Shri Ram bhagwan

मनुष्य जब असाध्य बीमारियों से घिर कर, पराधीन होकर मरणशय्या पर सोता है, उस विकट समय में ऐसा कोई भी उसका सम्बन्धी नहीं होता, जो सहायता करने के लिए उसके साथ चल सके क्योंकि ‘मनुष्य के पांचभौतिक शरीर छोड़ने पर उसका समस्त धन तिजोरी में ही पड़ा रह जाता है, पशु पशुशाला में बंधे रह जाते हैं, उसकी प्रिय पत्नी शोक से विह्वल होकर भी केवल दरवाजे तक साथ देती है, मित्र व परिवारीजन शमशान तक साथ जाते हैं और उसका अपना शरीर जिसका जीवन-भर उसने इतना ध्यान रखा, केवल चिता तक साथ देता है । आगे परलोक के मार्ग में केवल उसका धर्म (भगवान का नाम) ही साथ जाता है ।’ भगवान के पवित्र नाम-जप को हमारे शास्त्रों में कलियुग का मुख्य धर्म माना गया है ।

इसी बात को दर्शाता एक कथा-प्रसंग यहां दिया जा रहा है—

सबसे बड़ा मूर्ख कौन ? 

एक बड़ा धनी सेठ था । उसके यहां एक सरल हृदय गरीब ग्रामीण रहा करता था । एक दिन सेठ ने उसे अपना डंडा दिया । उस भोले-भाले हंसमुख ग्रामीण ने पूछा—‘’सेठजी, मैं इस डंडे का क्या करुँ ?’

सेठ ने मजाक करते हुए कहा—‘इसे तू अपने पास रख ? तुझसे बढ़ कर कोई मूर्ख मिले, तो उसे दे देना । तब तक तू इसे अपने पास रखना ।’

सरल हृदय ग्रामीण ‘बहुत अच्छा, सेठजी’ कह कर वहां से चला गया और उस डंडे को हाथ में लिए गांव में घूमने लगा ।

जब कभी सेठजी उसे मिलते, तब दिल्लगी करते हुए उससे पूछते—‘क्या अभी तक तुझे अपने से बड़ा मूर्ख नहीं मिला ? तब तो मैंने तुझको सबसे बड़ा मूर्ख समझ कर सच्ची परख की है ।’

कुछ समय बाद सेठजी बीमार पड़ गये । बीमारी इतनी बढ़ गई कि मृत्यु सामने दिखाई देने लगी । उस समय वह ग्रामीण उस डंडे को लेकर सेठ को देखने आया ।

ग्रामीण ने सेठ से पूछा—‘क्यों सेठजी, कैसे हो ?’

सेठ ने उत्तर दिया—‘अब तो चलने की तैयारी है ।’

ग्रामीण ने फिर पूछा—‘लौट कर कब तक आओगे ?’

सेठ ने झुंझला कर कहा—‘अब तो मुझे वहां जाना है, जहां से लौट कर आया नहीं जा सकता है ।’

ग्रामीण ने लम्बी सांस लेते हुए कहा—‘अच्छा, तो पाथेय (रास्ते में खाने के लिए भोजन) और राहखर्च तो ले लिया है ना ?’

सेठ ने दु:खी होते हुए कहा—‘भाई ! यहां का पाथेय वहां काम नहीं आता है । मैंने धन तो बहुत कमाया; परंतु यहां का कमाया धन यहीं छोड़ कर जाना पड़ता है । संसार में जिसे धन माना जाता है, उसे संतजन धन नहीं मानते हैं । कबीर ने कहा है—

कबीर सब जग निर्धना, धनवंता नहीं कोय ।
धनवंता सो जानिये, जाके रामनाम धन होय ।।

परंतु मैं तो इस रामनाम रूपी धन में कंगाल हूँ, भिखारी हूँ; इसलिए जैसे खाली हाथ आया था, वैसे ही खाली हाथ जा रहा हूँ ।’

ग्रामीण ने सेठ से कहा—‘तुम तो जा रहे हो, अब यह तुम्हारा डंडा किसे दूँ ?’

सेठ बोला—‘तुझसे कहा था न, कि जो तुझे अपने से अधिक मूर्ख दीखे, उसे ही दे देना । इसमें पूछना क्या है ?’

ग्रामीण ने कहा—‘तो सेठ ! यह तुम्हारा डंडा तुम्हीं रखो ।’

सेठ ने आश्चर्यचकित होकर कहा—‘क्यों, मैं क्यों रखूँ यह डंडा ?’

ग्रामीण ने मुसकराते हुए कहा—‘इस संसार रूपी सराय में जहां थोड़े दिन ही रहना है, उसके लिए धन-वैभव इकट्ठा करने के लिए इतनी मेहनत की । इतना अकूत धन जमा किया । और जहां अनंतकाल तक रहना है, जो हमारा शाश्वत घर है, वहां के लिए कुछ भी धन जमा नहीं किया, कोई तैयारी नहीं की । इससे बढ़ कर मूर्खता और क्या होगी ? मैं तो मूर्ख हूँ; परंतु तुम तो सेठ मूर्खों के शिरोमणि हो । अब लो अपना डंडा और संभालो इसे ।’

भोले-भाले ग्रामीण की इतनी बड़ी सीख सुन कर सेठ का हृदय अंदर तक वेदना से भर गया । अंत समय में उससे जैसा भी बन पड़ा, भगवान के नाम का स्मरण करने लगा ।

राज वृथा गजराज वृथा
वनिता सो वृथा, सब साज वृथा ते ।

गर्व वृथा गुण सर्व वृथा
अरु द्रव्य वृथा गये दान दया ते ।।

यार वृथा परिवार वृथा
संसार वृथा गुरु नित्य चेताते ।

एक राम के नाम बिना जग में
धिक्कार, सभी चतुराई की बातें ।।

अर्थात्—समस्त राजपाट, हाथी-घोड़े, पत्नी, समस्त भौतिक संसाधन और उनका अहंकार, गुण, धन, परिवार, दोस्त सब व्यर्थ हैं । यह बात सच्चा गुरु हमें सदैव बताता है । धिक्कार है इन सब पर । राम नाम का जप न किया तो संसार की समस्त चतुराई बेकार है ।

अंतकाल में जब बोलने की भी शक्ति नहीं होगी, प्राण-पखेरु इस देह रूपी पिंजरे को छोड़ कर उड़ गया होगा, तब सभी लोग कहेंगे—‘राम नाम सत्य है’; परंतु जब तक शरीर में शक्ति है, देह में आत्मा है, तब तक ‘रामनाम’ लेने की सीख कोई नहीं देता । यही इस संसार की सबसे बड़ी मूर्खता है ।

हम सभी जानते हैं कि मृत्यु एक अपरिहार्य सत्य है, फिर भी उससे मुंह छिपाने की कोशिश करते करते हैं । सब कुछ प्राप्त कर लेने के बाद भी मृत्यु के बाद मनुष्य के साथ केवल सूखी लकड़ी ही साथ चलती है । कबीर कहते हैं—

यह तन धन कछु काम न आई
ताते नाम जपो लौ भाई ।

कहइ कबीर सुनो मोरे मुनियाँ,
आप मुये पिछे डूब गयी दुनियाँ ।।

भाई हनुमानप्रसाद जी पोद्दार का कथन है—जिस भोगी मनुष्य को जिसने धन-संपदा, मान, यश इकट्ठा कर लिया है; इसलिए संसार उसे बुद्धिमान समझे, वही सबसे बड़ा मूर्ख है; और जिस त्यागी को संसार पागल समझे, वही सबसे बड़ा बुद्धिमान है ।

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