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पूजा में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का क्या महत्व हैं ?

किसी भी देवता के पूजन में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का बहुत महत्व है । पूजा के सरलतम रूप जिसे पंचोपचार पूजन कहते हैं; उसमें भगवान का पांच ही चीजों से पूजन करने का विधान है और ये पांच उपचार हैं—१. गंध, २. पुष्प, ३. नैवेद्य, ४. धूप और ५. दीप ।

सीता जी की चूड़ामणि

प्रभु श्रीराम के विवाह के बाद मां जानकी की मुंहदिखाई की रस्म शुरु हुई । कृपा की मूर्ति महारानी सुमित्रा ने जब घूंघट की ओट से जनकदुलारी का मुख देखा तो वे बस उन्हें देखती ही रह गईं और वात्सल्यवश नववधू को सौभाग्य का आशीर्वाद देते हुए उन्होंने अपने केशों से सजी चूडामणि को निकाल कर जानकी जी के जूड़े में सजा दिया ।

सबसे बड़ा मूर्ख कौन ?

अंतकाल में जब बोलने की भी शक्ति नहीं होगी, प्राण-पखेरु इस देह रूपी पिंजरे को छोड़ कर उड़ गया होगा, तब सभी लोग कहेंगे—‘राम नाम सत्य है’; परंतु जब तक शरीर में शक्ति है, देह में आत्मा है, तब तक ‘रामनाम’ लेने की सीख कोई नहीं देता । यही इस संसार की सबसे बड़ी मूर्खता है ।

द्वादश ज्योतिर्लिंग : स्तोत्र व महिमा

शिव पुराण के अनुसार भूतभावन भगवान शंकर मनुष्यों के कल्याण के लिए विभिन्न तीर्थों में लिंग रूप से वास करते हैं । जिस-जिस पुण्य-स्थलों में भक्तों ने उनकी आराधना की, उन स्थानों पर वे प्रकट होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए स्थित हो गए । वैसे तो शिवलिंग असंख्य हैं, फिर भी इनमें द्वादश (१२) ज्योतिर्लिंग ही प्रधान हैं ।

आली री मोहे लागे वृंदावन नीको

वृंदावन, मथुरा और द्वारका भगवान के नित्य लीला धाम हैं; परन्तु पद्म पुराण के अनुसार वृंदावन ही भगवान का सबसे प्रिय धाम है । भगवान श्रीकृष्ण ही वृंदावन के अधीश्वर हैं । वे ब्रज के राजा हैं और ब्रजवासियों के प्राणवल्लभ हैं । उनकी चरण-रज का स्पर्श होने के कारण वृंदावन पृथ्वी पर नित्य धाम के नाम से प्रसिद्ध है ।