दु:ख नाश के लिए करें शनि देव के 10 नामों का...

शनि पीड़ा से मुक्ति के लिए उनके दस नामों का नित्य पठन-मनन करना बहुत लाभदायक माना गया है । शनि का दण्ड मिलते-मिलते प्राणी यदि स्वयं में सुधार कर लेता है तो सजा की अवधि समाप्त होने पर वह उसे अपार धन-दौलत, वैभव, ऐश्वर्य, दीर्घायु और दार्शनिक चिन्तन शक्ति प्रदान करते हैं ।

कर्मफलदाता शनिदेव : एक परिचय

शनिदेव का रंग काला, अवस्था वृद्ध, आकृति दीर्घ, लिंग नपुंसक, वाहन गिद्ध, वार शनिवार, धातु लोहा, रत्न नीलम, उपरत्न जमुनिया या लाजावर्त, जड़ी बिछुआ, बिच्छोलमूल (हत्था जोड़ी) व समिधा शमी है ।

राजा नल को कैसे मिली शनि पीड़ा से मुक्ति ?

नवग्रहों में शनि को दण्डनायक व कर्मफलदाता का पद दिया गया है । यदि कोई अपराध या गलती करता है तो उनके कर्मानुसार दण्ड का निर्णय शनिदेव करते हैं । वे अकारण ही किसी को परेशान नहीं करते हैं, बल्कि सबको उनके कर्मानुसार ही दण्ड का निर्णय करते हैं ।

शनिपीड़ा से मुक्ति के लिए करें इन तीन नामों का जाप

शनि ने वचन दिया कि वह चौदह वर्ष तक की आयु के जातकों को अपनी साढ़ेसाती से मुक्त रखेंगे । पिप्पलाद ने कहा—जो व्यक्ति इस कथा का ध्यान करते हुए पीपल के नीचे शनिदेव की पूजा करेगा, उसके शनिजन्य कष्ट दूर हो जाएंगे ।

शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है ?

हनुमानजी रामसेतु की दौड़कर प्रदक्षिणा करने लगे । इससे उनकी विशाल पूंछ, जिसमें शनिदेव बंधे हुए थे, वानर व भालुओं द्वारा रखे गये बड़े-बड़े पत्थरों से टकराने लगी । बजरंगबली बीच-बीच में अपनी पूंछ को पत्थरों पर पटक भी देते थे ।

शनिदेव की दृष्टि में कौन-से कार्य हैं अपराध

‘जाको प्रभु दारुण दु:ख देहीं, ताकी मति पहले हरि लेहीं’ जिस व्यक्ति को शनिदेव को दण्ड देना होता है, पहले उसकी बुद्धि हर लेते हैं।

सूर्य अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र : युधिष्ठिर को अक्षयपात्र की प्राप्ति

भुवन-भास्कर भगवान सूर्य परमात्मा नारायण के साक्षात् प्रतीक हैं, इसलिए वे सूर्यनारायण कहलाते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए कहा है--‘ज्योतिषां रविरंशुमान्’ अर्थात् मैं (परमब्रह्म परमात्मा) तेजोमय सूर्यरूप में हूं। सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं, इस ब्रह्माण्ड के केन्द्र हैं--आकाश में देखे जाने वाले नक्षत्र, ग्रह और राशिमण्डल इन्हीं की आकर्षण शक्ति से टिके हुए हैं।

भाव, भक्ति एवं भजनपूरित एक वर्ष

जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है, उसी का सब है जल्वा, जो जहाँ में आशकारा है। गुनह बख्शो, रसाई दो, बसा लो अपने कदमों...