Mirabai Krishna bhakt

वृंदावन, मथुरा और द्वारका भगवान के नित्य लीला धाम हैं; परन्तु  पद्म पुराण के अनुसार वृंदावन ही भगवान का सबसे प्रिय धाम है । भगवान श्रीकृष्ण ही वृंदावन के अधीश्वर हैं । वे ब्रज के राजा हैं और ब्रजवासियों के प्राणवल्लभ हैं । उनकी चरण-रज का स्पर्श होने के कारण वृंदावन पृथ्वी पर ‘नित्य धाम’ के नाम से प्रसिद्ध है । 

मीराबाई अपने सच्चे पति श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती थीं । अत: उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि मेरा प्रीतम के देश वृंदावन जाना ही उचित है–’मैं गिरधर के घर जाऊं ।’ वह जानती थीं कि उनकी प्रेम-साधना वृंदावन में ही फूले-फलेगी । वृंदावन मंदिरों का नगर है । यहां प्रत्येक गली में घर-घर में मंदिर हैं । मीराबाई ने वृंदावन की महिमा का वर्णन करते हुए एक सुन्दर भजन गाया है, जो श्रीकृष्ण भक्तों को बहुत प्यारा लगता है—

आली री मोहे लागे वृंदावन नीको,
घर घर तुलसी ठाकुर सेवा,
दर्शन गोविन्द जी को,
आली री मोहे लागे वृंदावन नीको ।।

निर्मल नीर बहे जमुना को,
भोजन दूध दही को,
आली री मोहे लागे वृंदावन नीको ।।

रतन सिंहासन आप विराजे,
मुकुट धरो तुलसी को,
आली री मोहे लागे वृंदावन नीको ।।

कुंजन कुंजन फिरत राधिका,
शबद सुनत मुरली को,
आली री मोहे लागे वृंदावन नीको ।।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
भजन बिना नर फीको,
आली री मोहे लागे वृंदावन नीको ।।

भारत में ब्रजभूमि भक्ति का केन्द्र मानी जाती है । ब्रज का सर्वस्व श्रीकृष्ण के लिए है । कोई भी अपने लिए कुछ नहीं चाहता, सब कुछ कृष्ण के लिए है । ब्रज के कण-कण में कृष्ण व्याप्त हैं; चाहे वह जड़ हो या चेतन । गिरिराज पर्वत, कृष्णप्रिया यमुना, कदम्ब के पेड़, करील की कुँजें, यमुना जी के तट सभी कुछ कृष्ण-प्रेम से ओतप्रोत हैं ।

नारद पुराण में कहा गया है—‘अस्सी कोस के ब्रजमण्डल में स्थित किसी भी कुण्ड तथा नदी में स्नान करने तथा उसके किनारे भक्ति करने से श्रीविष्णु-भक्ति सुगमता से प्राप्त होती है । ब्रजवासियों के विशुद्ध प्रेम में मग्न हो श्रीकृष्ण सदा ब्रज में विचरण करते रहते हैं ।’

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा भी है–

ब्रजवासी बल्लभ सदा मेरे जीवन प्रान ।
इन्हें न कबहूँ बिसारिहौं मोहि नंदबाबा की आन ।।

ब्रजभूमि में ऐसा कौन-सा आकर्षण है जो यहां की रज को मस्तक पर धारण करने के लिए अब तक लोग तरसते हैं ? इसका कारण यह है कि परब्रह्म यहां कण-कण में ‘ब्रजन’ करता है अर्थात् व्याप्त रहता है; इसीलिए यह ‘ब्रज’ कहलाता है । यहां का चप्पा-चप्पा श्रीराधाकृष्ण के चरण-चिह्नों से मण्डित है । यहां का कण-कण चिन्मय है । 

यही कारण है कि आदि शंकराचार्य जी भगवान से प्रार्थना करते है—

‘कब मेरा ऐसा भाग्य उदित होगा, जब मैं वृंदावन में यमुना के किनारे भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में अपने दिन व्यतीत कर सकूंगा ?’

श्री वल्लभाचार्य जी भी ब्रज-वृंदावन में वास करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं—

‘मुझे न मोक्ष चाहिए न स्वर्ग, न योग-सिद्धि चाहिए, न ज्ञान की आवश्यकता है, केवल ब्रजभूमि वास, आपका भोग लगा प्रसाद एवं चरणोदक की ही आंकाक्षा है ।’

वृंदावन युगल सरकार श्रीराधाकृष्ण की नित्य रास-स्थली होने के कारण भक्त यही चाहते हैं कि मृत्युपर्यन्त वे वृंदावन में ही वास करें, किसी भी परिस्थिति में उनका वृंदावन वास न छूटे; इसलिए वे जीवन भर वृंदावन की कुंज गलियों में भ्रमण कर उस दिन की प्रतीक्षा करते हैं कि उन्हें किस दिन युगल सरकार के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होगा । 

व्रज रज उड़ती देख कर मत कोई करियो ओट ।
व्रज रज उड़ मस्तक लगै गिरै पाप की पोत ।।

यही कारण है कि भारत ही नहीं विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग प्रतिवर्ष अनेक कष्ट और कठिनाईयां सह कर भी व्रज की ओर दौड़े चले आते हैं । गर्मियों में छोटे से नाले के रूप में बहने वाली प्रदूषित यमुना में स्नान, आचमन, पूजन कर गाते है—‘तेरौ दरस मोहि भावै श्रीयमुने ।’ 

गर्मी हो या सर्दी या बरसात, गोवर्धन की सात कोस की दंडौती परिक्रमा करते हैं । कुण्डों में आचमन करते हैं । क्यों ? इसका उत्तर यह है कि वृंदावन, गोवर्धन भगवान के हृदय हैं, ये आनन्द धाम हैं । आनंद अवतार श्रीकृष्ण के धाम में पहुंच कर सांसारिक पाप-तापों से क्लान्त मनुष्य अपने-आप को सबसे सुरक्षित महसूस करता है । ठंडी हवा के झोंके के समान व्रज रज की खुशबू उसके मन को असीम शांति प्रदान करती है ।

अत: भक्तों की यही कामना है–

व्रजधूरि ही प्राण सौं प्यारी लगे,
ब्रजमण्डल मांहि बसाये रहो ।
रसिकों के सुसंग में मस्त रहूं,
जग जाल सो नाथ बचाये रहो ।

नित बांकी ये झांकी निहारा करुं,
छवि छांक सो नाथ छकाये रहो ।
अहो बांकेबिहारी यही विनती,
मेरे नैनों से नैना मिलाये रहो ।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here