देवों के देव भगवान शिव के विभिन्न नाम और उनके अर्थ

भगवान से ज्यादा उनके नाम में शक्ति होती है । आज की आपाधापी भरी जिंदगी में यदि पूजा-पाठ के लिए समय न भी मिले; तो यदि केवल भगवान के नामों का पाठ कर मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है । यह सम्पूर्ण संसार भगवान शिव और उनकी शक्ति शिवा का ही लीला विलास है । पुराणों में भगवान शिव के अनेक नाम प्राप्त होते हैं ।

भगवान शिव का विभिन्न द्रव्यों से स्नान और उनका फल

भगवान शिव की पूजा ही सबसे बढ़कर है; क्योंकि मूल के सींचे जाने पर शाखा रूपी समस्त देवता स्वत: तृप्त हो जाते हैं । भगवान शिव के विधिवत् पूजन से जीवन में कभी दु:ख की अनुभूति नहीं होती है । अनिष्टकारक दुर्योगों में शिवलिंग के अभिषेक से भगवान आशुतोष की प्रसन्नता प्राप्त हो जाती है, सभी ग्रहजन्य बाधाएं शान्त हो जाती हैं, अपमृत्यु भाग जाती है और सभी प्रकार के सुखभोग प्राप्त हो जाते हैं ।

हर प्रकार के शुभ फल देने वाली है बाणासुर कृत शिव-स्तुति

राजा बलि के सबसे बड़े पुत्र बाणासुर हुए जो महान शिवभक्त थे । उनकी राजधानी केदारनाथ के पास स्थित शोणितपुर थी । बाणासुक के हजार हाथ थे । जब ताण्डव नृत्य के समय शंकरजी लय पर नाचते, तब बाणासुर हजार हाथों से बाजे बजाते थे । बाणासुर के ताण्डव से रीझ कर भगवान शंकर उसके नगररक्षक बन गए ।

जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के अनमोल जीवन-सूत्र

जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भगवान शंकर के साक्षात् अवतार माने जाते हैं । इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की लम्बी सूची है । सभी देशों के विचारकों और दार्शनिकों ने इनके सामने सिर झुकाया है । इनके द्वारा मनुष्य के कल्याण के लिए कुछ अनमोल जीवन-सूत्र बताए गए हैं ।

राम तें अधिक राम का दासा : हनुमानजी

हनुमानजी यद्यपि श्रीराम के दूत और दास के रूप में प्रसिद्ध हुए पर उन्होंने श्रीराम के चरणकमलों की भक्ति से यह सिद्ध कर दिया कि दूत या सेवक का कार्य निंदनीय नहीं है; बल्कि वे सच्चे कर्मयोगी भक्त हैं । उन्होंने संसार को यह संदेश दिया कि ईश्वर की कृपा से जो कर्म करने को मिले, उसी में दक्षता प्राप्त करनी चाहिए । मनुष्य को सच्चा कर्मयोगी बनना चाहिए ।

भगवान शिव सर्पों को आभूषण के रूप में क्यों धारण करते...

संसार में जो कुछ भी अनाकर्षक है व असुन्दर है और जिसे संसार ने ठुकराया उसे भगवान शिव ने अपनाया । जैसे—कालकूट विष, आक-धतूरा, श्मशान, राख, और सर्प । सर्पों की परोपकारता से भगवान शिव ने उन्हें अपने गले का हार बना लिया ।

भगवान शिव की कमल-पुष्पों से आराधना का फल

महर्षि लोमश बड़े-बड़े रोम होने के कारण ‘लोमश’ कहलाते हैं । भगवान शिव के वरदान से दिव्य शरीर प्राप्त होने पर लोमशजी को कहीं भी इच्छानुसार जाने की शक्ति, पूर्वजन्मों का ज्ञान और काल का ज्ञान प्राप्त हो गया । जब कल्प का अंत होता है, अर्थात् ब्रह्माजी का एक दिन व्यतीत होता है, तब लोमशजी के बाएं घुटने के ऊपर का एक रोम गिर पड़ता है । ऐसा माना जाता है कि अभी उनके बाएं घुटने के बीच का भाग ही रोम-रहित हुआ है ।

शिवालय और शिव के विभिन्न प्रतीकों का क्या है रहस्य ?

प्राय: सभी शिव-मन्दिरों में प्रवेश करते ही सबसे पहले नन्दी के दर्शन होते हैं । उसके बाद कच्छप (कछुआ), गणेश, हनुमान, जलधारा, नाग आदि सभी शिव-मन्दिरों में विराजित रहते हैं । भगवान के इन प्रतीकों में बड़ा ही सूक्ष्म-भाव व गूढ़ ज्ञान छिपा है।

भगवान के हरिहर स्वरूप का क्या है रहस्य ?

इतने में देवर्षि नारद वीणा बजाते, हरिगुण गाते वहां पधारे । तब पार्वतीजी ने नारदजी से इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा । नारदजी ने हाथ जोड़कर कहा–‘मैं इसका क्या हल निकाल सकता हूँ । मुझे तो हरि और हर एक ही लगते हैं; जो वैकुण्ठ है वही कैलाश है ।’

भगवान शिव की मानस पूजा

मानस पूजा का प्रचलन उतना ही प्राचीन है जितना कि भगवान । मानस पूजा में मन के घोड़े दौड़ाने और कल्पनाओं की उड़ान भरने की पूरी छूट होती है । इसमें मनुष्य स्वर्गलोक की मन्दाकिनी के जल से अपने आराध्य को स्नान करा सकता है, कामधेनु के दुग्ध से पंचामृत का निर्माण कर सकता है । ऐसी मानस पूजा से भक्त और भगवान को कितना संतोष मिलता होगा, यह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता ।