मनुष्य पर पांच प्रकार के ऋण और उनसे छूटने के उपाय
भगवान की बनाई सृष्टि का कार्य-संचालन और सभी जीवों का भरण-पोषण पांच प्रकार के जीवों के परस्पर सहयोग से संपन्न होता है । ये हैं—१. देवता, २. ऋषि, ३. पितर, ४. मनुष्य और ५. पशु-पक्षी आदि भूतप्राणी । इसी कारण शास्त्रों में प्रत्येक गृहस्थ मनुष्य पर इन पांचों का—पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण, भूत ऋण और मनुष्य ऋण बताया गया हैं ।
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:
मानव जीवन की दो प्रधान भावनाएं हैं—स्वार्थ भावना और परहित भावना । स्वार्थ भावना मनुष्य के हृदय को संकीर्ण और निम्न स्तर का बना देती है; लेकिन परहित की भावना मनुष्य के हृदय को उज्ज्वल कर विशाल बना देती है । दूसरों के दु:ख दूर करने से स्वयं में आनन्द का आभास होता है । परमात्मा को भी ऐसे ही मनुष्य अत्यंत प्रिय होते हैं । इस प्रकार की प्रार्थना करने वाले मनुष्यों की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं ।
वेदमाता गायत्री : तीन नाम, तीन रूप और तीन ध्यान
गायत्री यद्यपि एक वेद का छन्द है, लेकिन इसकी एक देवी के रूप में मान्यता है । एक ही ईश्वरीय शक्ति जब भिन्न-भिन्न स्थितियों में होती है, तब भिन्न-भिन्न नामों से पुकारी जाती है । गायत्री को तीन नामों से पुकारा जाता है । आरम्भ, तरुणाई और परिपक्वता—इन तीन भेदों के कारण एक ही गायत्री शक्ति के तीन नाम रखे गए हैं । आरम्भिक अवस्था में गायत्री, मध्य अवस्था में सावित्री और अंत अवस्था में सरस्वती ।
चर्पट पंजरिका स्तोत्र
माता-पिता, भाई-बंधु, स्त्री-पुत्र, अपना शरीर, धन, मकान, मित्र और परिवार ये सब ममता के कच्चे धागे हैं । मनुष्य ममता के इन कच्चे धागों को बटोर कर एक मजबूत रस्सी बना ले और उसे भगवान के चरणकमलों से बांध दे । ममता के ये धागे कच्चे इसलिए हैं; क्योंकि जरा सा स्वार्थ टकराया, ये टूट जाते हैं । ममता दु:खरूप वासना है; परंतु भगवान का प्रेम मोक्षप्रद और उपासना है ।
प्रात:काल स्मरण किए जाने वाले कल्याणकारी श्लोक
प्रात:काल की अमृतबेला परमात्मा से बातचीत करने का समय है । इस समय सोकर उठते समय यदि परमपिता परमात्मा का नाम-स्मरण कर लिया जाए तो वह मनुष्य के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है ।
जीवन में एक नियम लेना जरुरी है
जिस प्रकार नदी का लक्ष्य होता है समुद्र; उसी तरह मानव जीवन का लक्ष्य है भगवान । जीवन में सब कुछ प्राप्त कर लेने पर भी मनुष्य अपने अंदर एक अनजाने अभाव का अनुभव करता है । वह ‘कुछ’ खोज रहा है, ‘कुछ’ चाह रहा है, वह ‘किसी’ को देखना-मिलना चाहता है; परन्तु जानता नहीं कि वह ‘कोई’ कौन है, कहां है, कैसा है ? भगवान की प्राप्ति ही संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है । इसके लिए जीवन में कोई एक नियम लेना जरुरी है । एक रोचक कथा ।
आरोग्य प्राप्ति के लिए सूर्य उपासना
सूर्य देव की कृपा से हम सौ वर्षों तक देखते रहें, सौ वर्षों तक श्रवण शक्ति से संपन्न रहें, सौ वर्षों तक प्रवचन करते रहें, सौ वर्षों तक अदीन रहे, किसी के अधीन होकर न रहें, सौ वर्षों से भी अधिक देखते, सुनते, बोलते रहें, पराधीन न होते हुए जीवित रहें । (यजुर्वेद)
‘अन्न-धन’ देने वाली मां अन्नपूर्णा : स्तोत्र
माता अन्नपूर्णा की आराधना करने से मनुष्य को कभी अन्न का दु:ख नहीं होता है; क्योंकि वे नित्य अन्न-दान करती हैं । यदि माता अन्नपूर्णा अपनी कृपादृष्टि हटा लें तो मनुष्य दर-दर अन्न-जल के लिए भटकता फिरे लेकिन उसे चार दाने चने के भी प्राप्त नहीं होते हैं । मां अन्नपूर्णा की प्रसन्नता के लिए भगवान आदि शंकराचार्य कृत एक सुन्दर स्तोत्र ।
नक्षत्रों का राजा है पुष्य नक्षत्र
नारदसंहिता के अनुसार पुष्य नक्षत्र में श्राद्ध करने से पितरों को असीम तृप्ति होती है और वे श्राद्ध करने वाले को धन-पुत्रादि का आशीर्वाद देते हैं । दशमी तिथि को पुष्य नक्षत्र पड़े तो ‘अमृत योग’ होता है इसमें श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न रहते हैं ।
एकादशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा : विधि
एकादशी तिथि को पूजन और व्रत करने वाले मनुष्य को काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली जैसी बुराइयों का त्याग कर इन्द्रिय-संयम का पालन करना चाहिए; तभी उसका व्रत और पूजा पूर्ण होगी; अन्यथा वह निष्फल हो जाएगी । व्रत-पूजन पूरी श्रद्धा और भाव से करना चाहिए ।