bhagwan venkateshwar

इस श्वेतवाराहकल्प में कलियुग के जीवों पर कृपा-दृष्टि करने के लिए श्रीमहाविष्णु ने श्रीवेंकटेश्वर प्रभु के रूप में अर्चावतार (मूर्ति के रूप में अवतार) धारण किया है । संसार के प्राणियों के नयन-विषय बन कर, नेत्रों में बस कर वे ही ‘तिरुपति बालाजी’, ‘बालाजी’, ‘इन्दिरारमण’, वेंकटरमण, ‘श्रीनिवास’ और ‘गोविन्दा’ आदि नामों से प्रसिद्ध हैं ।

‘वेंकटेश्वर’ का अर्थ—‘वें’ का अर्थ है पाप और कट का अर्थ है काटने वाला अर्थात् पापों का नाश करने वाले ईश्वर ‘वेंकटेश्वर’ कहलाते हैं । जिस पर्वत पर उनका आलय (निवास) बना, वह पर्वत ‘वेंकटाचल’, ‘वेंकटाद्रि’ ‘शेषाचल’ और ‘शेषाद्रि’ कहलाया । लक्ष्मीजी और पद्मावतीजी के पति भगवान वेंकटेश्वर को यह वेंकटाचल सबसे अधिक प्रिय है । इसी वेंकटाचल पर्वत पर स्वामिपुष्करिणी तीर्थ के पास भगवान तिरुपति बालाजी का भव्य मन्दिर है; जहां वे अपनी आह्लादिनी शक्तियों—श्रीदेवी (लक्ष्मी) और भूदेवी (पद्मावती) के साथ प्रतिष्ठित हैं ।

चालीसा किसे कहते हैं ?

किसी की देवता की चालीस पदों में गाई गई स्तुति को ‘चालीसा’ कहते हैं । चालीसा में देवता के रूप, गुण, लीलाओं व कृपा का वर्णन होता है । अपनी प्रशंसा किसे पसंद नहीं होती है; इसलिए जब चालीसा का पाठ किया जाता है तो उसे सुनकर वह देवता प्रसन्न होते हैं और साधक पर अपनी कृपा बरसाने लगते हैं ।

भगवान वेंकटेश्वर की स्तुति में गाई जाने वाली ‘श्रीवेंकटेश्वर चालीसा’ के पाठ से वे साधक को अपने चरणकमलों की भक्ति प्रदान करते हैं, साथ ही संसार के समस्त ऐश्वर्य भी प्रदान कर देते हैं ।

श्रीवेंकटेश्वर चालीसा

॥ श्रीपद्मावती सहित श्रीनिवास परंब्रह्मणे नम:  ॥

दोहा

रामानुज पदकमल का, मन में धर कर ध्यान।
श्रीनिवास भगवान का, करें विमल गुण गान ।।
तिरुपति की महिमा बड़ी, गाते वेद-पुरान ।
कलियुग में प्रत्यक्ष हैं, वेंकटेश भगवान ।।

चौपाई

जय श्रीवेंकटेश करुणा कर ।
श्रीनिवास स्वामी सुख सागर ।।
जय जय तिरुपति धाम निवासी ।
अखिल लोक स्वामी अविनाशी ।।
जय श्रीवेंकटेश भगवाना ।
करुणा सागर कृपा निधाना ।।
सप्तगिरि शेषाचल वासी ।
तिरुपति पर्वत शिखर निवासी ।।
श्री दर्शन महिमा अति भारी ।
आते नित लाखों नर नारी ।।
देव ऋषि गंधर्व जगाते ।
सुप्रभात सब मिल कर गाते ।।
सकल सृष्टि के प्राणी आवें ।
सुप्रभात शुभ दर्शन पावें ।।
विश्वरूप दर्शन सुखकारी ।
श्रीविग्रह की शोभा भारी ।।
वेद पुराण शास्त्र यश गावें ।
अति दुर्लभ दर्शन बतलावें ।।
जिन पर प्रभु कृपा करते हैं ।
उनको यह दर्शन मिलते हैं ।।
महा विष्णु श्रीमन्नारायण ।
भक्तों के कारज सारायण ।।
शेषाचल पर सदा विराजे ।
शंख चक्र कर सुन्दर साजे ।।
अभय हस्त की मुद्रा प्यारी ।
सफल कामना करती सारी ।।
वेंकटेश प्रभु तिरुपति बाला ।
शरणागत रक्षक प्रतिपाला ।।
श्रीवैकुण्ठ लोक निज तज कर ।
श्रीस्वामी पुष्करिणी तट पर ।।
भक्त कार्य करने को आये ।
कलियुग में प्रत्यक्ष कहाये ।।
स्वामी तीर्थ पुण्यप्रद पावन ।
स्नान मात्र सब पाप नशावन ।।
जो इसमें करते हैं स्नान ।
उनको मिलता पुण्य महान ।।
प्रथम यहां दर्शन अधिकारी ।
श्रीवराह स्वामी सुखकारी ।।
पहले दर्शन इनका करके ।
भू-वराह को प्रथम सुमिर के ।।
श्रीवेंकटेश चरण चित धरना ।
श्रीनिवास के दर्शन करना ।।
वेंकटेश सम इस कलियुग में ।
अन्य देव नहीं इस जग में ।।
पहले भी नहीं हुआ कहीं है ।
आगे हो यह सत्य नहीं है ।।
‘ओऽम्’ नम: श्रीवेंकटबाला ।
भक्तजनों के तुम रखवाला ।।
भक्त जहां अगणित नित आते ।
सोना चांदी नकद चढ़ाते ।।
श्रद्धा से कर हुण्डी सेवा ।
सेवा से पाते सब मेवा।।
श्रीनिवास की सुन्दर मूर्ति ।
मनोकामना करती पूर्ति ।।
दर्शन कर हर्षित सब तन मन ।
सुन्दर सुखद सुशोभित दर्शन ।।
दिव्य मधुर सुन्दर प्रसाद है ।
‘लड्डू’ अमृत दिव्य स्वाद है ।।
महाप्रसाद दिव्य जो पाते ।
उनके पाप सभी कट जाते ।।
महिमा अति प्रसाद की भारी ।
मिटती भव बाधायें सारी ।।
केशर-चंदन युत चरणामृत ।
दिव्य सुगन्धित प्रभु का तीरथ ।।
तीर्थ-प्रसाद भक्त जो पाते ।
आवागमन मुक्त हो जाते ।।
‘चौरासी’ में फिर नहीं आते।
जो प्रसाद ‘लड्डू’ का पाते ।।
सुख संपत्ति वांछित फल पावे ।
फिर वैकुण्ठ लोक में जावे ।।
‘वें’ का अर्थ पाप बतलाया ।
‘कट’ का अर्थ काट दे माया ।।
माया पाप काटने वाला ।
वेंकटेश प्रभु तिरुपति बाला ।।
श्रीनिवास विष्णु अवतारा ।
महिमा जानत है जग सारा ।।
जो यह श्री चालीसा गावे ।
सकल पदारथ जग के पावे ।।
शब्द पुष्प श्री चरण चढ़ाकर ।
करे प्रार्थना भक्त ‘गदाधर’ ।।

दोहा

जय जय श्रीतिरुपति-पति श्रीनिवास भगवान ।
करो सिद्ध सब कामना स्वामी कृपा निधान ।।

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