देवता और पितर दोनों को क्यों प्रिय हैं तिल ?

माघी पूर्णिमा के दिन कांस्य पात्र में तिल भरकर इस भावना से दान करें कि ‘मां इन तिलों की संख्या से अधिक दु:ख तुमने मेरे लिए सहन किए हैं । अत: इस तिलपात्र के दान से मैं तुम्हारे मातृ-ऋण से उऋण हो जाऊं ।’ इस प्रकार इस दिन माता के निमित्त जो भी कुछ दान दिया जाता है, वह अक्षय हो जाता है ।

संकटनाश के लिए हनुमानजी की विशेष पूजा

किसी एक देवता की आराधना एक ही फल प्रदान करती है किन्तु हनुमानजी की आराधना बुद्धि,बल, कीर्ति, धीरता, निर्भीकता, आरोग्य, व वाक्यपटुता आदि सभी कुछ प्रदान कर देती है ।