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भगवान श्रीराम, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है, का जन्म त्रेता युग में सू्र्य वंश के इक्ष्वाकु कुल में चैत्र शुक्ल नवमी, सोमवार, पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में कर्क जन्म लग्न में कर्क राशि में मध्याह्न १२ बजे अयोध्या के राजमहल में हुआ । उनका रंग नील श्मामल और वर्ण क्षत्रिय था । उनके कुलगुरु महर्षि वसिष्ठ थे । उन्होंने अयोध्या पर शासन किया; जबकि लीला संवरण अयोध्या में सरयू तट पर किया । श्रीराम चरित्र के आदि लेखक महर्षि वाल्मीकि हैं । श्रीराम ने लक्ष्मण और हनुमान जी को उपदेश दिया ।

भगवान श्रीकृष्ण, जिन्हें लीला पुरुषोत्तम कहा जाता है, का जन्म द्वापर युग में चन्द्र वंश के वृष्णि कुल में भाद्रप्रद कृष्ण अष्टमी को, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में वृष जन्म लग्न में वृष राशि में रात्रि १२ बजे मथुरा में कंस के कारागार में हुआ । उनका रंग नील श्मामल और वर्ण क्षत्रिय था । उनके कुलगुरु महर्षि गर्ग थे । उन्होंने द्वारका पर शासन किया; जबकि लीला संवरण प्रभास क्षेत्र में पीपल वृक्ष के नीचे किया । श्रीकृष्ण चरित्र के लेखक वेद व्यास जी हैं । श्रीकृष्ण ने प्रधान उपदेश अर्जुन और उद्धव जी को दिया ।

रामावतार और कृष्णावतार की भी अपनी-अपनी विशेषताएं रही हैं—

▪️ सभी अवतारों की अपनी अलग विशेषता होती है । किसी अवतार में धर्म ही विशेंष रूप से प्रधान रहता है तो किसी में प्रेम और आनंद । 

भगवान श्रीराम का अवतार सत्-तत्त्व की प्रधानता वाला है; इसीलिए सद्धर्म, सद्भाव, सद्विचार-सम्पन्न श्रीराम साक्षात् धर्म की मूर्ति हैं—‘रामो विग्रहवान धर्म: ।’ हिंदू-संस्कृति के सभी आदर्श उनके चरित्र में देखने को मिलते हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण का अवतार आनन्द प्रधान लीला अवतार है; इसलिए श्रीकृष्ण में आनन्द अधिक प्रकट हुआ है । वे लोगों के प्रेम व आसक्ति को अपनी ओर अधिक खींचते हैं । उनकी लीलाएं सभी मनुष्यों को सुख देने वाली हैं । मधुर प्रेम से ओत-प्रोत अद्भुत लीलाओंके कारण वे जनसाधारण के हृदय में लीला पुरुषोत्तम के रूप में बसे हुए हैं ।

▪️ कुछ लोग श्रीरामचंद्र जी को बारह कलाओं वाला अवतार मानते है और श्रीकृष्ण को सोलह कलाओं का पूर्ण अवतार माना जाता है । गीता में जगह-जगह श्रीकृष्ण ने अपने को पुरुषोत्तम (परमात्मा) कह कर वर्णन किया है; किंतु श्रीरामचंद्र जी ने अपने ईश्वरत्व को प्रकट नहीं किया । 

दोनों ही पूर्णावतार हैं क्योंकि सूर्य (जिनके वंश में श्रीराम प्रकट हुए थे) बारह राशियों में पूर्ण है । चंद्रमा (जिनके वंश में श्रीकृष्ण प्रकट हुए थे) सोलह कलाओं में पूर्ण माना जाता है । 

साथ ही स्थितियां जितनी अधिक विषम होती हैं, उतनी ही अधिक कलाओं के साथ भगवान का अवतार होता है । त्रेता में धर्म रूप वृषभ के तीन पैर—पवित्रता, दया और सत्य थे; जबकि द्वापर में धर्म रूपी वृषभ केवल दो ही पैरों—दया और सत्य पर खड़ा था । त्रेता युग की अपेक्षा द्वापर में समाज ज्यादा पतित हो चुका था; इसलिए भगवान श्रीकृष्ण को अधिक कलाओं के साथ अवतरित होना पड़ा । इस आधार पर रामावतार और कृष्णावतार को छोटा या बड़ा कहना गलत है ।

