krishna arjun bhagvad gita

अर्जुन से बोले एक रोज मोहनमदन ।
भक्त संकट में आये तो मैं क्या करुं ।।
सीधी मुक्ति की राहें चलाईं मैंने ।
वो टेढ़ी राहों में जाए तो मैं क्या करुँ ।।
सारी सृष्टि रची संग में माया रची ।
कर्म करने की बुद्धि और शक्ति रची ।
मोह ममता में फंस तड़पता रहा ।
फिर मुझे भूल जाए तो मैं क्या करुँ ।।
कर्म करना मनुष्यों का कर्तव्य है ।
उसमें तेरी सफलता मेरे हाथ है ।
कामयाबी मिले होवे कृपा मेरी ।
वो दिल में अभिमान लाए तो मैं क्या करुँ ।।
अर्जुन वेदों पुराणों में लिखा यही ।
हरना दुखियों का दुख है ये भक्ति मेरी ।
रात दिन वेद गीता को पढ़ता रहा ।
फिर अमल में न लाए तो मैं क्या करुँ ।।
राम का नाम दुनिया में अनमोल है ।
न जपे तो मनुष्य की बड़ी भूल है ।
पाप करते सारी जिंदगी ढल गयी ।
फिर ये आंसू बहाये तो मैं क्या करुँ ।।
कर्म अच्छे करोगे तो मुझे पाओगे ।
कुकर्मी बनोगे तो पछताओगे ।
ज्ञान मोक्ष का अर्जुन सुनाया मैंने ।
कोई माने न माने तो मैं क्या करुँ ।।

भगवान श्रीकृष्ण ने मोह जाल में फंसकर निर्जीव पड़े अर्जुन को गीता रूपी ‘दुग्धामृत’ का जो पान कराया, उससे अर्जुन के हृदय के सारे विकार कपूर की तरह उड़ गये और उसे अपने कर्तव्य का ज्ञान हो गया । जब भगवान ही स्वयं उपदेशक हों तो वहां मनुष्य के मोह, अज्ञान आदि विकार रह ही कैसे सकते हैं ? 

प्रश्न यह है कि श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश केवल अर्जुन को ही अज्ञान के अधंकार से निकालने के लिए और उसके ‘विषाद योग’ को दूर करने के लिए किया था या सम्पूर्ण मानव-जाति के कल्याण के लिए उनका यह आह्वान था । 

इतना तो निश्चित है कि गीता का उपदेश भगवान ने केवल अर्जुन के लिए नहीं बल्कि समस्त मानव-जाति को अपनी प्राप्ति का मार्ग दिखलाने के लिए किया ।

जानते हैं कुछ कारण जिनके लिए श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश किया—

▪️ अनन्य भक्तों का योगक्षेम मैं स्वयं चलाता हूँ—इस बात का विश्वास लोगों को दिलाने के लिए भगवान ने गीता का उपदेश किया ।

▪️ कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन (२।४७) अर्थात्—कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर रे इंसान, जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान । यह ज्ञान संसार को देने के लिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता सुनाई ।

▪️ संसार को यह वचन देने के लिए कि अगर दुराचारी भी पश्चात्ताप और ईश्वर-भजन करेगा तो वह मुक्त हो जायेगा । गीता (९।३०-३१) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—चाहें बड़े-से-बड़ा दुराचारी भी क्यों न हो, यदि वह मुझे अनन्य भाव से भजता है तो उसे साधु ही समझना चाहिए; क्योंकि उसकी बुद्धि अच्छे निश्चय पर हो जाने से वह जल्दी ही धर्मात्मा होकर नित्य शान्ति प्राप्त करेगा ।

▪️ स्त्री, वैश्य और शूद्र भी परम गति प्राप्त कर सकते हैं—यह आश्वासन देने के लिए—‘ढोल, गंवार, शूद्र, पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी’—समाज में स्त्री और शूद्रों को जो अत्यन्त निम्न स्थान प्राप्त था, उनके कल्याण के लिए गीता (९।३२) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरा आश्रय लेने से, मेरा भजन करने से स्त्रियां, वैश्य, शूद्र और जो पापयोनि वाले हैं, वे भी परम गति को प्राप्त कर सकते हैं ।

▪️ यदि भक्त अपना हृदय शुद्ध करेगा तो उसे सब प्रकार का पांडिण्य—बुद्धियोग मैं प्राप्त करा दूंगा, यह वचन देने के लिए (गीता ४।३६, ३८, ३९)

▪️ संसार को प्रेम का पाठ पढ़ाने के लिए—ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते केषु चाप्यहम् (गीता ९।२९) अर्थात्–जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट हूँ ।

▪️ संसार को ज्ञान का महत्व बताने के लिए—ज्ञानी भगवान को बहुत प्यारा है । वह उसे अपना रूप ही बतलाते हैं । गीता (४।२६) में भगवान ने अर्जुन से कहा—‘तू ज्ञानी बन, क्योंकि पापसागर को पार करने के लिए ज्ञान ही नौका रूप है ।’

▪️ संसार को यह शिक्षा देने के लिए कि सभी मनुष्यों को अपने वर्ण, आश्रम और कुल के अनुसार धर्म का आचरण करना चाहिए ।

▪️ मनुष्य का सच्चा साथी धर्म है जो मृत्यु के बाद भी उसके साथ जाता है । अत: श्रीकृष्ण मनुष्य का साधारण धर्म क्या है ? यह बताने के लिए गीता में कहते हैं—अहिंसा, सत्य, भाषण, चोरी न करना, काम, क्रोध और लोभ का त्याग और प्राणियों का हित करना—ये मनुष्य के साधारण धर्म हैं ।

▪️ भगवान ने यह बताने के लिए गीता का ज्ञान दिया कि सभी मानव ईश्वर की संतान हैं (गीता १५।७)। संसार में मनुष्य केवल दो प्रकार के हैं—देवता और असुर । जिनके हृदय में दैवी सम्पदा है वह देवता है और जिसके हृदय में आसुरी सम्पदा कार्य करती है वह असुर है । इसके अलावा अन्य कोई जाति नहीं है (गीता १६।६)

▪️ कलियुग में मानव को हर तरह की कशमकश से छुटकारा दिलाने के लिए—भगवान ने संसार को गीता (१८।६५-६६) के माध्यम से यह आश्वासन दिया है कि ‘अब तुम व्यर्थ के झमेलों में मत पड़ो; मु

झ पर विश्वास करो, मेरा भजन करो, तुम्हारा कल्याण होगा, सारे पापों से मुक्ति मिल जाएगी और अंत में मेरी प्राप्ति होगी ।’

श्रीमद्भगवद्गीता एक अलौकिक ग्रन्थ है जिसमें बहुत ही विलक्षण भाव भरे हुए हैं । गीता का आशय खोजने के लिए जितना प्रयत्न किया गया है, उतना किसी दूसरे ग्रन्थ के लिए नहीं किया गया है । फिर भी इसकी गहराई का पता नहीं चल पाया है; क्योंकि इसका वास्तविक अर्थ तो केवल भगवान श्रीकृष्ण ही जानते हैं ।

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