shani dev

नवग्रहों में शनि देव का सम्बन्ध नियम, नैतिकता व अनुशासन से है । शनि को दण्डनायककर्मफलदाता का पद दिया गया है । इनकी अवहेलना करने पर शनि कुपित हो जाते हैं । यदि कोई अपराध या गलती करता है तो उनके कर्मानुसार दण्ड का निर्णय शनि देव करते हैं और जीवन से सुख-चैन, खुशी व आनन्द को दूर कर दरिद्रता, दु:ख, कष्ट, झंझट व बाधाएं आदि प्रदान करते हैं । वे अकारण ही किसी को परेशान नहीं करते हैं, बल्कि सबको उनके कर्मानुसार ही दण्ड का निर्णय करते हैं और इस तरह प्रकृति में संतुलन पैदा करते हैं । यदि शनि का दण्ड मिलते-मिलते प्राणी स्वयं में सुधार कर लेता है तो सजा की अवधि समाप्त होने पर वह उसे अपार धन-दौलत, वैभव, ऐश्वर्य, दीर्घायु और दार्शनिक चिन्तन शक्ति प्रदान करते हैं । 

शनि देव को प्रसन्न करने के लिए करें उनके दस नाम वाले श्लोक का पाठ

कोणस्थः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः ।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः ।।
एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
शनैश्चर कृता पीड़ा न कदाचित् भविष्यति ।।

अर्थात्—

  1. कोणस्थ,
  2. पिंगल,
  3. बभ्रु,
  4. कृष्ण,
  5. रौद्रान्तक, 
  6. यम, 
  7. सौरि,
  8. शनैश्चर,
  9. मन्द, और
  10. पिप्पलाश्रय

शनि देव के इन दस नामों का प्रात:काल पाठ करने से मनुष्य को कभी शनि पीड़ा नहीं सताती है । 

सब प्रकार की सांसारिक झंझटें दूर हो जाती हैं ।सही कहा गया है—‘शनि देव के दस नाम हर लेते हैं दु:ख तमाम’ ।

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