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ग्रहण आकाश में ग्रहों की दुनिया का चमत्कृत कर देने वाला दृश्य है; परन्तु भारतीय ऋषियों ने अत्यन्त प्राचीन काल से ही इस पर गहन अध्ययन किया है । महर्षि अत्रि को ग्रहण सम्बन्धी ज्ञान का प्रथम आचार्य (ज्ञाता) माना जाता है ।

पुराणों में ग्रहण का वर्णन

श्रीमद्भागवत के अष्टम स्कन्ध के नवें अध्याय में ग्रहण के बारे में कहा गया है—

‘भगवान विष्णु जब मोहिनी का रूप बनाकर देवताओं को अमृत पिलाने लगे, तब राहु देवताओं का रूप बनाकर उनकी पंक्ति में बैठ गया । सूर्य और चन्द्रमा ने इसकी सूचना भगवान विष्णु को दे दी । तब भगवान ने सुदर्शन चक्र से राहु के सिर को काट दिया; परन्तु अमृत का सेवन करने से वह अमरत्व को प्राप्त हो गया । उसके सिर का नाम ‘राहु’ और धड़ का नाम ‘केतु’ हो गया । भगवान ने उनको ग्रह बना दिया । इसी वैर के कारण राहु पूर्णमासी को चन्द्रमा की ओर तथा अमावस्या को सूर्य की ओर उन्हें ग्रसने के लिए दौड़ता है ।

ऋग्वेद के एक मन्त्र में इसका वर्णन इस प्रकार है—‘हे सूर्य ! असुर राहु ने आप पर आक्रमण कर अंधकार से जो आपको ढक दिया, उससे मनुष्य आपके रूप को पूरी तरह देख नहीं पाए और अपने कार्यों में ठप्प से हो गए । तब महर्षि अत्रि ने अपने मन्त्रों द्वारा सूर्य का उद्धार किया ।’

सूर्य ग्रहण कब होता है ?

अपने भ्रमण-पथ पर चलते हुए चन्द्रमा अमावस्या को जब सूर्य और पृथ्वी के बीच आकर सूर्य को ढक लेते हैं तब सूर्य ग्रहण होता है । सूर्य ग्रहण तीन प्रकार का होता है—

१. खग्रास या पूर्ण सूर्य ग्रहण—जब सूर्य का पूरा बिम्ब ढक जाता है । सूर्य के पूरी तरह ढकने से पृथ्वी का रंग बदल जाता है, चारों ओर अंधेरा छा जाता है; जिससे लोगों और पशु-पक्षियों में भय व्याप्त हो जाता है ।

२. कंकणाकार या वलयाकार—जब सूर्य का केवल बीच का भाग ढकता है,

३. खण्ड-ग्रहण—जब सूर्य का कुछ अंश ही ढकता है ।

चन्द्र ग्रहण कब होता है ?

चन्द्र ग्रहण पूर्णिमा को तब होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा बिल्कुल एक सीध में होते हैं । सूर्य और चन्द्रमा के बीच में जब पृथ्वी आ जाती है तो पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढक देती है, जिससे चन्द्रमा काला दिखायी देता है, इसे ही चन्द्र ग्रहण कहा जाता है ।

चूड़ामणि ग्रहण कब होता है ? 

यदि सूर्य ग्रहण रविवार को हो और चन्द्र ग्रहण सोमवार को हो तो उसे ‘चूड़ामणि ग्रहण’ कहते हैं । इस ग्रहण में स्नान, जप, दान और हवन करने का विशेष फल है ।

ग्रहण में कुशा का महत्व

ग्रहण काल में जो अशुद्ध परमाणु होते हैं, कुशा डालने से डाली हुई वस्तु पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता है । इसलिए ग्रहण में जल और खाद्य-पदार्थों पर कुशा डालने से वे दूषित नहीं होते हैं । शास्त्रों में कुशा के आसन पर बैठकर भजन व योगसाधना का विधान है ।

सूर्य और चन्द्र ग्रहण : क्या करें, क्या न करें

  • ग्रहण काल में जप, दान एवं हवन का विशेष महत्व है । शास्त्रों के अनुसार ग्रहण लगने पर स्नान, ग्रहण के मध्यकाल में हवन व देवपूजन, ग्रहण जब समाप्त होने वाला हो तब दान और समाप्त होने पर पुन: स्नान करना चाहिए । इस समय स्नान, दान, जप, होम करने से राहु की पीड़ा दूर होती है ।
  • सूर्य ग्रहण में पुष्कर और कुरुक्षेत्र में स्नान का विशेष महत्व है; जबकि चन्द्र ग्रहण में काशी (वाराणसी) के स्नान का विशेष महत्व है । यही कारण है कि श्रीकृष्ण के पिता वसुदेवजी सूर्य ग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र आए और उन्होंने वहां जाकर यज्ञ किया था ।
  • ग्रहण काल में भगवान की मूर्ति का स्पर्श नहीं करना चाहिए ।
  • ग्रहण काल में रुद्राक्ष माला को धारण करने मात्र से पापों का नाश हो जाता है ।
  • यदि ग्रहण के दिन श्राद्धतिथि हो तो श्राद्ध कच्ची सामग्री व सुवर्ण से करना चाहिए ।
  • ग्रहण काल में भोजन नहीं करना चाहिए ।
  • ग्रहण काल में सोना और मल-मूत्र विसर्जन नहीं करना चाहिए । यह नियम बीमार, बालक व वृद्धों पर लागू नहीं होता है ।
  • दूध, दही, छाछ, घी, व पके अन्न में कुशा, तिल या तुलसी डालने से वे अपवित्र (दूषित) नहीं होते हैं ।
  • ग्रहण से गंगाजल अपवित्र नहीं होता है ।
  • ग्रहण का मोक्ष (समाप्त) होने पर स्नान करने के बाद पहले का रखा पानी काम में नहीं लेना चाहिए । 
  • सूर्य ग्रहण चूंकि दिन में होता है, अत: ग्रहण की समाप्ति पर घर के मंदिर को साफ कर भगवान को स्नान कर वस्त्र आदि बदलने चाहिए ।

ग्रहण काल में मन्त्र जप

सूर्य ग्रहण के समय मन्त्रों को जपने से तथा मन्त्रों को लिखने से अद्भुत सिद्धि प्राप्त होती है । ग्रहण काल में यन्त्रों को लिखने का भी बहुत माहात्म्य है ।

गणपति अथर्वशीर्ष में कहा गया है—‘सूर्यग्रहणे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जपत्वा स सिद्धमन्त्रो भवति ।’ अर्थात्—सूर्यग्रहण में गंगा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों के तटों पर या किसी मूर्ति के पास मन्त्र जपने से वह सिद्ध हो जाता है । 

ग्रहण काल में भगवान के नामों का कीर्तन और जप सबको करना चाहिए । 

ग्रहण के अनिष्टकारी प्रभाव के लिए दान

जन्म-नक्षत्र या अनिष्टफल देने वाले नक्षत्र में ग्रहण लगने पर उसकी शान्ति के लिए सूर्य ग्रहण में सोने का और चन्द्र ग्रहण में चांदी के बिम्ब का और घोड़ा, गौ, भूमि, तिल व घी का अपनी सामर्थ्य अनुसार दान करें । 

विशेष बात

सूर्येन्दुग्रहणं यावत् तावत् कुर्याज्जपादिकम् ।
न स्वपेन्न च भुज्जीत स्नात्वा भुज्जीत भुक्तयो: ।।

अर्थात्—ग्रहण काल में जितना हो सके, भगवान के नाम का कीर्तन व जप सभी को करना चाहिए ।

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