Surya Dev

वेदों में कहा गया है कि सूर्य एक जड़-पिण्ड या अग्नि का गोला ही नहीं है; वरन् ताप, प्रकाश और जीवन-शक्ति को देने वाला संसार का प्राण-स्वरूप है । सूर्य का बाहरी आकार जड़ है, लेकिन उसके भीतर चेतन आत्मा विराजमान है; इसीलिए सूर्य एक देवता हैं और भगवान श्रीकृष्ण की विभूति-स्वरूप होने के कारण ‘सूर्य नारायण’ कहलाते हैं । 

ऋग्वेद में कहा गया है कि ‘आरोग्यं भास्करादिच्छेन्मोक्षमिच्छे जनार्दनात्’ अर्थात् मनुष्य को आरोग्य की कामना सूर्य देव से करनी चाहिए क्योंकि इनकी उपासना करने से मनुष्य नीरोग रहता है । यजुर्वेद के एक मंत्र में सूर्य से आरोग्य की प्रार्थना करते हुए कहा गया है कि—

‘सूर्य देव की कृपा से हम सौ वर्षों तक देखते रहें, सौ वर्षों तक श्रवण शक्ति से संपन्न रहें, सौ वर्षों तक प्रवचन करते रहें, सौ वर्षों तक अदीन रहे, किसी के अधीन होकर न रहें, सौ वर्षों से भी अधिक देखते, सुनते, बोलते रहें, पराधीन न होते हुए जीवित रहें ।’

सूर्य देव रोग रूपी राक्षसों के विनाशक हैं

‘सूर्य सहस्त्रनाम’ में कहा गया है कि—‘दूरेण तं परिहरन्ति सदैव रोगा’ अर्थात् सूर्य दूर से ही उपासक के समस्त रोगों को हर लेते हैं । 

आरोग्य देने वाला भगवान सूर्य का मन्त्र

‘ॐ घृणि: सूर्य आदित्योम् ।’

आरोग्य देने वाला सूर्य का श्लोक

ॐ नम: सूर्याय शान्ताय सर्व रोग विनाशने ।
आयु: आरोग्य ऐश्वर्यं देहि देव जगत्पते ।।

इनमें से किसी भी मन्त्र के प्रतिदिन जप से मनुष्य जटिल रोगों से भी मुक्त हो जाता है ।

सूर्य देव : स्वास्थ्य और जीवनी-शक्ति का भण्डार

▪️सूर्य समस्त संसार का जीवन हैं । भगवान सूर्य जब उदय होते हैं तब उनकी दिव्य किरणों को प्राप्त करके ही यह संसार चेतन दशा को प्राप्त होता है । सूर्य के उदय होने से सभी प्राणियों का मन प्रफुल्लित हो उठता है । लाल रंग शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक है; इसीलिए उदय होते सूर्य का सेवन न केवल रोग नाश के लिए बल्कि दीर्घायु के लिए बहुत हितकर माना गया है । 

▪️सूर्य की किरणों से न केवल हमें रोशनी, उष्णता और विटामिन ‘डी’ प्राप्त होते हैं, वरन् उससे टॉनिक भी प्राप्त होता है जो हमारे शरीर व हमारी मनोदशा को स्वस्थ रखता है ।

▪️सूर्य की शक्ति गायत्री की उपासना से बुद्धि बढ़ती है और सुमति की प्राप्ति होती है ।

▪️सूर्य तेजोदेव हैं, वे उपासकों को तेजस्वी बनाते हैं । 

▪️सूर्य की उपासना करने वाला परमात्मा की ही उपासना करता है । सूर्य देव जिस पर प्रसन्न होते हैं, उसे नीरोग करने के साथ-साथ आयु, विद्या, बुद्धि, बल, धन, यश और मुक्ति भी देते हैं ।

▪️सूर्य की आराधना और प्राकृतिक नियमों के पालन से रोग दूर होते हैं । इसीलिए ऋग्वेद (८।१८।१०) में सूर्य की एक सुन्दर स्तुति है—‘हे अखण्ड नियमों के पालनकर्ता परम देव ! आप हमारे रोगों को दूर करें, हमारी दुर्मति का दमन करें और पापों को दूर हटा दें ।’ 

