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आरोग्य प्राप्ति के लिए सूर्य उपासना

सूर्य देव की कृपा से हम सौ वर्षों तक देखते रहें, सौ वर्षों तक श्रवण शक्ति से संपन्न रहें, सौ वर्षों तक प्रवचन करते रहें, सौ वर्षों तक अदीन रहे, किसी के अधीन होकर न रहें, सौ वर्षों से भी अधिक देखते, सुनते, बोलते रहें, पराधीन न होते हुए जीवित रहें । (यजुर्वेद)

सूर्य देव को लाल चंदन और कनेर के पुष्प अत्यंत प्रिय...

भगवान सूर्य ने विश्वकर्मा के कथनानुसार अपने सारे शरीर में इनका लेप किया, जिससे उनकी सारी वेदना मिट गयी । उसी दिन से लाल चंदन और कनेर (करवीर) के पुष्प भगवान सूर्य को अत्यंत प्रिय हो गए और उनकी पूजा में प्रयुक्त होने लगे ।

भगवान सूर्य का परिवार

भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं । आदित्य लोक में भगवान सूर्य साकार रूप से विद्यमान हैं । वे रक्त कमल पर विराजमान हैं, उनका वर्ण हिरण्यमय है । उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें दो हाथों में वे पद्म धारण किए हुए हैं और दो हाथ अभय तथा वर मुद्रा से सुशोभित हैं । वे सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं और गरुड़ के छोटे भाई अरुण उनके रथ के सारथि हैं ।

सूर्य की संक्रान्ति है महाफलदायी

मकर-संक्रान्ति पर क्यों हैं गंगास्नान का महत्त्व

हजार नामों के समान फल देने वाले भगवान सूर्य के 21...

प्रतिदिन सूर्य के 21 नामों का पाठ आरोग्य, धन व यश देने वाला और कुष्ठरोग को दूर करने वाला है।

कैसे करनी चाहिए नित्य सूर्यपूजा?

संसार के अन्धकार को दूर करने व मनुष्य को कर्म करने को प्रेरित करने के लिए साक्षात् नारायणरूप भगवान सूर्य प्रतिदिन प्रात:काल इस भूमण्डल पर उदित होते हैं। अत: उनके स्वागत के लिए मनुष्य को प्रतिदिन सूर्यार्घ्य देना चाहिए।

नित्य सूर्यपूजा क्यों करनी चाहिए?

जिस मनुष्य को राज्यसुख, भोग, अतुल कान्ति, यश-कीर्ति, श्री, सौन्दर्य, विद्या, धर्म और मुक्ति की अभिलाषा हो, उसे सूर्यनारायण की पूजा-आराधना करनी चाहिए। सूर्यपूजा से मनुष्य की सभी आपत्तियां एवं आधि-व्याधि दूर हो जाती हैं।

सूर्य अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र : युधिष्ठिर को अक्षयपात्र की प्राप्ति

भुवन-भास्कर भगवान सूर्य परमात्मा नारायण के साक्षात् प्रतीक हैं, इसलिए वे सूर्यनारायण कहलाते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए कहा है--‘ज्योतिषां रविरंशुमान्’ अर्थात् मैं (परमब्रह्म परमात्मा) तेजोमय सूर्यरूप में हूं। सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं, इस ब्रह्माण्ड के केन्द्र हैं--आकाश में देखे जाने वाले नक्षत्र, ग्रह और राशिमण्डल इन्हीं की आकर्षण शक्ति से टिके हुए हैं।