▪️ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एकपत्नी-व्रती थे । यही कारण है कि जब शूपर्णखा ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा तो भगवान श्रीराम ने शूपर्णखा की नाक काट कर उसे कुरुप बना दिया; किंतु श्रीकृष्ण ने सभी को जिन्होंने भी उन्हें कांत-भाव से चाहा, सुख प्रदान किया । उन्होंने कंस की दासी कुब्जा के कुबड़ेपन को दूर कर उसे भी सुंदर बना दिया ।

▪️ श्रीराम ने सूर्य-पुत्र सुग्रीव की रक्षा की और इंद्र-पुत्र बाली को मारा; किंतु श्रीकृष्ण ने सूर्य-पुत्र कर्ण को मारा और इंद्र-पुत्र अर्जुन की रक्षा की ।

▪️ श्रीरामचंद्र जी ने सीताजी के हरण और शक्ति लगने पर लक्ष्मण जी की मूर्च्छा के समय मोह-लीला की; किंतु श्रीकृष्ण ने द्वारका लीला में सोलह हजार एक सौ आठ रानियां, उनके एक-एक के दस-दस बेटे, असंख्य पुत्र-पौत्र और यदुवंशियों का लीला में एक ही दिन में संहार करवा दिया, हंसते रहे और यह सोचकर संतोष की सांस ली कि पृथ्वी का बचा-खुचा भार भी उतर गया। क्या किसी ने ऐसा आज तक किया है ? 

उन्हें किसी से भी मोह-शोक नहीं हुआ; बल्कि उन्होंने मोहग्रस्त अर्जुन को गीतारूपी महान अमृत पिला कर उसके मोह को नष्ट किया । साथ ही कलियुगी प्राणियों के मोह को नष्ट करने के लिए गीता रूपी अमृत को सदा के लिए छोड़ गए, जो जितना चाहे, पी ले । 

▪️ श्रीराम ने बाली का वध किया और श्रीकृष्ण ने स्वयं को व्याध (पूर्व जन्म का बाली) के हाथों बाण लगवा कर अपने को उसके पूर्वजन्म के ऋण से मुक्त किया । 

▪️ श्रीराम ने घोर धर्मसंकट की स्थिति में भी मर्यादा का पालन करना सिखाया; जबकि श्रीकृष्ण ने सभी को अनासक्ति और समता का पाठ पढ़ाया ।

▪️ राक्षसियों के उद्धार का भी दोनों अवतारों में अलग ही तरीका था । रामावतार में जहां श्रीराम ने ताड़का को एक ही बाण से मार कर मुक्ति दी; वहीं श्रीकृष्ण ने पूतना के विषमय स्तनों का पान कर उसे मां का दर्जा प्रदान किया और मुक्ति दी ।

▪️ श्रीराम और श्रीकृष्ण के चरित्र में एक बात समान है—शरणागत-वत्सलता । वाल्मीकीय रामायण में श्रीराम ने वचन दिया है—

‘जो एक बार भी शरण में आकर ‘मैं तुम्हारा हूँ’—इस प्रकार कह कर मुझसे रक्षा की प्रार्थना करता है, उसे मैं समस्त प्राणियों से अभय कर देता हूँ, यह मेरा स्वाभाविक व्रत है ।’

गीता (१८/६६) में भगवान श्रीकृष्ण का वचन है—

‘क्या करना है, क्या नहीं करना है, इस विचार का त्याग करके एक मेरी शरण में आ जा । मैं तुझे समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा, शोक मत कर ।’

परमात्मा के दोनों अवतार कल्याणकारी हैं  । जिस मनुष्य का चित्त जिस स्वरूप में रमता हो, उसी के आदर्श ग्रहण कर जीवन को सार्थक बना सकते हैं और परम शांति प्राप्त कर सकते हैं ।

जग में सुंदर हैं दो नाम ।
चाहे कृष्ण कहो या राम ।
बोलो राम राम राम ।
बोलो राम राम राम ।।

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