bhagwan venkateshwar lord tirupati

भगवान किसी भी व्यक्ति से प्रेम करने के लिए उसका कुल, जाति, रूप-रंग, योग्यता-विद्वता, धन-ऐश्वर्य या चतुराई नहीं देखते; वे तो केवल उसके हृदय के भाव और अपने लिए उसका प्रेम और समर्पण देखते हैं । फिर उसकी प्रेमडोर से ऐसे उलझ जाते हैं कि उसके लिए अपने मान की भी परवाह नहीं करते; इसीलिए कहा जाता है—‘भक्त के वश में हैं भगवान ।’

प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर प्रभु को नियम बदलते देखा ।
अपना मान टले टल जाए पर भक्त का मान न टलते देखा ।।

ऐसा ही एक प्रसंग भगवान वेंकटेश्वर और उनके अनन्य भक्त कुम्हार भीम का है । (कहीं पर कुम्हार का ‘भीमार’ नाम भी बताया गया है । भीम कुम्हार शब्द ही बिगड़ कर ‘भीमार’ हो गया ।)

कलियुग में दक्षिण भारत का वेंकटाचल भगवान विष्णु का नित्य निवास-स्थान है । महर्षि अगस्त्य की प्रार्थना से भगवान विष्णु ने वेंकटाचल (तिरुमाला, तिरुपति) को अपना निवास बनाया । आजकल यह स्थान ‘तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम्’ के नाम से प्रसिद्ध है ।

भगवान वेंकटेश्वर का अनन्य भक्त ‘भीम’ कुम्हार और उसकी पत्नी

बहुत पुराने समय की बात है । वेंकटाचल के समीप कूर्मग्राम में एक कुम्हार रहता था । उसका नाम ‘भीम’ और उसकी पत्नी का नाम ‘तमालिनी’ था । दोनों ही पति-पत्नी भगवान वेंकटेश्वर के अनन्य भक्त थे । कुम्हार भीम ने अपने घर में ही मिट्टी से भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति व सिंहासन बना लिए थे और मिट्टी के पुष्प बनाकर उनको भगवान पर अर्पित किया करता था ।

कृष्णावतार में जिस प्रकार गोपियों का मन श्रीकृष्ण में अटक गया था और श्रीकृष्ण के लिए उन्होंने अपनी सारी कामनाएं, निज-सुख छोड़ दिए, वे सब जगह श्रीकृष्ण का ही अनुभव करतीं और अपना सर्वस्व भगवान में समर्पण करके केवल उन्हीं की स्मृति रूपी धन को अपने पास रखती थीं; उसी प्रकार भीम और उसकी पत्नी सुबह उठ कर रात को सोने तक घर साफ करते हुए, खाना बनाते समय, घड़े बनाने के लिए मिट्टी जमा करते हुए, मिट्टी तैयार करते हुए, चाक चलाते हुए, घड़ों को आंच पर पकाते हुए, बाजार में बेचते समय ‘श्रीनिवास, श्रीनिवास’ ‘जै बालाजी, जै बालाजी’ नाम ही जपते रहते थे । नाम-स्मरण के सिवा उन्हें और कोई चिन्ता ही नहीं थी । गांव के लोग उनको पागल मानने लगे । 

गांव के लोग उनका मजाक उड़ाते हुए कहते—‘ब्रह्मादि देवता भी जिन्हें नहीं देख पाते, उन भगवान वेंकटेश्वर को दिन-रात पुकारने से क्या होगा ? इतना समय यदि अपनी कुम्हारी में लगाओगे तो तुम लोग धनवान बन जाओगे ।’

भीम कुम्हार कहता—‘हमारे बालाजी कुल, योग्यता और भोग-ऐश्वर्य नहीं देखते, वे तो केवल मनुष्य के हृदय का प्रेम और भक्ति देखते हैं ।’

गांव के बाहर से आकर यदि कोई व्यक्ति भीम कुम्हार के बारे में पूछता तो गांव वाले कहते—ऐसा कोई व्यक्ति गांव में नहीं रहता; किंतु यदि कोई पूछे ‘जै बालाजी’ कहां रहता है, तो लोग तुरंत उसका पता बताते हुए मजाक में कहते ‘उस कुम्हार का नाम भीमार नही है, वह तो ‘जै बालाजी’ की बीमारी है ।’

भगवान वेंकटेश्वर को नैवेद्य मिट्टी के पात्रों में क्यों निवेदित किया जाता है ?

