इधर उधर क्यों भटक रहा मन भ्रमर भांति उद्देश्य विहीन ।
क्यों अमूल्य अवसर जीवन का व्यर्थ खो रहा तू मतिहीन ।।
कर न चुकेगा तू जब तक अपने को बस, उसके आधीन ।
नहीं मिलेगी सुख-शान्ति, जब तक चरणकमल में न हो तल्लीन ।।
जिस प्रकार नदी का लक्ष्य होता है समुद्र; उसी तरह मानव जीवन का लक्ष्य है भगवान; क्योंकि मनुष्य उसी परमात्मा का अंश है । जीवन में सब कुछ–घर-परिवार, पैसा, बच्चे, नाम, यश आदि प्राप्त कर लेने पर भी मनुष्य अपने अंदर एक अनजाने अभाव का अनुभव करता है । वह ‘कुछ’ खोज रहा है, ‘कुछ’ चाह रहा है, वह ‘किसी’ को देखना-मिलना चाहता है; परन्तु जानता नहीं कि वह ‘कोई’ कौन है, कहां है, कैसा है ? आज अपने ही मन के रचे हुए जेल में मनुष्य अपने-आप कैदी बन गया है; न मन में संतोष है और न ही तृप्ति । वह अपने जीवन से आंख-मिचौली खेल रहा है । उसके सामने रहस्यों से भरा भविष्य और भाग्य का घड़ियाल है । एकाएक जब उसके जीवन की कश्ती दुर्भाग्य के तूफान में फंस कर भंवर में डूबने लगती है तो अंतर्मन की घण्टी बज उठती है । भगवान का नाम उसके हृदय में गूंजने लगता है और वह पुकार उठता है–’हे प्रभो ! मुझे बचाओ क्योंकि तुम्हीं मेरे माता-पिता, भाई, बंधु, सखा और सर्वस्व हो ।’
तब उसे समझ आ जाता है कि भगवान के चरण कमल ही उसके सच्चे आश्रय हैं । भगवान की प्राप्ति ही संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है । वह फिर भगवान की प्राप्ति के मार्ग पर चल पड़ता है । भगवान के मार्ग में चलने के लिए जो भी व्रत-नियम लिए जाते हैं, अनुष्ठान आदि किए जाते हैं, उन्हें ही ‘साधना’ कहते हैं ।
इस साधना के सफल होने के लिए जीवन में कोई एक नियम लेना जरुरी है । इस नियम का पालन करने के लिए मनुष्य में दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए, तभी लक्ष्य की प्राप्ति संभव है ।
जीवन में एक नियम लेना जरुरी है : रोचक कथा
एक बनिया कथा सुनने जाता था । कथावाचक संत ने बनिये से कहा—‘तुम कथा तो रोज सुनने आते हो; लेकिन तुम्हें जीवन में कुछ अच्छा-सा संकल्प लेना चाहिए । जैसे—रोजना भगवान के नाम के जप करने का या दिन में एक बार ठाकुरजी की मूर्ति का दर्शन करने का या सत्य बोलने का या किसी की निंदा न करने का संकल्प आदि ।
बनिये ने संत से कहा—‘मैं व्यापारी हूँ । यदि हर वक्त सत्य ही बोलूंगा तो मेरा व्यापार ही चौपट हो जाएगा । मैं माला लेकर नाम जप करता रहूं, या मंदिर में जाकर ठाकुरजी के दर्शन करुं, इतना वक्त मेरे पास कहां है ? बच्चों का पालन-पोषण भी तो करना है । तुम्हारे जैसा बाबाजी थोड़े ही हूँ, जो बैठ कर भजन ही करता रहूँ ।’
संत ने कहा—‘ठीक है, सत्य नहीं बोल सकते तो किसी की भी निंदा न करने का व्रत ले लो ।’
बनिये ने कहा—‘महाराज ! पूरे दिन व्यापार करने के बाद रात्रि में घर लौटने पर यदि मैं दो-तीन घण्टे इधर-उधर की बातों में न गुजारुं, तो मुझे नींद नहीं आती है; इसलिए मैं यह नियम भी नहीं ले सकता ।’
संत ने उसको कई और साधन बताए पर वह हरेक के लिए ना-नुकुर करता रहा । अंत में हार कर संत ने कहा—‘अच्छा तू बता, तू क्या कर सकता है ।’