अर्थात्—सूर्य तभी कल्याण करते हैं, जब हम उनके समान नियम से काम करने वाले हों । जिस प्रकार सूर्य और चन्द्रमा लाखों वर्षों से नियमित रीति से कार्य कर रहे हैं, अपने आश्रितजनों को धोखा नहीं देते हैं; वैसे ही हम भी उनका आदर्श सामने रखकर काम करें ।

सूर्य की आराधना से दूर होने वाले रोग

▪️श्रीमद्गीता के अनुसार सूर्य भगवान की आंखें हैं; अत: विधिपूर्वक सूर्य की उपासना व ‘चाक्षुषोपनिषद्’ के पाठ करने से से अंधापन एवं नेत्र रोग दूर हो जाते हैं ।

▪️सूर्य के रविवार व्रत करने से रक्तविकार सम्बन्धी रोग जैसे फोड़ा, फुंसी, दाद, खाज, कोढ़ आदि दूर हो जाते हैं ।

▪️रक्त का पीलापन, पतलापन, लोहे की कमी, और नसों की दुर्बलता आदि रोगों में सूर्य चिकित्सा बहुत लाभदायक मानी गई है ।

▪️बहुत से घरों में सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं, वहां शीतकाल में सर्दी तो बनी ही रहती है साथ ही वहां के निवासी गठिया, साइटिका, स्नायु रोग व पक्षाघात जैसे रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं । सूर्य के ताप से टी.बी., कैंसर, पोलियो आदि रोगों के जीवाणु स्वत: मर जाते हैं ।

▪️कितने ही रोग केवल सूर्य की किरणों के सेवन से ही दूर हो जाते हैं । सूर्य-किरण चिकित्सा के द्वारा सूर्य की भिन्न-भिन्न रंगों की किरणों के विधि अनुसार सेवन से शरीर के विषों और रोगों को दूर किया जा सकता है । भिन्न-भिन्न रंगों की बोतलों में जल भर कर उसे सूर्य की धूप में रखने से उसमें विभिन्न रोगों के नाश की शक्ति उत्पन्न हो जाती है ।

▪️सूर्य देव की उपासना के मंत्रों से पीलिया रोग का पीलापन निकाल कर उसे उस रंग के पक्षियों या वृक्षों में फेंका जा सकता है । इसी कारण से नवजात शिशु में होने वाले पीलिया रोग को दूर करने के लिए उसे धूप में रखा जाता है ।

▪️भगवान श्रीकृष्ण और जाम्बवती के पुत्र साम्ब ने कोढ़ से मुक्ति के लिए चन्द्रभागा नदी के तट पर सूर्य की आराधना की थी । 

▪️इसके अलावा दरिद्रता, शोक, भय और कलह भी सूर्य की कृपा से नष्ट हो जाते हैं । 

आरोग्य की कामना के लिए सूर्योपासना के नियम

—सूर्योपासक को सूर्योदय से पहले ही सोकर उठ जाना चाहिए ।

—स्नान के बाद नित्य सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए ।

—प्रतिदिन प्रात:काल सूर्य के २१ नाम, १०८ नाम या १००८ नाम, जितने बन पड़ें, उतने नामों का पाठ करना चाहिए । 

—सूर्यदेव की कृपा प्राप्ति के लिए ‘आदित्यहृदय स्तोत्र’ का पाठ भी अत्यंत लाभदायक है । इसका पाठ प्रतिदिन करें अन्यथा रविवार के दिन तो अवश्य ही करना चाहिए । 

—नेत्ररोग दूर करने के लिए प्रतिदिन नेत्रोपनिषद् का पाठ कर सूर्य को नमस्कार करें ।

—सूर्योपासक को रविवार को तेल, नमक और अदरक नहीं खानी चाहिए ।भुवन-भास्कर सूर्य देव को कोटि कोटि नमन करते हुए प्रार्थना करें कि ‘वे हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलें। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलें’—‘तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्माऽमृतं गमय ।’

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