gayatri devi mata

जो गान करने वाले का त्राण करती है, उसे ‘गायत्री’ कहते हैं । प्राचीन काल में ब्रह्माजी ने गायत्री को वेदों से तौला । चारों वेदों से भी गायत्री का पलड़ा भारी रहा । सौंभाग्य और आनन्द को देने वाली माता गायत्री की आराधना से साधक में सुमति आती है और हृदय में रहने वाले मोह रूपी अंधकार का नाश हो जाता है । गायत्री की आराधना से सभी प्रकार के पाप और दु:खों की निवृत्ति हो जाती है । 

गायत्री मन्त्र केवल यज्ञोपवीत धारियों को जपना चाहिए या सभी उसका जप कर सकते हैं; इस पर तो एक राय नहीं है । इसलिए जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है या जो यज्ञोपवीतधारी नहीं हैं; वे ‘गायत्री चालीसा’ का पाठ कर सकते हैं । गायत्री चालीसा इस प्रकार है—

दोहा

ब्रह्मज्ञान प्रसारिणी, सकल सिद्धि की खानि ।
बंदहुँ गायत्री तुम्हें, करहु कृपा जन जानि ।।

चौपाई

जयति जयति गायत्री माता ।
ध्यावहिं शंकर विष्णु विधाता ।।
ब्रह्मज्ञान प्रसारिणी जय जय ।
संकट सकल निवारिणी जय जय ।।
मोदभरणि सुख संपत्तिदायिनी ।
जयति जयति जय विश्व विधायिनी ।।
‘ॐ’ स्वरूपिणि कलिमल नाशिनि ।
‘भूर्भुव स्व:’ स्वयं प्रकाशिनि ।।
‘तत्सवितु’ हंसानिनि धन्या ।
तथा ‘वरेण्य’ वर विधि कन्या ।।
‘भर्गो’ भागहिं सकल कलेशा ।
ध्यावहिं जे ‘देवस्य’ हमेशा ।।
‘धीमहि’ धैर्यर्स्थर्य सदुपायिनी ।
‘धियो’ बुद्धिबल विद्यादायिनी ।।
‘यो न:’ नित नव मंगल कारिणि ।
‘प्रचोदयात्’ निखिल अद्य हारिणि ।।
तुही सच्चिदानन्द स्वरूपा ।
सियाराम रूपिणी अनूपा ।।
लषण पवनसुत कृष्ण स्वरूपिणि ।
राधानारायण अनुरूपिणि ।।
हृयग्रीव अरु गरुड़ गोपाला ।
रमा रमेश नृसिंह विधि बाला ।।
शिव पार्वति हंस अरु वृन्दा ।
भृगुपति सुरगुरु सूरज चंदा ।।
क्षिति जल पावक गगन समीरा ।
ध्यानहिं धरत हरत भवपीरा ।।
तुही जनेऊ मध्य विराजै ।
ब्रह्मसूत्र रूपिणि बनि भ्राजै ।।
नव सूत्रन मध्ये सब देवा ।
करहिं सतत जननी तव सेवा ।।
ॐकार पावक रवि तक्षक ।
पितर प्रजापति शशि जगरक्षक ।।
नवये निखिल देव अधिवासी ।
त्रिगुणी कृत श्रीविष्णु प्रकासी ।।
ग्रंथि बंध शिवशंकर करहीं ।
मन्त्र तुम्हार तुमहिं अनुसरहीं ।।
प्रति अक्षर गुण रूप तुम्हारे ।
त्रिगुणी कृत नव सूत्रहिं धारे ।।
ग्रंथि सुमेरु सहित मधु कर्षिनि ।
चतुविंशतिक वर्ण सुघर्णिनि ।।
आदि शक्ति तुव चरित अनूपा ।
तोहि भजि बनहिं रंक सूरभूपा ।।
श्वेताम्बरा मराल विहारिणी ।
पुस्तक पुष्प कमण्डलु धारिणि ।।
तुम्हारी शरण भक्त जे आवैं ।
वांछित सिद्धि सकल ते पावै ।।
ध्यान धरत हिय बढ़त हुलासू ।
सुख उपजत वर ज्ञान प्रकासू ।।
तुही जननि सब कष्ट निवारिणी ।
दारिद दुरित अविद्या हारिणी ।।
चारिउ वेद करहिं तव ज्ञाना ।
ऋषि मुनि सुरहु लगावहिं ध्याना ।।
तुही शारदा गौरी काली ।
ध्यावहि विष्णु विरंचि कपाली ।।
तुही जननि दुर्गा दु:ख हारिणी ।
मोदमयी सुख शान्ति प्रसारिणी ।।
महामन्त्र जेते जग मांही ।
कोऊ गायत्री सम नांही ।।
बिनु गायत्री मिलहिं न ज्ञाना ।
बिना ज्ञान दुर्लभ निर्वाना ।।
बिनु गुरु ज्ञान करहिं जे जापा ।
तिनहिं कोटि-शत लागहिं पापा ।।
गुरु दीक्षा लै जो तोहि ध्यावैं ।
सुर दुर्लभ पद ते जन पावैं ।।
महिमा अमित अतुल सुखदाई ।
नेति नेति कह वेदन गाई ।।
जेहि पर कृपा करहू तुम माता ।
तेहि पर कृपा करहि जगत्राता ।।
वाणी सिद्ध होइ तव ध्याये ।
मनवांछित पावहिं तोहि पाये ।।
सकल पदारथ जे जग मांही ।
ते भक्तन कहं दुर्लभ नांहीं ।।
पावहिं सतत अनुग्रह तोरा ।
जे तव चरितहिं होंह विभोरा ।।
कलियुग एकु यहै व्रत नेमा ।
गायत्री जप पावहिं क्षेमा ।।
अकथ अनादि तोर गुन गावा ।
सादर भक्त नवावहिं माथा ।।
कौन सकै महिमा कहिं तोरी ।
अगम अपार अनन्त अछोरी ।।
करहिं पाठ नित जे चालीसा ।
सुख संपति पावहिं वागीशा ।।

दोहा

श्री गायत्री अम्बिका, दुर्गा मंगलमूल ।
पूरी करो मम कामना, मिटहिं सकल भवशूल ।।
नित्य नेम करि भक्तियुत पाठ करहिं जे प्रात ।
तिनकी पुरवहि कामना, श्री गायत्री मात ।।

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