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एकाम्रेश्वर जहां बालुका-लिंग में विराजते हैं शिव

एकाम्रेश्वर का क्षितिलिंग दक्षिण भारत में शिवकांची में स्थित है । एकाम्रेश्वर-लिंग पार्वती जी द्वारा निर्मित बालुका-लिंग है, जिसकी वे पूजा करती थीं ।

सबसे बड़ा मूर्ख कौन ?

अंतकाल में जब बोलने की भी शक्ति नहीं होगी, प्राण-पखेरु इस देह रूपी पिंजरे को छोड़ कर उड़ गया होगा, तब सभी लोग कहेंगे—‘राम नाम सत्य है’; परंतु जब तक शरीर में शक्ति है, देह में आत्मा है, तब तक ‘रामनाम’ लेने की सीख कोई नहीं देता । यही इस संसार की सबसे बड़ी मूर्खता है ।

भक्तों की मुक्ति किस प्रकार की होती है ?

वैष्णव मुक्ति इसलिए स्वीकार नहीं करते; क्योंकि उन्हें भगवान की सेवा में आनंद, रस आता है । वैष्णवों को जो मुक्ति मिलती है, उसे ‘भागवती मुक्ति’ कहते हैं, जिसमें भगवान के धाम में वे अति दिव्य, अप्राकृत रूप धारण कर नित्य भगवान की सेवा करते हैं, उनकी लीलाओं में सम्मिलित होते हैं । स्वयं मुक्ति भी अपनी मुक्ति (मोक्ष) के लिए उस ब्रज की रज को जहां गोपीजन निवास करते थे, अपने मस्तक पर धारण करने के लिए लालायित रहती है ।

देवों के देव भगवान शिव के विभिन्न नाम और उनके अर्थ

भगवान से ज्यादा उनके नाम में शक्ति होती है । आज की आपाधापी भरी जिंदगी में यदि पूजा-पाठ के लिए समय न भी मिले; तो यदि केवल भगवान के नामों का पाठ कर मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है । यह सम्पूर्ण संसार भगवान शिव और उनकी शक्ति शिवा का ही लीला विलास है । पुराणों में भगवान शिव के अनेक नाम प्राप्त होते हैं ।

श्रीराधा-कृष्ण का अनुपम प्रेम

राधारानी ने ललिता सखी से कहा—‘सखी ! यदि श्रीकृष्ण के हृदय में करुणा नहीं है तो इसमें तुम्हारा तो कोई दोष नहीं है । अब जो मैं कहती हूँ सो तुम करो । थोड़ी देर में जब मेरे शरीर से प्राण निकल जायें, तब तुम मेरी अन्त्येष्टि-क्रिया इस प्रकार करना । मेरे इस शरीर को तमाल वृक्ष से सटाकर बांध देना और उसकी डाल में मेरे दोनों हाथ लटका देना जिससे जीवित अवस्था में न सही, मरने के बाद इस शरीर को श्रीकृष्ण का आलिंगन मिलता रहे ।’

निर्जला एकादशी : विशेष पूजा विधि एवं कथा

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ‘निर्जला एकादशी’ के नाम से जानी जाती है । अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है; परंतु जैसा कि इस एकादशी के नाम से स्पष्ट है, इसमें फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है । इसलिए गर्मी के मौसम में यह एकादशी बड़े तप व कष्ट से की जाती है । यही कारण है कि इसका सभी एकादशियों से अधिक महत्व है ।

फूलों-सा महकता जीवन

संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य है कि हम रोज ही लोगों को मृत्यु के मुख में जाते देखते हैं फिर भी उससे कुछ सीखते नहीं हैं । इस संसार को अपने अच्छे कर्मों से, अच्छे विचारों से, त्याग, प्रेम और सद्भावना से इस कदर भर दो कि ईश्वर भी यही चाहे कि हम सदैव उन्हीं के पास, उन्हीं के चरणों में रहें और इस संसार में वापिस न आएं अर्थात् जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाएं ।

जीवन में एक नियम लेना जरुरी है

जिस प्रकार नदी का लक्ष्य होता है समुद्र; उसी तरह मानव जीवन का लक्ष्य है भगवान । जीवन में सब कुछ प्राप्त कर लेने पर भी मनुष्य अपने अंदर एक अनजाने अभाव का अनुभव करता है । वह ‘कुछ’ खोज रहा है, ‘कुछ’ चाह रहा है, वह ‘किसी’ को देखना-मिलना चाहता है; परन्तु जानता नहीं कि वह ‘कोई’ कौन है, कहां है, कैसा है ? भगवान की प्राप्ति ही संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है । इसके लिए जीवन में कोई एक नियम लेना जरुरी है । एक रोचक कथा ।

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणीजी का गर्व-हरण

भगवान का स्वभाव है कि वे भक्त में अभिमान नहीं रहने देते; क्योंकि अभिमान जन्म-मरण रूप संसार का मूल है और अनेक प्रकार के क्लेशों और शोक को देने वाला है । भगवान अहंकार को शीघ्र ही मिटाकर भक्त का हृदय निर्मल कर देते हैं । उस समय थोड़ा कष्ट महसूस होता है; लेकिन बाद में उसमें भगवान की करुणा ही दिखाई देती है ।

जो कुछ होता है भगवान की इच्छा से होता है

यह विराट् विश्व परमात्मा की लीला का रंगमंच है । विश्व रंगमंच पर हम सब कठपुतली की तरह अपना पात्र अदा कर रहे हैं । भगवान की इस लीला में कुछ भी अनहोनी बात नहीं होती । जो कुछ होता है, वही होता है जो होना है और वह सब भगवान की शक्ति ही करती है । और जो होता है मनुष्य के लिए वही मंगलकारी है ।