श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा कृष्णभक्ति में रचित अच्युताष्टकम्

श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा रचित अच्युताष्टकम् भगवान श्रीहरि को प्रसन्न करने वाला स्तोत्र है । जिन पापों की शुद्धि के लिए कोई उपाय नहीं, उनके लिए भगवान के नामों के स्तोत्र का पाठ करना सबसे अच्छा साधन है । नामों का पाठ मंगलकारी, मनवांछित फल देने वाला, दु:ख-दारिद्रय, रोग व ऋण को दूर करने वाला और आयु व संतान को देने वाला माना गया है ।

वेद में परमात्मा की स्तुति : पुरुष सूक्त

वेदों में मनुष्य के कल्याण के लिए ‘सूक्त’ रूपी अनेक मणियां हैं । सूक्त में देवी या देवता विशेष के ध्यान, पूजन तथा स्तुति का वर्णन होता है । इन सूक्तों के जप और पाठ से सभी प्रकार के क्लेशों से मुक्ति मिल जाती है, व्यक्ति पवित्र हो जाता है और उसे मनो अभिलाषित की प्राप्ति होती है । विराट् पुरुष के वैदिक स्तवन पुरुष सूक्त की बड़ी महिमा है । इसके नित्य पाठ से मनुष्य परम तत्त्व को जानने में सक्षम होता है और उसकी मेधा, प्रज्ञा और भक्ति की वृद्धि होती है ।

गान करने पर त्राण करने वाली श्रीगायत्री चालीसा

गायत्री मन्त्र केवल यज्ञोपवीत धारियों को जपना चाहिए या सभी उसका जप कर सकते हैं; इस पर तो एक राय नहीं है । इसलिए जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है या जो यज्ञोपवीतधारी नहीं हैं; वे ‘गायत्री चालीसा’ का पाठ कर सकते हैं ।

स्वस्थ व सुखी जीवन के स्वर्णिम सूत्र

यदि मनुष्य बार-बार यह कहे कि ‘मैं बीमार हूँ, मैं बीमार हूँ, मुझे कोई रोग हो गया है’ तो यह सिद्ध बात है कि कुछ ही समय में उसका शरीर रोगी हो जाएगा । सुख-दु:ख कभी बाहर से नहीं आते । जिसके मन में दु:ख के लिए कोई स्थान नहीं है, वह कभी दु:खी नहीं हो सकता, वह तो सदा सुखी ही रहेगा । इसलिए मनुष्य को कभी भी नकारात्मक विचारों को अपने मन में स्थान नहीं देना चाहिए ।

भय से मुक्ति के लिए गौ स्तुति

गाय की सेवा करने से जीते-जी तो हर प्रकार का सुख, संतोष और शांति प्राप्त होती ही है, गोदान करने से मरने के बाद यमराज का भय नहीं रहता है ।

गायत्री मन्त्र के जप के नियम

यज्ञोपवीत धारण करना, गुरु दीक्षा लेना और विधिवत् मन्त्र ग्रहण करना—शास्त्रों में तीन बातें गायत्री उपासना में आवश्यक और लक्ष्य तक पहुंचने में बड़ी सहायक मानी गई हैं । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि इनके बिना गायत्री साधना नहीं हो सकती है । ईश्वर की वाणी या वेद की ऋचा को अपनाने में किसी पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं हो सकता है ।

श्रीकृष्ण कृपा और भक्ति देने वाला ‘श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र’

श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (कृष्णाष्टक) भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा रचित बहुत सुन्दर स्तुति है । बिना जप, बिना सेवा एवं बिना पूजा के भी केवल इस स्तोत्र मात्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है।

अनिद्रा और दु:स्वप्न नाश के 8 प्रभावशाली मन्त्र

हमारा मन जितना-जितना परमात्मा की ओर झुकता जाएगा, उतनी-उतनी मन में शान्ति आती जाएगी । जहां शान्ति आयी, मन प्रसन्न हो जाएगा । प्रसन्नता आने पर मन का उद्वेग मिट जाता है । उद्वेग मिटना ही दु:खों की समाप्ति है ।’ यही अच्छी व गहरी नींद का मूल मन्त्र है।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

स्वामी रामकृष्ण परमहंसजी ‘टाका माटी’ के खेल का अभ्यास किया करते थे । वे एक हाथ में ‘टाका’ यानी सिक्का और दूसरे में मिट्टी का ढेला लेते और ‘टाका माटी’, ‘टाका माटी’ कहते हुए उन्हें दूर फेंक देते थे । ऐसा अभ्यास वे पैसे के प्रलोभन से बचने के लिए अर्थात् पैसा और मिट्टी एक बराबर समझने के लिए करते थे ।

कैसे करें नवरात्रि में कलश की स्थापना ?

कलश-स्थापन क्यों किया जाता है? कौन-से योग व नक्षत्रों में कलश-स्थापन नहीं करना चाहिए?