहस्य और अर्थ

श्रीराधा के इन सोलह नामों का रहस्य और अर्थ भगवान नारायण ने नारदजी को बताया था जो इस प्रकार हैं–

१. राधा–‘राधा’ का अर्थ है—भलीभांति सिद्ध । ‘राधा’ शब्द का ‘रा’ प्राप्ति का वाचक है और ‘धा’ निर्वाण का । अत: राधा मुक्ति, निर्वाण (मोक्ष) प्रदान करने वाली हैं । 

२. रासेस्वरी–वे रासेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की प्राणप्रिया अर्धांगिनी हैं, अत: ‘रासेश्वरी’ कहलाती हैं ।

३. रासवासिनी–उनका रासमण्डल में निवास है, इसलिए ‘रासवासिनी’ कहलाती हैं।

४. रसिकेश्वरी–वे समस्त रसिक देवियों की स्वामिनी हैं, इसलिए प्राचीन काल से संत लोग उन्हें ‘रसिकेश्वरी’ कहकर पुकारते हैं ।

५. कृष्णप्राणाधिका–श्रीकृष्ण को वे प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं इसलिए स्वयं श्रीकृष्ण ने उनका नाम ‘कृष्णप्राणाधिका’ रखा है ।

६. कृष्णप्रिया–वे श्रीकृष्ण की परम प्रिया हैं या श्रीकृष्ण उन्हें परम प्रिय हैं, इसलिए देवतागण उन्हें ‘कृष्णप्रिया’ कहकर सम्बोधित करते हैं ।

. कृष्णस्वरूपिणी–वे लीला (खेल-खेल) में श्रीकृष्ण का रूप धारण करने में समर्थ हैं और श्रीकृष्ण के समान हैं; इसलिए ‘कृष्णस्वरूपिणी’ कहलाती हैं ।

८. कृष्णवामांगसम्भूता–वे श्रीकृष्ण के वामांग से प्रकट हुई हैं, इसलिए श्रीकृष्ण ने ही उनका नाम रखा—‘कृष्णवामांगसम्भूता’ ।

९. परमानन्दरूपिणी–ये भगवान की परम आनंदस्वरूपा आह्लादिनी शक्ति है, इसी से श्रुतियों ने उन्हें ‘परमानन्दरूपिणी’ नाम से प्रसिद्ध किया।

१०. कृष्णा–‘कृष्’ शब्द मोक्षदायक है, ‘न’ उत्कृष्ट का द्योतक है और ‘आ’ देने वाली का सूचक है । श्रेष्ठ मोक्ष प्रदान करने वाली होने के कारण ये ‘कृष्णा’ कहलायीं  ।

११. वृन्दावनी–वृन्दावन उनकी राजधानी और मधुर लीलाभूमि है तथा वे वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी हैं, अत: वे ‘वृन्दावनी’ नाम से स्मरण की जाती है ।

१२. वृन्दा–‘वृन्द’ शब्द का अर्थ है सखियों का समुदाय और ‘आ’ सत्ता का वाचक है अर्थात् वे सखियों के समुदाय की स्वामिनी हैं; अत: वृन्दा कहलायीं ।

१३. वृन्दावनविनोदिनी–वृन्दावन में उनका विनोद (मन बहलाव) होता है, इसलिए वेद उन्हें ‘वृन्दावनविनोदिनी’ कहकर पुकारते हैं ।

१४. चन्द्रावली–इनके शरीर में नखरूप चन्द्रमाओं की पंक्ति सुशोभित है और मुख पर चन्द्रमा सदा विराजित है, इसलिए स्वयं श्रीकृष्ण ने उनका नाम रखा है—‘चन्द्रावली’ ।

१५. चन्द्रकान्ता–उनके शरीर पर अनन्त चन्द्रमाओं की-सी कांति रात-दिन जगमगाती रहती है, इसलिए श्रीकृष्ण प्रसन्न होकर उन्हें ‘चन्द्रकान्ता’ कहते हैं ।

१६. शरच्चन्द्रप्रभानना–इनका मुखमण्डल शरत्कालीन चन्द्रमा के समान प्रभावान है, इसलिए वेदव्यासजी ने उनका नाम रखा है—‘शरच्चन्द्रप्रभानना’ ।

श्रीराधा के सोलह नाम की महिमा है न्यारी

  • जो मनुष्य जीवन भर श्रीराधा के इन सोलह नाम (या स्त्रोत) का प्रतिदिन तीन समय पाठ करता है, उसके इसी जीवन में जन्म-जन्मान्तर के संचित पाप और शुभ-अशुभ कर्मों के भोग नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य जीता हुआ ही मुक्त हो जाता है।
  • श्रीराधा के नामों के जप से श्रीकृष्ण के चरण-कमलों की दास्यभक्ति प्राप्त होती है ।
  • इस सोलह नाम स्तोत्र के पाठ से मनुष्य को सभी अभिलाषित पदार्थ और सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है । 
  • षोडश नाम स्तोत्र का पाठ मनुष्य को श्रीकृष्ण का-सा तेज, शिव के समान औढरदानीपन (दानशक्ति), योगशक्ति और उनकी स्मृति प्रदान करता है ।

कई जन्मों तक श्रीकृष्ण की सेवा से उनके लोक की प्राप्ति होती है, किन्तु श्रीराधा की कृपा से साधक श्रीकृष्ण के गोलोक धाम को शीघ्र ही प्राप्त कर लेता है । शरीर छूटने पर उनका नित्य सहचर/सहचरी होकर उसे युगलसरकार की सेवा प्राप्त होती है । अष्ट सिद्धियों से युक्त उसे नित्य शरीर प्राप्त होता है तथा भगवान के साथ अनन्तकाल तक रहने का सुख, सारूप्य और उनका तत्वज्ञान प्राप्त होता है ।

भगवान श्रीकृष्ण को प्राणों से भी बढ़कर प्रिय ‘श्रीराधा’ नाम

राधा राधा नाम को सपनेहूँ जो नर लेय ।
ताको मोहन साँवरो रीझि अपनको देय ।।

भगवान श्रीकृष्ण का कथन है–‘उन राधा से भी अधिक उनका ‘राधा’ नाम मुझे मधुर और प्यारा लगता है । ‘राधा’ शब्द कान में पड़ते ही मेरे हृदय की सम्पूर्ण कलियां खिल उठती हैं । कोई भी मुझे प्रेम से राधा नाम सुनाकर खरीद सकता है । राधा नाम मेरा सदा बंधा-बंधाया मूल्य है । जिस समय मैं किसी के मुख से ‘रा’ सुन लेता हूँ, उसी समय उसे अपनी उत्तम भक्ति और प्रेम दे देता हूँ और ‘धा’ शब्द का उच्चारण करने पर तो मैं श्रीराधा का नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे-पीछे चलने लगता हूँ ।’

राधा’ इस एक नाम में जब इतनी शक्ति है तो श्रीराधा के सोलह नामों को यदि हृदय में धारण कर लिया जाए तो मनुष्य का जीवन कितनी उत्कृष्टता को प्राप्त हो जाएगा, इसे हम सोच भी नहीं सकते हैं । 

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