एक बार वेंकटाचलम् पर भगवान वेंकटेश्वर का उत्सव होने वाला था, जिसके लिए धनवान लोग सोने-चांदी के पात्रों में सुन्दर-सुन्दर पकवान बना कर लाए । भीम भी अपनी पत्नी के साथ मिट्टी के घड़ों में भगवान को निवेदित करने के लिए साधारण पकवान बना कर ले गया ।

भगवान वेंकटेश्वर के आगे सोने-चांदी के बर्तनों में ब्राह्मणों द्वारा मंत्रों से अभिमंत्रित पकवान सजाए गए; वहीं एक ओर कोने में भीम कुम्हार द्वारा मिट्टी के घड़ों में लाया गया साधारण भोजन रखा था । ब्राह्मणों ने उस भोजन को भगवान को निवेदित करने से मना कर दिया और उपहास करते हुए कहा—‘भगवान श्रीनिवास को क्या सोने के बर्तनों और सुन्दर पकवानों की कमी है जो वे इन मिट्टी के घड़ों में रखा रूखा-सूखा भोजन अरोगेंगे ।’

भगवान पतितपावन और दीनबंधु होने के कारण दीन-हीन और पतित से भी उतना ही प्यार करते हैं जितना धनी-मानी से । भगवान उसी जीव से प्रेम करते हैं, जो उन पर विश्वास करके यह मान लेता है कि ‘मैं उनका हूँ, वे मेरे हैं’

कुम्हार दंपत्ति चुपचाप एक कोने में खड़े होकर भगवान से प्रार्थना कर रहे थे—‘हे भगवान ! आपके पुजारीगण धनवानों को अपना कर हमें दूर हटा रहे हैं और इतने सारे लोग हमारा परिहास कर रहे हैं । आपका एक नाम भक्ति-प्रिय है । हम तो आपके नाम-स्मरण के सिवाय और कुछ नहीं जानते हैं । हमें आपको नैवेद्य अर्पित करने के लिए ब्राह्मणों और उनके मंत्रों की भी आवश्यकता नहीं है । अगर तुम सत्य हो और हमारी भक्ति सच्ची है तो मिट्टी से पैदा होने वाले अन्न का प्रसाद अरोगने वाले आप क्या मिट्टी के बर्तनों में नैवेद्य ग्रहण नहीं कर सकते हैं ?’

इस तरह प्रार्थना करते हुए कुम्हार-दंपति ब्राह्मणों के बीच से होते हुए भगवान की मूर्ति के पास पहुंच गए और अपने मिट्टी के पात्र भगवान के चरणों में रख दिए । यह देखकर धनी-मानी लोग बहुत बुरा-भला कहने लगे ।

अब भगवान वेंकटेश्वर भी धर्म-संकट में पड़ गए । एक तरफ अनन्य भक्त का भक्ति से परिपूर्ण नैवेद्य और दूसरी तरफ वेद-मंत्रों से निवेदित नैवेद्य । वेद-मंत्रों का भी अतिक्रमण नहीं किया जा सकता ।

भगवान ने बीच का मार्ग निकाला । आकाशवाणी हुई—‘आज से मेरा नैवेद्य निवेदन वेद-मंत्रों से अभिमंत्रित ही हो; किन्तु सब मंत्रों से ऊपर मेरे प्रिय भक्तों का हृदय है जहां मैं सदैव विराजमान रहता हूँ; इसलिए मेरे भक्त भीम कुम्हार की याद में मेरे सभी वेदमंत्र अभिमंत्रित नैवेद्य मिट्टी के बर्तनों में ही निवेदित किए जाएं।’

