Home Tags Bhagavad gita

Tag: bhagavad gita

क्या भगवान को देखा जा सकता है ?

गीता के इस श्लोक में भगवान ने अनन्य भक्ति द्वारा सुलभ होने वाली तीन बातें कहीं हैं—१. भगवान को प्रत्यक्ष देखना, २. भगवान को जानना और ३. भगवान में प्रवेश करना अर्थात् उनमें एकाकार हो जाना । इन तीनों बातों के सुंदर उदाहरण हमें पुराणों में अनेक प्रसंगों में मिलते हैं ।

शरणागति

जानें, कैसी है भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराम की शरणागतवत्सलता ?

भगवान श्रीकृष्ण की अर्जुन का गर्व-हरण लीला

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा अर्जुन का गर्व-हरण कैसे किया ?

कर्म और पुनर्जन्म

कितना निर्लिप्त रहता है कमल जल से ! पैदा होता है पानी में, बढ़ता-पनपता भी पानी में है, विकसित भी पानी में होता है, पानी में खिलता है, पानी में ही आठों पहर बसता है; परंतु पानी से सर्वथा अछूता, पानी को वह अपने ऊपर ठहरने ही नहीं देता, अपने से चिपकने नहीं देता, पानी आया तुरंत उसे लुढ़का कर फेंक देता है । इसी तरह कमल का आदर्श लेकर मनुष्य को संसार में कर्म करने चाहिए, तब वही कर्म उसके मोक्ष का द्वार खोल देंगे ।

चिंता और शोक से मुक्ति के लिए गीता के कुछ सिद्ध...

भगवान ही शान्ति का आगार है और कोई नहीं, उन्हीं के शरण में जाने से ही परम शान्ति मिलती है, मिल सकती है, धन-वैभव से शान्ति नहीं मिल सकती । विद्या से भी शान्ति नहीं मिलती। वह तो उसकी शरण में जाने से ही मिलेगी ।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश क्यों किया ?

श्रीमद्भगवद्गीता एक अलौकिक ग्रन्थ है, जिसमें बहुत ही विलक्षण भाव भरे हुए हैं । गीता का आशय खोजने के लिए जितना प्रयत्न किया गया है, उतना किसी दूसरे ग्रन्थ के लिए नहीं किया गया है, फिर भी इसकी गहराई का पता नहीं चल पाया है; क्योंकि इसका वास्तविक अर्थ तो केवल भगवान श्रीकृष्ण ही जानते हैं ।

निरोगी कौन ?

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि यदि मनुष्य युक्त आहार, युक्त विहार और युक्त चेष्टा करे; अपनी प्रकृति के अनुकूल, समय पर, सीमित मात्रा में भोजन करे तो फिर न किसी डॉक्टर की जरुरत रहेगी, न ही शरीर में कोई रोग आएगा और न ही अकाल मौत होगी; साथ ही मन में सदा शांति बनी रहेगी । यही दीर्घ और निरोगी जीवन का रहस्य है ।

हजार नामों के समान फल देने वाले भगवान श्रीकृष्ण के 28...

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘मैं अपने ऐसे चमत्कारी 28 नाम बताता हूँ जिनका जप करने से मनुष्य के शरीर में पाप नहीं रह पाता है । वह मनुष्य एक करोड़ गो-दान, एक सौ अश्वमेध-यज्ञ और एक हजार कन्यादान का फल प्राप्त करता है ।

विभिन्न प्रकार की सिद्धियां और उनके लक्षण

मनुष्य सिद्धि प्राप्ति के लिए अनेक कष्ट सहकर विभिन्न उपाय करता है परन्तु भगवान श्रीकृष्ण उद्धवजी को कहते हैं कि जो मुझ एक परमात्मा को अपने हृदय में धारण करता है, सब सिद्धियां उसके चरणतले आ जाती हैं और चारों मुक्तियां उसकी दासी बन कर सदैव उसके पास रहती हैं ।

कब है गीता का अध्ययन सार्थक ?

गीता भगवान श्रीकृष्ण का संसार को दिया गया प्रसाद है । गीता को समझने के लिए सिर्फ और सिर्फ आवश्यक है श्रीकृष्ण की शरणागति । इसीलिए गीता में शरणागति की बात मुख्य रूप से आई है । गीता शरणागति से ही शुरु होती है और शरणागति में ही समाप्त हो जाती है ।