बनिये ने कहा—‘मेरे घर के सामने एक कुम्हार रहता है, उससे मेरी मित्रता भी है । मैं संकल्प करता हूँ कि रोज सुबह अपने घर के सामने रहने वाले कुम्हार का मुख अवश्य देखूंगा ।’
संत ने कहा—‘ठीक है, उसको देखे बिना भोजन मत करना ।’
बनिये ने संत की बात मान ली । संत को दिए वचन के अनुसार रोज सुबह जब बनिये की पत्नी कहती कि ‘भोजन तैयार है, कर लो’ तो बनिया तुरंत छत पर जाकर सामने रहने वाले कुम्हार को देख लेता था जो घर के बाहर ही बर्तन बना रहा होता था । इस तरह बनिये का नियम चलता रहा ।
एक दिन कुम्हार सुबह कुछ जल्दी ही गांव के बाहर मिट्टी लेने चला गया । इस कारण बनिया उसका मुख देख न पाया । भोजन तैयार हो गया था, बनिये को भूख सताने लगी । वह सोचने लगा कि आज न जाने यह कुम्हार कहां मर गया ? अपना नियम निभाने के लिए बनिया उस कुम्हार को ढूंढ़ने निकला ।
भाग्यवश वह कुम्हार जब गांव के बाहर मिट्टी खोद रहा था तो उसे सोने की मुहरों व रत्नों से भरा घड़ा मिला । वह उस घड़े को जमीन से निकाल ही रहा था, तभी बनिया उसे ढूंढ़ता हुआ वहां आ पहुंचा । बनिये ने कुम्हार का मुख देखकर नियम पूरा होने के कारण राहत की सांस लेते हुए कहा—‘चलो, मैंने देख ही लिया ।’
उधर कुम्हार ने समझा कि बनिये ने उसे सोने की मुहरों का घड़ा निकालते हुए देख लिया है, वह जाकर राजा को इसकी सूचना दे देगा तो हाथ आई लक्ष्मी चली जाएगी ।
कुम्हार ने बनिये से कहा—‘तूने यह सब देखा है तो आधा तेरा, आधा मेरा; लेकिन किसी से कहना मत । मैं तुम्हें आधी सोने की मुहरें देता हूँ ।’ बनिये को सोना मिल गया ।
अब बनिया सोचने लगा—‘मैंने इस कुम्हार के सुबह-सुबह मुख-दर्शन का व्रत लिया तो मेरे घर लक्ष्मीजी का आगमन हो गया । यदि मैंने रोज सुबह भगवान के मुख के दर्शन का नियम लिया होता तो न जाने कितना अच्छा होता ? ऐसे तुच्छ और मजाकिया संकल्प से ऐसा लाभ हुआ तो यदि जीवन में कोई शुभ संकल्प किया जाए तो न जानें, जीवन में कितना शुभ घटित होगा ?’
ऐसा विचार कर बनिया पूरी तरह बदल गया और भगवान का भक्त बन गया ।
इस कथा का संदेश यही है कि प्रत्येक मनुष्य को जीवन में दो नियम अवश्य लेने चाहिए—
१. पाप कर्म से बच कर शुभ कर्म करने का; क्योंकि—
एक घड़ी का मोल ना, दिन का कहा बखान ।
सहजो ताहि न खोइये, बिना भजन भगवान ।।
सहजो भज हरिनाम कूँ, तजो जगत सों नेह ।
अपना तो कोइ है नहीं अपनी सगी न देह ।।
२. भगवान की तरफ बढ़ने का जो केवल भगवन्नाम जप से ही संभव है
मनुष्य जीवन केवल भगवत्प्राप्ति के लिए ही मिला है । भगवान ने कहा है–
‘इस अनित्य और सुखरहित लोक को प्राप्त करके यदि सुख चाहते हो तो मुझको भजो ।’
जीवन में परिस्थिति अनुकूल आए या प्रतिकूल हमारा उद्देश्य दृढ़ रहना चाहिए; क्योंकि अनुकूल परिस्थति में भक्ति करने में सहायता मिलती है और प्रतिकूल परिस्थितियों में पापों का नाश होकर कष्ट सहन करने की सामर्थ्य आ जाती है । भगवान भी तब कृपा करने में कोई कमी नहीं करते; क्योंकि उनका तो कथन ही है—
निज सरबस भगतन को सौंपूँ, अपनो स्वत्व भुलाऊँ ।
भगत कहैं सोइ करुँ निरन्तर, बेचैं तो बिक जाऊँ ।।