यह सुनकर सभी लोग बहुत आनन्दित हुए ।

साक्षात् लक्ष्मीपति और व्रज (हीरे) के किरीट धारण करने वाले, नवरत्नों के आभूषण से भूषित होने वाले भगवान वेंकटेश्वर को तब से सभी अमृतमय नैवेद्य भीम की स्मृति में मिट्टी के पात्रों में ही निवेदित किए जाते हैं ।

जिसे जगत (समाज, परिवार, आत्मीयजनों व मित्रों) का आधार है, उसकी भगवान से कैसी रिश्तेदारी । जिसके खाते में जगत का आधार जमा नहीं रह गया, उसी का बोझ प्रभु अपने कंधों पर ढोते हैं ।

कुम्हार भीम और उसकी पत्नी को सायुज्य मुक्ति की प्राप्ति

उन दिनों वहां के राजा तोण्डमान भगवान वेंकटेश्वर की नित्य सुवर्ण के कमलपुष्पों से पूजा किया करते थे । वे भगवान वेंकटेश्वर (श्रीनिवास) के चचिया ससुर (पद्मावतीजी के चाचा) थे । एक दिन उन्होंने देखा कि भगवान के ऊपर मिट्टी के बने हुए कमल-पुष्प तथा तुलसीदल चढ़े हुए हैं । आश्चर्यचकित होकर राजा ने भगवान से पूछा—‘भगवन् ! ये मिट्टी के कमल और तुलसीदल चढ़ाकर कौन आपकी पूजा करता है ?’

भगवान ने कहा—‘कूर्मग्राम में एक कुम्हार मेरा अनन्य भक्त है । वह अपने घर में बैठ कर मेरी पूजा करता है और मैं उसकी प्रत्येक सेवा स्वीकार करता हूँ ।’

राजा तोण्डमान उस भक्त शिरोमणि कुम्हार का दर्शन करने के लिए उसके घर गए और कहा—‘मैं तुम्हारा दर्शन करने आया हूँ । बताओ, तुम भगवान की पूजा कैसे करते हो ?’

कुम्हार ने कहा—‘महाराज ! मैं क्या जानूं, भगवान की पूजा कैसे की जाती है ? आपसे किसने कह दिया कि कुम्हार पूजा करता है ?’

राजा ने कहा—‘स्वयं भगवान वेंकटेश्वर ने तुम्हारे पूजन की बात कही है ।’

राजा की बात सुनकर कुम्हार को पूर्व में भगवान वेंकटेश्वर द्वारा दिए गए वरदान की स्मृति हो आई, जिसमें भगवान ने कहा था कि ‘जब तुम्हारी की हुई पूजा प्रकाशित हो जाएगी और राजा तोण्डमान तुम्हारे घर आएंगे, उसी समय तुम्हें परमधाम की प्राप्ति हो जाएगी ।’

हरि व्यापक सर्वत्र समाना ।
प्रेम तें प्रगट होंहि मैं जाना ।।

तभी एक विमान जिसमें साक्षात् भगवान विष्णु विराजमान थे, आकाश से उतरा । कुम्हार की पत्नी ने भगवान को मिट्टी से बने पीढ़े पर बैठाया, मिट्टी के पात्र में ही जल और रूखा-सूखा भोजन परोस दिया । भगवान के समक्ष हाथ जोड़ कर दोनों पति-पत्नी ने कहा—‘भगवन् ! हम अत्यन्त दरिद्र हैं, जो कुछ हमारे पास है, वही आपकी सेवा में निवेदित कर रहे हैं, इसे स्वीकार कीजिए ।’

भगवान वेकटेश्वर ने उस मिट्टी के पात्र में दिए गए जल व भोजन को बड़े आनन्द से ग्रहण किया । इसके बाद 

कुम्हार और उसकी पत्नी ने भगवान को प्रणाम कर प्राण त्याग दिए और दिव्य रूप धारण कर विमान में बैठ कर वैकुण्ठ चले गए ।

भगवान की प्राप्ति में प्रेम ही सार है और कुछ नहीं ।

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