अपने इष्टदेव का निर्णय कैसे करें?

गोस्वामीजी के मन में श्रीराम और श्रीकृष्ण में कोई भेद नहीं था, परन्तु पुजारी के कटाक्ष के कारण गोस्वामीजी ने हाथ जोड़कर श्रीठाकुरजी से प्रार्थना करते हुए कहा—‘यह मस्तक आपके सामने तभी नवेगा जब आप हाथ में धनुष बाण ले लोगे ।’

अकाल मृत्यु से मुक्ति का पर्व है धनतेरस

धनतेरस का सम्बन्ध यमराज से है । यमुनाजी यमराज की बहन हैं इसलिए इस दिन यमुना-स्नान का भी विशेष महत्व है और प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है ।

पितरों की शान्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ तिथि है सर्वपितृ अमावस्या

श्राद्ध के द्वारा पितृ-ऋण उतारना आवश्यक है । पितृ ऋण उतारने में कोई ज्यादा खर्चा भी नहीं है । केवल वर्ष में एक बार पितृ पक्ष में उनकी मृत्यु तिथि पर या अमावस्या को, आसानी से सुलभ जल, तिल, जौ, कुशा और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध और तर्पण करें और गो-ग्रास देकर अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से पितृ ऋण उतर जाता है ।

चिन्ता, क्लेश, भय दूर करने वाला क्लेशहर स्तोत्र

भगवान श्रीकृष्ण के इस नामरूपी अमृत वाले स्तोत्रका श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य के दोषों और क्लेशों का नाश होकर पुण्य और भक्ति की प्राप्ति होती है । निष्काम भाव से यदि इस स्तोत्र का पाठ किया जाए तो मनुष्य मोक्ष का अधिकारी होता है ।

वैशाखमास में श्रीमाधव पूजन-विधि

वैशाखमास माधव को विशेष प्रिय है। इसलिए वैशाखमास को माधवमास भी कहते हैं। इस मास में मधु दैत्य को मारने वाले भगवान मधुसूदन की यदि भक्तिपूर्वक पूजा कर ली जाए तो मनुष्य लौकिक व पारलौकिक दोनों प्रकार के सुख प्राप्त करता है। व्रज में वैशाखमास का बहुत माहात्म्य है।

पूजा में आसन का महत्व

शास्त्रों में कुशा के आसन पर बैठकर भजन व योगसाधना का विधान है । कुशा के आसन पर बैठने से साधक का अशुद्ध परमाणुओं से बिल्कुल भी सम्पर्क नहीं होता है, इससे मन व बुद्धि पूरी तरह संयत रहती है और मन में चंचलता नहीं आती है ।

हिन्दू धर्म में माथे पर तिलक क्यों लगाया जाता है ?

जब हमारे आराध्य, चाहें वह भगवान विष्णु हों या श्रीकृष्ण, श्रीराम हों या सदाशिव, सभी तिलकधारी हैं, तो आराधक कैसे बगैर तिलक के रह सकता है ? वैष्णव खड़े तिलक (उर्ध्वपुण्ड्र) की दो समानान्तर रेखाओं को श्रीमन्नारायण के दोनों चरणकमल मानते हैं । उनका विश्वास है कि मस्तक पर तिलक रूपी चरणकमल धारण करने से मृत्यु के बाद उन्हें उर्ध्वगति (विष्णुलोक) की प्राप्ति होगी ।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए जलायें संध्या काल में दीपक

संध्या काल प्रकाश रूप परमात्मा से जुड़ने का समय है इसलिए इस समय न तो खाना खाना चाहिए क्योंकि इससे अस्वस्थता आती है, न पढ़ना चाहिए क्योंकि पढ़ा हुआ याद नहीं रहता और न ही काम भावना रखनी चाहिए क्योंकि ऐसे समय के बच्चे आसुरी गुणों के होते हैं ।

भगवान का आशीर्वाद है चरणामृत

शालग्राम शिला या भगवान की प्रतिमा के चरणों से स्पर्श किए व उनके स्नान के जल को ‘चरणामृत’ या ‘चरणोदक’ कहते हैं; इसलिए चरणामृत को भगवान का आशीर्वाद माना जाता है । हिन्दू धर्म में चरणामृत को अमृत के समान और अत्यंत पवित्र माना गया है ।

हिन्दू धर्म में सिर पर शिखा या चोटी क्यों रखी जाती...

शिखा या चोटी रखना हिन्दुओं का केवल धर्म ही नहीं है, यह हमारे ऋषि-मुनियों की विलक्षण खोज का चमत्कार है । हिन्दू...