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अयोध्या का राजसिंहासन और रावण

अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट रघु ने ही ‘रघुकुल’ या ‘रघुवंश’ की नींव रखी थी । रघुकुल अपने सत्य, तप, मर्यादा, वचन पालन, चरित्र व शौर्य के लिए जाना जाता है । इसी वंश में भागीरथ, अंबरीष, दिलीप, रघु, दशरथ और श्रीराम जैसे राजा हुए । रावण प्रकाण्ड विद्वान और त्रिकालदर्शी था । उसे पता था कि उसकी मृत्यु अयोध्यापति श्रीराम के हाथों होगी । अत: अयोध्या का विनाश करना उसका चिरकाल से संकल्प था ।

आसुंओं का महत्व

लीला-पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला संसार को किसी-न-किसी ज्ञान से अवगत कराती है । ऐसी एक लीला है जिसमें भगवान ने अपनी प्राप्ति के दो साधनों से संसार को अवगत कराया है—१. भगवान के विरह में बहाए गए आंसू और २. शरणागति ।

एकाम्रेश्वर जहां बालुका-लिंग में विराजते हैं शिव

एकाम्रेश्वर का क्षितिलिंग दक्षिण भारत में शिवकांची में स्थित है । एकाम्रेश्वर-लिंग पार्वती जी द्वारा निर्मित बालुका-लिंग है, जिसकी वे पूजा करती थीं ।

काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है

‘काशी’ इस शब्द का अर्थ है—जहां शिवस्वरूप ब्रह्मज्योति प्रकाशित होती है । माना जाता है कि यहां देह-त्याग के समय भगवान शंकर मरणोन्मुख प्राणी के कान में तारक-मंत्र सुनाते हैं, उससे जीव को तत्त्वज्ञान हो जाता है और उसके सामने शिवस्वरूप ब्रह्म प्रकाशित हो जाता है । ब्रह्म में लीन होना ही अमृत पद प्राप्त कर लेना या मोक्ष है ।

कैवल्य मुक्ति किसे कहते हैं ?

एक चीनी की गुड़िया थी । एक बार उसके मन में समुद्र को नापने की इच्छा हुई; इसलिए उसने अपने भाई-बहिनों को इकट्ठा किया और कहा कि मैं समुद्र की गहराई नापने जा रही हूँ । जब मैं नाप लेकर बाहर आऊंगी तब आप लोगों को समझाऊंगी कि समुद्र कितना गहरा है ? ऐसा कह कर वह समुद्र में कूद गई । लेकिन इसके बाद वह कभी बाहर न आ सकी और समुद्र में ही मिल गई । इसी तरह प्राणी बिन्दु है और परमात्मा सिंधु है । जब बिंदु सिंधु में समा जाए तो वह परमात्मा से एकरूप हो जाता है, उसी को कैवल्य मुक्ति कहते है ।