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एकाम्रेश्वर या एकाम्बरेश्वर का क्षिति-लिंग दक्षिण भारत के शिवकांची में स्थित है । एकाम्रेश्वर-लिंग पार्वती जी द्वारा निर्मित बालुका-लिंग है, जिसकी वे पूजा करती थीं ।

एकाम्रेश्वर-लिंग के प्राकट्य की कथा इस प्रकार है—

शिवकांची का एकाम्रेश्वर बालुका-लिंग (स्थावर-लिंग) : कथा

एक बार पार्वती जी ने कौतूहलवश चुपचाप पीछे से आकर दोनों हाथों से भगवान शंकर के तीनों नेत्र बंद कर दिए । भगवान शंकर के तीनों नेत्र ढक जाने से सारे संसार में घोर अंधकार छा गया; क्योंकि सूर्य, चंद्र और अग्नि जो संसार को प्रकाशित करते हैं, वे शंकर जी के नेत्रों से ही प्रकाश पाते हैं । उस समय सारे ब्रह्माण्ड के लोप हो जाने की नौबत आ गई ।

भगवान शंकर के आधी पलकें झपकाने (अर्द्धनिमेष) मात्र से ही संसार के एक करोड़ वर्ष बीत गए । पार्वती जी के इस प्रलयंकर कार्य को देख कर भगवान शंकर ने उन्हें प्रायश्चित के रूप में तपस्या करने का आदेश दिया ।

भगवान शंकर की आज्ञा मान कर पार्वती जी ने जटा व वल्कल वस्त्र धारण कर तपस्विनी वेश बना लिया और कांचीपुरी में कम्पा नदी के तट पर आ गईं । यहां उन्होंने एक आम्र-वृक्ष (आम के पेड़) के नीचे कम्पा नदी की बालुका से एक शिवलिंग बनाया और उसका विधिपूर्वक पूजन व तप करने लगीं ।

कुछ काल बाद पार्वती जी की भक्ति की परीक्षा करने के लिए भगवान शंकर कांची पहुंचे और कम्पा नदी में बाढ़ ला दी, जिससे उनके चारों ओर जल-ही-जल हो गया । जब पार्वती जी ने आँखें खोलीं तो उन्हें चिंता हुई कि इस बाढ़ के जल में कहीं उनका बालुका-लिंग विलीन न हो जाए, जिससे उनकी तपस्या में विघ्न आ जाएगा ।

जिसने समस्त कामनाओं का त्याग कर दिया हो और अपना मन पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित कर दिया हो, उसके तप-पूजन में कोई भी विघ्न अनिष्ट नहीं कर सकता है ।

पार्वती जी बालुका-लिंग को छाती से लगा कर ध्यानमग्न हो गईं और आदिदेव का मंत्रपाठ करने लगीं । कई बार वे जल के भँवर में फंसी; परंतु उन्होंने बालुका-लिंग को नहीं छोड़ा । भगवान शंकर ने प्रकट होकर कहा—

विमुच्च बालिके लिंगं प्रवाहोऽयं गतो महान् ।
त्वयार्चितमिदं लिंगं सैकतं स्थिरवैभवम् ।।
भविष्यति महाभागे वरदं सुरपूजितं ।

अर्थात्—‘हे बालिके ! नदी में जो बाढ़ आई थी, अब वह चली गई है । तुम लिंग को छोड़ दो । तुमने इस स्थिर-वैभवयुक्त सैकत-लिंग (रेत के, बालुका-लिंग)  की पूजा की है, अत: यह सुरपूजित पार्थिव-लिंग वरदाता बन गया है । जो कोई इसकी जिस कामना के साथ आराधना करेगा, उसकी वह कामना पूर्ण होगी ।’

‘यहां मैं अपने ज्योतिर्मय रूप को त्याग कर स्थावर-लिंग (स्थिर लिंग) के रूप में परिणत हो गया हूँ । तुम तिरुवण्णमलै (गौतमाश्रम अरुणाचल) में जाकर तपस्या करो, वहां मैं तुम्हें तेजोरुप में मिलूंगा ।’

तब पार्वती जी ने वहां आए सभी देवताओं और ऋषियों को वर प्रदान करते हुए कहा—‘आप लोग इस पवित्र कम्पा नदी के तट पर निवास कर इस सैकत-लिंग की पूजा कीजिए । इस लिंग का दर्शन और पूजन करके मनुष्य मनोवांछित ऐश्वर्य प्राप्त करेंगे । मेरे भक्त मुझे कामदायिनी ‘कामाक्षी’ मान कर मेरी पूजा कर अभिलाषित वर प्राप्त करेंगे ।’ 

महादेवी कामाक्षी को ‘कामकोटि अम्बिका’ भी कहा जाता है ।

अरुणाचल पर्वत पर तिरुवण्णमलै में पार्वती जी के तप करने के कुछ काल बाद एक तेजोलिंग का आविर्भाव हुआ, उससे संसार का अंधकार मिट गया । यहां भगवान शंकर और पार्वती जी का मिलन हो गया ।

शिवकांची का एकाम्रेश्वर क्षितिलिंग मंदिर

श्रीएकाम्रेश्वर या श्रीएकाम्बरनाथ मंदिर दक्षिण के विशालतम शिवमंदिरों में से एक है । मुख्य मंदिर में तीन द्वारों के भीतर एकाम्रेश्वर शिवलिंग स्थित है । लिंगमूर्ति श्याम है और बालुका-निर्मित है । एकाम्बरेश्वर के लिंग को बहुमूल्य धातुओं के खोल से ढका हुआ है । एकाम्रेश्वर शिवलिंग पर जल नहीं चढा़या जाता, केवल चमेली के तेल से अभिषेक किया जाता है । हर सोमवार को भगवान की सवारी निकलती है ।

मंदिर प्रांगण में कार्तिकेय और गणेश जी की विशाल प्रतिमाएं हैं । साथ ही शिव द्वारा कामदेव को भस्म करने का दृश्य भी साकार किया गया है । मंदिर परिसर में ही शिवगंगा के दो पवित्र सरोवर हैं ।

एकाम्रेश्वर मंदिर के प्रांगण में एक बहुत पुराना आम का वृक्ष है । इसके नीचे एक चबूतरे पर छोटे-से मंदिर में तपस्यारत कामाक्षी-पार्वती जी की मूर्ति है । मंदिर के जगमोहन में चौंसठ योगिनियों की मूर्तियां हैं ।

मंदिर में अनेक देवताओं की मूर्ति के साथ भगवान शंकराचार्य की भी मूर्ति है । अप्रैल के महीने में यहां प्रधान वार्षिकोत्सव होता है, जो पंद्रह दिन तक चलता है । उस समय उत्सव-मूर्तियों को जल-विहार कराया जाता है ।

भगवान शिव व पार्वती जी के मिलन के उपलक्ष्य में वार्षिक ब्रह्मोत्सव में रेत के शिवलिंग वाले एकाम्बरनाथ मंदिर और कामाक्षी मंदिर से प्रतिमाएं ‘पवित्र आम्रवृक्ष’ के नीचे ले जाई जाती हैं । जहां पार्वती जी ने तपस्या की और शिव प्रकट हुए । यहीं पर देवी का शिवविवाह कल्याणोत्सव भी मनाया जाता है ।