शिव-स्तुतियों में विशेष शिव ताण्डव स्तोत्र की कथा, अर्थ व लाभ

भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से कैलास पर्वत को दबा दिया । दशानन का कंधा और हाथ पर्वत के नीचे दब गए तो वह जोर-जोर से रुदन करने लगा । पार्वतीजी के कहने पर भगवान ने अपने पैर का अंगूठा पर्वत से उठा लिया । दीर्घकाल तक रुदन करते-करते उसने भगवान शंकर की स्तुति की, जो ‘ताण्डव स्तुति’ के नाम से प्रसिद्ध है ।

काशी को ‘आनन्दवन’ क्यों कहते हैं ?

जीव का मृत्युकाल निकट आने पर जब भगवान शंकर उस मरणासन्न प्राणी को अपनी गोद में रखकर उसे तारक मन्त्र का उपदेश करने लगते हैं; उस समय अत्यंत करुणामयी देवी अन्नपूर्णा उस मरणासन्न प्राणी की व्याकुलता को देखकर अत्यंत द्रवित हो जाती हैं और कस्तूरी की गंध वाले अपने आंचल से उस प्राणी की हवा करने लगती हैं और उसकी समस्त व्याकुलता दूर कर देती हैं ।

जगत के कल्याण के लिए भगवान शिव का ताण्डव नृत्य

संसार में अणु से लेकर बड़ी-से-बड़ी शक्ति में जो स्पन्दन दिखायी पड़ता है, वह उसके नृत्य एवं नाद का ही परिणाम है । भगवान शिव का नृत्य जब प्रारम्भ होता है, तब उनके नृत्य-झंकार से सारा विश्व मुखर और गतिशील हो उठता है ।

भगवान शिव ने ‘नटराज’ अवतार क्यों धारण किया ?

भगवान शिव नृत्य-विज्ञान के प्रवर्तक माने जाते हैं । वे सबका कल्याण करने वाले हैं, उन्होंने ‘नटराज’ स्वरूप (सुनर्तक नटावतार) क्यों ग्रहण किया ? इस सम्बन्ध में बहुत-सी कथाएं प्रचलित हैं । भगवान शिव के नटराज अवतार की विभिन्न कथाएं ।

ब्रह्मचर्य है जिनकी पहचान, ऐसे महावीर हनुमान

‘जहां काम तहँ राम नहिं, जहां राम नहिं काम’ अर्थात् जिसके मन में काम भावना होती है वह श्रीराम की उपासना नहीं कर सकता और जो श्रीराम को भजता है, वहां काम ठहर नहीं सकता । हनुमानजी के तो रोम-रोम में राम बसे हैं और वे सारे संसार को ‘सीयराममय’ देखते थे । इसीलिए हनुमानजी को आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करना असम्भव नहीं था । हनुमानजी के अखण्ड ब्रह्मचर्यव्रत में कोई त्रुटि नहीं आई ।

भक्तों के लिए भोले और दुष्टों के लिए भाले है शिव

भोले-भण्डारी भगवान शिव भक्तों के लिए भोले और दुष्टों के लिए भाले के समान हैं । भगवान शंकर इतने दयालु हैं कि अपने भक्तों के कल्याण के लिए लिए कभी नौकर बन जाते हैं तो कभी भिखारी का वेश धारण करने में भी जरा-सा संकोच नहीं करते हैं । भगवान शिव की भक्त की लाज बचाने की भक्ति कथा ।

भगवान शिव के पंचमुख स्वरूप का क्या है रहस्य ?

जगत के कल्याण की कामना से भगवान सदाशिव के विभिन्न कल्पों में अनेक अवतार हुए जिनमें उनके सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान अवतार प्रमुख हैं । ये ही भगवान शिव की पांच विशिष्ट मूर्तियां हैं ।

दु:ख, दुर्भाग्य व दरिद्रता नाशक भगवान शिव का प्रदोष स्तोत्र

दरिद्रता और ऋण के भार से दु:खी व संसार की पीड़ा से व्यथित मनुष्यों के लिए प्रदोष पूजा व व्रत पार लगाने वाली नौका के समान है । स्कन्दपुराण के अनुसार जो लोग प्रदोष काल में भक्तिपूर्वक भगवान शिव की पूजा करते हैं, उन्हें धन-धान्य, स्त्री-पुत्र व सुख-सौभाग्य की प्राप्ति और उनकी हर प्रकार की उन्नति होती है ।

शिवलिंग पर बने त्रिपुण्ड्र की तीन आड़ी रेखाओं का क्या है...

शैव परम्परा का तिलक है त्रिपुण्ड्र । यह कितना बड़ा होना चाहिए ? कैसे लगाना चाहिए ? त्रिपुण्ड्र की तीनों रेखाओं का क्या रहस्य है ?

हनुमानजी के गुरु कौन थे ?

ऐसा अद्भुत और आश्चर्यमय अध्ययन-अध्यापन ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र आदि देवताओं और लोकपालों ने कभी देखा नहीं था । इस दृश्य को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गये और उनकी आंखें चौंधिया गयीं । वे सोचने लगे कि यह तो शौर्य, वीररस, धैर्य आदि सद्गुणों का साक्षात् स्वरूप आकाश में उपस्थित हो गया है ।