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भगवान वेंकटेश्वर और देवी पद्मावती का कल्याणोत्सव

अंत:पुर में वृद्ध सुवासिनी स्त्रियों ने पद्मावती को रेशमी साड़ी पहनाकर हीरों के गहने से सज्जित किया । फिर कस्तूरी तिलक व काजल आदि लगा कर उनसे गौरी पूजा करवाई । सहेलियां हाथ पकड़ कर पद्मावतीजी को कल्याण मण्डप में लाईं और श्रीनिवास जी के सामने बिठा दिया । भगवान श्रीनिवास ने अपने कंठ में पड़ी हुई माला हाथ में लेकर पद्मावती जी के गले में पहना दी और पद्मावती जी ने बेला के फूलों की माला भगवान के कण्ठ में पहना दी ।

ऐश्वर्य और समृद्धि देने वाली श्रीवेंकटेश्वर चालीसा

किसी की देवता की चालीस पदों में गाई गई स्तुति को ‘चालीसा’ कहते हैं । चालीसा में देवता के रूप, गुण, लीलाओं व कृपा का वर्णन होता है । अपनी प्रशंसा किसे पसंद नहीं होती है; इसलिए जब चालीसा का पाठ किया जाता है तो उसे सुनकर वह देवता प्रसन्न होते हैं और साधक पर अपनी कृपा बरसाने लगते हैं ।

कलियुग के प्रत्यक्ष भगवान : वेंकटेश्वर बालाजी

भगवान ने उन्हें अपने आलिंगन में लेकर अपने दांये और बायें वक्ष:स्थल में रख लिया । भगवान श्रीहरि जगत के कल्याण के लिए भूलोक आए थे केवल दो स्त्रियों की रक्षा के लिए नहीं; इसलिए चुपचाप वे सात कदम पीछे चले । तभी एक भयंकर ध्वनि हुई और वे शिलाविग्रह में परिवर्तित हो गए । तभी आकाशवाणी हुई—‘अब से मैं कलियुग के अंत तक वेंकटेश्वर स्वामी के नाम से इसी रूप में रहूंगा । अपने भक्तजनों की मनोकामना पूरी करना ही मेरा व्रत है ।’

भगवान वेंकटेश्वर को नैवेद्य मिट्टी के पात्रों में क्यों निवेदित किया...

तभी एक विमान जिसमें साक्षात् भगवान विष्णु विराजमान थे, आकाश से उतरा । कुम्हार की पत्नी ने भगवान को मिट्टी से बने पीढ़े पर बैठाया, मिट्टी के पात्र में ही जल और रूखा-सूखा भोजन परोस दिया । भगवान के समक्ष हाथ जोड़ कर दोनों पति-पत्नी ने कहा—‘भगवन् ! हम अत्यन्त दरिद्र हैं, जो कुछ हमारे पास है, वही आपकी सेवा में निवेदित कर रहे हैं, इसे स्वीकार कीजिए ।