ठाकुर बांकेबिहारी जी के स्वरूप की विशेषता

श्रीवृंदावन धाम में विराजित ठाकुर बांकेबिहारी, जिनकी हर बात है निराली; जैसा उनका नाम निराला; वैसा ही उनका रूप-स्वरूप भी अत्यंत निराला...

भगवान विट्ठल और संत तुकाराम

भक्त के हृदय की करुण पुकार कभी व्यर्थ नहीं जाती, वह चाहे कितनी भी धीमी क्यों न हो, त्रिभुवन को भेदकर वह भगवान के कानों में प्रवेश कर ही जाती है और भगवान के हृदय को उसी क्षण द्रवित कर देती है । ऐसा ही एक प्रसंग है—भगवान विट्ठल और संत तुकाराम का ।

भगवान से विमुख होने पर किसी को सुख नहीं मिला

जब से गंगा ने श्रीकृष्ण चरणों को छोड़ा, तब से आज तक उनका बहना बंद नहीं हुआ, अर्थात् उनके जीवन में विश्राम नहीं आया । गंगा की पौराणिक कथा ।

भगवान श्रीकृष्ण और चंद्रावली सखी

ब्रज-सखी चंद्रावली भादप्रद शुक्ल की चौथ को हाथ में पूजा का थाल लेकर चंद्रमा के पूजन-दर्शन के लिए छत पर गई और चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए बोली—‘हे चंद्रदेवता ! हमारे ऊपर कृपा करो ।’ नारद जी ने जब चंद्रावली सखी को चौथ की रात्रि में चंद्रदर्शन करते हुए देखा तो उससे कहा—‘अरी बाबरी ! ये क्या कर रही है । तुझे व्यर्थ में ही कलंक लग जाएगा ।’

भगवान का भोग ग्रहण करना

भगवान के पूजन में विधि, मंत्र और सामग्री उतनी महत्वपूर्ण नहीं है, जितना की भाव । भक्त को जो कुछ भी सरलता से प्राप्त हो जाए, वही भक्तिपूर्वक सच्चे हृदय से अर्पण कर देने से भगवान संतुष्ट हो जाते हैं । चाहे कितनी भी उत्तम-से-उत्तम वस्तु भगवान को अर्पण की जाए, भाव बिना वे उसे स्वीकार नहीं करते हैं ।

लक्ष्मी-प्रेम या भगवान से प्रेम

एक दिन श्रीहरिप्रिया लक्ष्मी जी ने अपने पति वैकुण्ठपति भगवान विष्णु से व्यंग्य करते हुए कहा—‘नाथ ! यह संसार जितना मुझे चाहता है, उतना आपको नहीं चाहता है । इस संसार के लोग जितने मेरे भक्त हैं, उतने आपके नहीं हैं । यह बात आप भी जानते हैं । क्या आपको इससे जरा भी दु:ख नहीं होता है ?’

आसुंओं का महत्व

लीला-पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला संसार को किसी-न-किसी ज्ञान से अवगत कराती है । ऐसी एक लीला है जिसमें भगवान ने अपनी प्राप्ति के दो साधनों से संसार को अवगत कराया है—१. भगवान के विरह में बहाए गए आंसू और २. शरणागति ।

आदि शंकराचार्य जी द्वारा भगवान जगन्नाथ की रत्नवेदी पर पुनर्स्थापना

एक बार जगद्गुरु शंकराचार्य जी अपने आश्रम में अखण्ड आनंद-समाधि में लीन थे, सहसा उनका शरीर अपूर्व सिहरन से व मस्तिष्क नीले बादलों की-सी दिव्य प्रभा से भर गया । उनके नेत्रों में एक अलौकिक गोलाकार युगलनेत्र वाली छवि प्रकट हुई जिसे देख कर उनके नेत्रों से आनंदाश्रु बहने लगे ।

भगवान की पूजा या सेवा

सामान्य भाषा में भगवान की ‘सेवा’ और ‘पूजा’ दोनों का समान अर्थ माना जाता है; लेकिन वैष्णव आचार्यों ने भाव के अनुसार इनमें बहुत बड़ा अंतर माना है । जानते हैं, भगवान की सेवा और पूजा में अंतर क्या अंतर है ?

सीता जी की खोज में प्रभु श्रीराम की रुदन लीला

अनन्त ब्रह्माण्डों के स्वामी श्रीराम सीता जी को खोजते हुए इस प्रकार विलाप करते हैं, मानो कोई महाविरही और अत्यंत कामी पुरुष हों । पूर्णकाम, आनंद की राशि, अजन्मा और अविनाशी श्रीराम आज साधारण मानव के रूप में लीला कर रहे हैं ।